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कोरोना कितना घातक?, वैज्ञानिकों के पास अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं

दुनियाभर के लोग बीते 8 माह से कोरोनावायरस के संक्रमण से परेशान हैं मगर अब तक वैज्ञानिक ये नहीं बता पाए है कि ये वायरस कितना खतरनाक है और इसका असर कब तक कम होगा।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 08 Jul 2020 05:56 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 08:00 AM (IST)
कोरोना कितना घातक?, वैज्ञानिकों के पास अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं
कोरोना कितना घातक?, वैज्ञानिकों के पास अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं

नई दिल्ली, न्यूयॉर्क टाइम्स न्यूज सर्विस। चीन से निकले कोरोनावायरस ने दुनियाभर में अपना कहर बरपाया है। बीते 6 माह से कोरोनावायरस ने दुनियाभर में 11 मिलियन से अधिक लोगों को संक्रमित किया है। इसके अलावा इस वायरस के संक्रमण से अब तक देश में 5 लाख 25 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

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मगर इन सबके बावजूद तमाम लोगों के मन में कोरोनावायरस को लेकर अभी भी मात्र एक ही सवाल रहता है कि आखिर ये वायरस कितना घातक है? इससे कितना खतरा है? इन दो सबसे बड़े सवालों के जवाब अभी भी दुनियाभर के वैज्ञानिक तलाश रहे हैं मगर जवाब किसी के पास नहीं है। 

अब लोग ये भी पूछ रहे हैं कि यदि वायरस नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो कितनी मौतें हो सकती हैं। इन मौतों के आंकड़ों को आमतौर पर संक्रमण दर कहा जाता है। अब एक बात ये भी उठ रही है कि जब ये संक्रमण घनी आबादी वाले इलाके में फैल रहा है तो इससे कितने लोगों के संक्रमित होने का अनुमान हो सकता है। ये बीमारी ब्राजील, नाइजीरिया, भारत और अन्य घनी आबादी वाले इलाकों में फैल रही है।

गरीब देशों में भी, जहां खसरा और मलेरिया जैसी घातक बीमारियां फैलती रहती है वहां पर किस मद में कितना बजट खर्च करना है ये भी तय करना मुश्किल हो जाता है। यदि अधिकारियों को इन बीमारियों की घातकता का पता चल जाए तो वो उस हिसाब से इन बीमारियों पर होने वाले खर्च तय कर सकते हैं, उसके लिए बजट प्लान बना सकते हैं। यदि पहले से तय हो जाए तो बजट वेंटिलेटर, खसरा शॉट्स या मच्छरदानी पर खर्च किया जाना है या नहीं, इसे तय करना आसान होगा। 

यह सवाल पिछले महीने और भी जटिल हो गया था, जब रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने डेटा जारी किया था। इस डेटा में कहा गया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका में जो भी मामले सामने आए उन सभी में इसके लक्षण नहीं दिखे, कई मरीजों में ये बहुत हल्के थे जिन्हें भी इससे पीड़ित मान लिया गया, इस वजह से इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली। यदि एक बार ये सोचा जाता है कि ये संक्रमण छूने और संपर्क में आने से फैलता है तो यह वायरस प्रकट होने की तुलना में कम घातक हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दुनिया भर के 1,300 वैज्ञानिकों की गुरुवार को दो दिवसीय ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई थी, एजेंसी के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा जब से ये वायरस फैला है, उसी के बाद से इस पर रिसर्च की जा रही है। अभी तक टीका विकसित नहीं हो पाया है। हर सरकार ने लोगों को बचाव के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का इस्तेमाल करने के लिए कहा है।

एक बात ये भी देखने में आई है कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने की वजह से सीनियर सिटीजनों को सबसे अधिक समस्या हुई है। इसके अलावा जिनको सांस लेने या अन्य तरह की गंभीर बीमारियां थीं वो अधिक परेशान हुए हैं। अमेरिका के लोगों ने नियमों का सही तरह से पालन नहीं किया जिसके कारण उनके यहां सबसे अधिक मौतें हुई हैं।  

दुनिया की 0.6% आबादी 47 मिलियन लोगों की है और अमेरिका की आबादी का 0.6% 2 मिलियन लोग हैं। अमेरिका के लिए वायरस एक बड़ा खतरा बना हुआ है। वर्तमान में तमाम देशों में बहुत अलग-अलग कोरोनावायरस के मामले दर्ज हैं। जिस देश में जितने अधिक समय तक वायरस का खतरा रहा है वहां पर मरने वालों की संख्या में भी उसी हिसाब से बढ़ोतरी हुई है।

द न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, चीन ने शुक्रवार तक 90,294 मामले और 4,634 मौतें दर्ज की थीं। संयुक्त राज्य अमेरिका इन नंबरों के बहुत करीब था। इसमें 2,811,447 मामले और 129,403 मौतें हुई हैं। साल 1918 में जब फ्लू महामारी का प्रकोप फैला था उस दौरान भी मरने वालों की संख्या भी इसी के आसपास पहुंची थी। जबकि उस समय मेडिकल साइंस इतना अधिक विकसित नहीं था जितना इस समय है। 

अभी तक यह तय नहीं किया जा सका है कि कोरोनावायरस के दौरान कितने लोग दिल के दौरे से मरे और कितने लोग संक्रमण से। न्यूयॉर्क और चीन के वुहान शहर इस वायरस के संक्रमण का केंद्र बिंदू था। एक तथ्य ये भी सामने आया कि जिन देशों की आबादी युवा है वहां पर मरने वालों की संख्या कम रही है। इसके उलट ब्राजील और जर्मनी जैसे देश थे जहां पर सीनियर सिटीजनों की काफी आबादी थी वो सभी संक्रमण का शिकार हुए और उनकी मौत हो गई।


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