नई तकनीक से होगा पार्किंसंस का इलाज, चूहों पर किया अध्ययन; ऐसे विकसित की विधि
जब कंपकपी पार्किंसंस का मुख्य संकेत बन जाती है तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का भी कारण बन जाता है।
वाशिंगटन डीसी, एएनआइ। वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस बीमारी के इलाज के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। यह ऐसी विधि है, जिसमें शरीर के किसी हिस्से में चिकित्सीय उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह मस्तिष्क कोशिका के उस खास समूह को लक्ष्य बनाती है, जिसकी वजह से इस बीमारी के लक्षण विकसित होते हैं। पार्किंसंस तंत्रिका तंत्र का तेजी से फैलने वाला विकार है, जो हमारी गतिविधियों को प्रभावित करता है। यह हाथ में होने वाले कंपन से शुरू होता है, लेकिन जब कंपकपी पार्किंसंस का मुख्य संकेत बन जाती है, तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का भी कारण बन जाता है।
ऐसे विकसित की विधि
यह अध्ययन न्यूरोथेरेप्यूटिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने 2015 की शुरुआत में जीन थेरेपी विकसित की, जो बीमारी से प्रभावित तंत्रिका कोशिका के समूह को लक्ष्य बनाता है। इस प्रक्रिया को कोलिनर्जिक न्यूरॉन्स कहा जाता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती जाती है, ये कोशिकाएं नष्ट होती जाती हैं। ब्रेन इमेजिंग तकनीक के आने के बाद वैज्ञानिकों ने अब उन तरीकों को खोजा है, जो विशेष प्रकार के रसायन पैदा करने वाली कोशिकाओं को लक्ष्य बनाते हैं। इससे कोशिका-से-कोशिका के संपर्क के जरिये सफलतापूर्वक अन्य प्रकार के न्यूरॉन को उत्तेजित किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में फार्माकोलॉजी के लेक्चरर डॉक्टर पियनार और इंपीरियल कॉलेज लंदन के उनके सहयोगियों ने मस्तिष्क में दो बड़ी न्यूरोट्रांसमीटर कोलिनर्जिक और डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स को खोजा। पार्किंसंस बीमारी में डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स डोपामाइन उत्पन्न करता है, लेकिन इसे निष्क्रिय स्तर तक कम किया जा सकता है, जो अंतत: मर जाता है। यह दुर्बल गतिविधि सहित कई तरह के लक्षणों का कारण बन सकता है।
दवाइयां नहीं होती कारगर
पार्किंसंस को फिलहाल दवाइयों से नियंत्रित किया जा रहा है, लेकिन यह पांच वर्षों के बाद बेअसर हो जाती है। इसका नकारात्मक असर भी देखने को मिलता है। लेकिन, भविष्य में नई तकनीक से पार्किंसंस के मरीजों का अधिक प्रभावी तरीके से इलाज किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा, नई तकनीक का अभी मनळ्ष्यों पर परीक्षण बाकी है। यदि यह तकनीक चिकित्सकीय परीक्षण के सभी चरणों पर खरी उतरती है तो पार्किंसंस मरीजों के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं होगी।
चूहों पर किया अध्ययन
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं की टीम ने पार्किंसंस से पीड़ित एक चूहे के मॉडल में जीन थेरेपी का प्रयोग किया। डॉ. पियनार और उनकी सहयोगी ने इस प्रयोग के दौरान कोलिनर्जिक न्यूरॉन्स को लक्ष्य बनाया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या थेरेपी का प्रभाव डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स पर भी पड़ता है। इसमें मूल रूप से उत्तेजित कोशिका दूसरी कोशिका पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए डोपामिनर्जिक कार्य को बहाल करने में सक्षम था। इस प्रक्रिया में दोनों तंत्रिका कोशिकाएं उत्तेजित होने के साथ पूरी तरह ठीक होते हुए देखा गया। उन्होंने कहा, ‘जब हमने ब्रेन इमेजिंग का प्रयोग किया, तो हमने पाया कि जैसे ही कोलिनर्जिक न्यूरॉन्स को सक्रिय किया, वे प्रत्यक्ष रूप से डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स के संपर्क में आ गए।’ उन्होंने कहा कि यह वास्तव में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मस्तिष्क में नई तंत्रिका प्रणाली के बारे में बताता है। साथ ही, इसकी मदद से हम पार्किंसंस से पीड़ित लोगों की मस्तिष्क की दो बड़ी प्रणालियों को ठीक कर सकते हैं।