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गंदे नालों में प्लास्टिक फेंकना है खतरनाक, हर साल पैदा होता है 300 लाख टन प्लास्टिक; रहिए सावधान

अपशिष्ट की सफाई के दौरान महीन टुकड़ों में बंट जाता है प्लास्टिक और जलीय प्रणालियों में मिलकर पहुंचता है आम लोगों तक इस पानी को पीने से लोग बीमार हो जाते हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 11:13 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 11:13 AM (IST)
गंदे नालों में प्लास्टिक फेंकना है खतरनाक, हर साल पैदा होता है 300 लाख टन प्लास्टिक; रहिए सावधान
गंदे नालों में प्लास्टिक फेंकना है खतरनाक, हर साल पैदा होता है 300 लाख टन प्लास्टिक; रहिए सावधान

लंदन, प्रेट्र। यह तो सभी जानते हैं कि प्लास्टिक के महीन टुकड़े हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। अब एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि गंदे नालों में भी प्लास्टिक फेंकना भी बहुत खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि गंदे पानी के शोधन (सफाई) के दौरान प्लास्टिक कई महीन टुकड़ों में बंट जाता है और हमारे जलीय तंत्र में मिल जाता है, जो बाद में नलों के जरिये हम तक पहुंचता है। इस पानी को पीने से लोग बीमार हो जाते हैं। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ सूरे और ऑस्ट्रेलिया की डीकिंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पानी और अपशिष्ट जल को साफ करने की प्रक्रियाओं में नैनो और माइक्रोप्लास्टिक (सूक्ष्म और अति सूक्ष्म प्लास्टिक) की जांच कर यह दावा किया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि सूक्ष्म प्लास्टिक पर कई अध्ययन हो चुके हैं, पर अपशिष्ट जल की सफाई प्रक्रिया को अब तक पूरी तरह समझा नहीं गया है।

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हर साल पैदा होता है 300 लाख टन प्लास्टिक

वाटर रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक हर साल दुनियाभर में लगभग 300 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। इसमें से 130 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक समुद्र और नदियों में बहा दिया जाता है। आशंका जताई जा रही है कि वर्ष 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर 250 मिलियन यानी 25 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।

सुरक्षा मानदंड़ों का रखना होगा ध्यान

प्लास्टिक का जलीय प्रणालियों में मिलना इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यह खुद-ब-खुद खत्म नहीं होता और इसलिए तमाम देशों की सरकारें और वैज्ञानिक इसे लेकर खास तौर से परेशान रहते हैं कि प्लास्टिक का निपटान कैसे किया जाए। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलीय प्रणालियों में नैनो और माइक्रोप्लास्टिक कणों की उपस्थिति के कारण होने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हमें आवश्यक सुरक्षा मानकों को पूरा करना होगा और हमारे पारिस्थितिक तंत्र के खतरों को कम करने के लिए पानी और अपशिष्ट जल के शोधन प्रणालियों में नैनो और माइक्रोप्लास्टिक्स की संख्या को सीमित करनी होगी। साथ ही इसके लिए रणनीतियां बनाकर काम करने की आवश्यकता है।

प्रभावित होती है पानी की सफाई

ब्रिटेन की सूरे यूनिवर्सिटी के जूडी ली ने कहा कि आज पानी में मौजूद प्लास्टिक के सूक्ष्म और अति सूक्ष्म कण पर्यावरण के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि अपने महीन आकार के कारण ये प्लास्टिक के कण पानी और जीवों के शरीर में आसानी से पहुंच बना लेते हैं और उन्हें बीमार कर देते हैं। ली ने कहा कि पानी में घुलने के बाद ये प्लास्टिक के कण सफाई करने वाली मशीनों का कार्य भी प्रभावित करते हैं। इससे पानी भी पूरी तरह साफ नहीं हो पाता।


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