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वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण दोगुनी हो गई हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की दर

सेटेलाइट के जरिये जुटाए गए पूरे हिमालयी क्षेत्र के डाटा का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि बर्फ पिघलने का सबसे बड़ा कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 20 Jun 2019 09:41 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jun 2019 09:41 PM (IST)
वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण दोगुनी हो गई हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की दर
वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण दोगुनी हो गई हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की दर

वाशिंगटन, प्रेट्र। बढ़ते तापमान के कारण 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर दोगुनी हो गई है। हर साल ग्लेशियरों की लगभग आधा मीटर बर्फ पिघल जाने के कारण वैज्ञानिक भारत सहित कई देशों में जल संकट की आशंका भी जता रहे हैं। 40 वर्षो तक भारत, चीन, नेपाल और भूटान के हिमालयी क्षेत्रों के सेटेलाइट से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आया है।

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अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2000 के बाद से हर साल इन हिमालयी क्षेत्रों में लगभग डेढ़ फुट बर्फ कम हो रही है। 1975 से 2000 के बीच बर्फ पिघलने की दर की तुलना में यह दर दोगुनी है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जोशुआ मोरर ने कहा कि इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि हिमालय के ग्लेशियर इस समय कितनी तेजी से और क्यों पिघल रहे हैं।

साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुख्य लेखक मोरर ने चिंता जताते हुए कहा ग्लेशियरों ने पिछले चार दशक में अपने कुल द्रव्यमान का संभवत: चौथाई हिस्सा खो दिया है। वर्तमान में हिमालय में लगभग 600 अरब टन बर्फ होने का अनुमान है। एक समय था जब इसे पृथ्वी का 'तीसरा ध्रुव' कहा जाता है।

ऐसे किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने सेटेलाइट के जरिये जुटाए गए पूरे हिमालयी क्षेत्र के डाटा का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि बर्फ पिघलने का सबसे बड़ा कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि है। अध्ययन में कहा गया है कि हालांकि समय के साथ तापमान हर जगह अलग-अलग रहता है, लेकिन 1975 से 2000 के मुकाबले 2000 से 2016 के बीच तापमान में औसतन एक डिग्री की वृद्धि देखी गई।

शोधकर्ताओं ने पश्चिम से पूर्व की ओर 2000 किलोमीटर तक फैले लगभग 650 ग्लेशियरों के सेटेलाइट चित्रों का विश्लेषण किया। इसमें पाया गया कि 1975 से 2000 के बीच हिमालयी ग्लेशियरों में सालाना लगभग 0.25 मीटर की औसत कमी आई थी। 2000 के बाद हिमखंडों के पिघलने की यह दर लगभग आधा मीटर सालाना हो गई।

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