कोरोना वायरस को लेकर हुए शोध से हैरान हैं वैज्ञानिक, लगातार बना रखी है निगाह
कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहद अंदर तक बर्बाद कर रहा है। हाल ही में हुए शोध में कुछ और हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है।
वाशिंगटन (न्यूयॉर्क टाइम्स)। कोविड-19 महामारी की शुरुआत में इसको सांस संबंधी बीमारी के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन बाद में पता चला कि ये जानलेवा वायरस न केवल फैंफड़ों को बल्कि किडनी, दिल और सरकुलेटरी सिस्टम को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इतना ही इसकी वजह से हमारे सूंघने की क्षमता और जीभ का टेस्ट भी बदल या खत्म हो रहा हे। अब शोधकर्ताओं को जो जानकारी हासिल हुई है वो उससे बेहद आश्चर्यचकित हैं। इसके मुताबिक अस्पताल में मौजूद कोरोना वायरस से संक्रमित कई मरीजों में कुछ जरूरी कोशिकाओं की कमी हो रही है जो उनके प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर रही है। जिस तरह का बदलाव शोधकर्ताओं को यहां पर देखने को मिला है उसको एचआईवी के समानांतर माना जा रहा है।
इसके निष्कर्ष से पता चला है कि गंभीर रूप से बीमार मरीजों में जहां कुछ पॉपुलर ट्रीटमेंट फायदा पहुंचाते हैं वहीं दूसरों पर ये नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। इस शोध में कहा गया है कि इस वायरस के शिकार होने पर बेहद कुछ बच्चे बीमार होते हैं। वहीं कुछ मामलों में इस वायरस पर कई दवाओं के मिश्रण से काबू पाया जा सकता है। ये कुछ ऐसा ही है जैसा एचआईवी में होता है।
पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट डॉक्टर जॉन वेरी के नेतृत्व में लैब कोविड-19 से पीडि़त सभी मरीजों के इम्यून सिस्टम पर विस्तार से नजर रखे हुए है। मई में उन्होंने अपने साथी के साथ मिलकर एक ऑनलाइन पेपर पोस्ट किया था जिसमें इस वायरस से ग्रसित मरीजों के इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी के बारे में बताया गया था। इसमें उन्होंने वायरस से लड़ने में कारगर टी सेल्स के खत्म होने की भी बात कही थी।
इससे अलग एक शोध में इम्यून सिस्टम में आई गड़बड़ी के तीन अलग-अलग पैटर्न का पता चला। इसमें बी और टी सेल्स भी शामिल हैं जो गंभीर रूप से बीमारी मरीजों के इम्यून सिस्टम में काफी कारगर भूमिका निभाती हैं। वेरी के मुताबिक इस शोध में कोविड-19 मरीजों की जांच के दौरान करीब 30 फीसद मरीजों में इन्हें एक्टिव नहीं पाया गया। इसी तरह के एक शोध के दौरान चीन में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में टी सेल्स की कमी पाई गई थी। हालांकि इसको अभी पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है।
पेनसिलवेनिया के ही एक अन्य इम्यूनोलॉजिस्ट डॉक्टर कार्ल ने कोविड-19 के मरीजों पर टेस्ट के दौरान पाया था कि ये काफी कठिनाइयों से भरा है। उनके मुताबिक इस वायरस से ग्रसित गंभीर मरीज और आईसीयू में मौजूद मरीज के इम्यून सिस्टम में आई तब्दीली को भी अलग कर पाना काफी मुश्किल है।
आपको बता दें कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 1 करोड़ के पार हो चुका है। दिसंबर 2019 में चीन से शुरू होने के बाद इस वायरस ने तेजी से पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया है। वर्तमान में इसके संक्रमण से सबसे अधिक प्रभावित अमेरिका ही है। इतना ही नहीं कोरोना से हुई मौतों के मामलों में भी अमेरिका सबसे ऊपर ही है।
विश्व की महाशक्ति अमेरिका इसकी दवा बनाने को लेकर बीते पांच माह से प्रयासरत है लेकिन इसके बावजूद वह इसकी एक सटीक दवा नहीं बना सका है। वहीं कई अन्य देशों में भी कुछ दवाओं पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस बात को खुद माना है कि कोरोना की वैक्सीन को दुनिया में आने में एक से डेढ़ वर्ष तक लग सकता है। इस बीच इसको लेकर हो रहे शोध में कई तरह की बातें सामने आ रही हैं।