ब्लैक होल से डरकर आकाशगंगा से भाग रहा तारा, सूर्य से दोगुना विशाल और दस गुना ज्यादा है चमकीला
खगोलविदों का अनुमान है कि आकाशगंगा से पूरी तरह बाहर निकलने में इस तारे को करीब दस करोड़ साल लगेंगे।
वाशिंगटन, न्यूयॉर्क टाइम्स। रहस्यों से भरपूर ब्रह्मांड में एक अनूठी घटना सामने आई है। खगोलविदों को एक ऐसे तारे का पता चला है, जो ब्लैक होल से डरकर हमारी आकाशगंगा से बहुत तेजी से बाहर निकल रहा है। एस5-एचवीएस1 नामक यह तारा हमारी आकाशगंगा के केंद्र से 40 लाख मील प्रति घंटे की रफ्तार से बाहर जा रहा है।यह तारा इस समय धरती से करीब 29 हजार प्रकाश वर्ष दूर है।
टिंग ली की अगुआई वाली कार्नेगी ऑब्जरवेटरी के खगोलविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इसका पता लगाया है। इस तारे के अध्ययन के लिए वे ऑस्ट्रेलिया में स्थापित सदर्न स्टेलर स्ट्रीम स्पेक्ट्रोस्कोपिक सर्वे टेलीस्कोप का उपयोग कर रहे हैं। ली के अनुसार, यह तारा हमारे सूर्य से दो गुना विशाल होने के साथ ही दस गुना ज्यादा चमकीला भी है। यह तारा अप्रत्याशित गति से गहरे अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहा है।
ब्लैकहोल का द्रव्यमान सूर्य से 40 लाख गुना
खगोलविद यूरोपीय स्पेस एजेंसी के गाया स्पेसक्राफ्ट की मदद से तारे पर नजर रख रहे हैं। उनका कहना है कि यह तारा जिस सेगिटेरियस-ए नामक ब्लैकहोल से बचकर भाग रहा है, उसका द्रव्यमान सूर्य से 40 लाख गुना ज्यादा है। इस स्पेसक्राफ्ट की मदद से अब तक 1.3 अरब तारों की स्थिति का खाका तैयार किया जा चुका है।
ब्लैक होल में समा गया था एक तारा
खगोलविदों की परिकल्पना है कि ब्लैक होल से बचकर भाग रहा एस5-एचवीएस1 एक समय दो तारा प्रणाली का हिस्सा था। यह प्रणाली ब्लैक होल के बेहद समीप पहुंच गई थी। इसमें से एक तारा ब्लैक होल में चला गया, जबकि दूसरा बहुत तेज रफ्तार से दूर जा रहा है।
आकाशगंगा से निकलने में लगेंगे दस करोड़ साल
खगोलविदों का अनुमान है कि आकाशगंगा से पूरी तरह बाहर निकलने में इस तारे को करीब दस करोड़ साल लगेंगे। यह तारा करीब 50 लाख साल पहले तक हमारी आकाशगंगा के केंद्र का हिस्सा था। कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के जैक हिल्स ने 1988 में सबसे पहले आकाशगंगा से इस तारे के निकलने का अनुमान लगाया था।
क्या होता है ब्लैक होल
ब्लैक होल को अंतरिक्ष की सबसे रहस्यमय संरचना कहा जाता है। इसका गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि इसके पास से गुजरने वाला कोई भी खगोलीय पिंड इसमें समा जाता है। इसे ब्लैक होल इसीलिए कहते हैं क्योंकि प्रकाश भी इसमें लुप्त हो जाता है। माना जाता है कि कोई विशाल तारा अपने अंतिम समय में ब्लैक होल में तब्दील हो जाता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि हर आकाशगंगा के केंद्र में ब्लैक होल हैं। जो लगातार अपने आसपास के खगोलीय पिंडों, तारों और छोटे ब्लैक होल को अपने अंदर समेटते हुए अपना आकार बड़ा करते जा रहे हैं।