मिड-टर्म चुनावों में विरोध और समर्थन के बीच दांव पर लगी है ट्रंप की प्रतिष्ठा
अगर इन मिड टर्म चुनावों में ट्रंप की पार्टी के उम्मीदवारों की कम सीटें आती हैं तो स्वाभाविक रूप से वह कमजोर पड़ जाएंगे। लिहाजा उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। अमेरिका के मिड-टर्म चुनाव इस बार बेहद चर्चा में हैं। इसे सीधे-सीधे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की साख से जोड़कर देखा जा रहा है। कार्यकाल के बीच में होने वाले इन चुनावों से ट्रंप की सत्ता पर भले कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन उनकी प्रतिष्ठा पर प्रभाव जरूर पड़ेगा। इसके अलावा ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी को 100 सदस्यों वाले उच्च सदन यानी सीनेट में बहुमत गंवाने का डर भी है। अगर सीनेट में डेमोक्रेट्स का बहुमत हो गया, तो अपने बाकी कार्यकाल में ट्रंप को फैसले लेने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अभी सीनेट में रिपब्लिकन की 51 सीटें हैं।
अखबार ने की ट्रंप के खिलाफ वोट करने की अपील
वाशिंगटन पोस्ट ने अपने संपादकीय में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी के खिलाफ वोट डालने की अपील की है। अखबार ने कहा कि ट्रंप लोगों को शांत करने में नहीं, उन्हें भड़काने में यकीन रखते हैं। अखबार ने लिखा, ‘उनका पहला अघोषित लक्ष्य है यह साबित करना कि उनकी आग लगाने वाली राजनीति सफल है। ऐसा करके वो रिपब्लिकन पार्टी पर अपना प्रभुत्व मजबूत करेंगे। दूसरा और ज्यादा बड़ा लक्ष्य है यह साबित करना कि शिष्टता वाली राजनीति पर टिके रहने की उनके विपक्षियों की नीति किसी काम की नहीं है।’अखबार ने कहा कि मतदाताओं के पास मौका है कि वे ऐसे नेताओं को खारिज कर दें जो ट्रंप की गलत नीतियों का समर्थन करते हैं।
मिड-टर्म चुनावों का इतिहास
अमेरिका में मिड-टर्म चुनावों का इतिहास रहा है कि राष्ट्रपति की पार्टी प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स) की औसतन 30 सीटें और सीनेट की चार सीटें गंवा देती है। पिछले दो दर्जन मिड-टर्म चुनावों में केवल दो बार ऐसा हुआ है, जब दोनों सदनों में राष्ट्रपति की पार्टी की सीटें बढ़ गईं। इस बार हो रहे मिड-टर्म चुनावों को लेकर विशेषज्ञ दो हिस्सों में बंटे नजर आ रहे हैं। एक वर्ग है जिसका मानना है कि टंप अपने स्वभाव और फैसलों के कारण लोकप्रियता खो रहे हैं।
ट्रंप के खिलाफ माहौल
अमन पसंद अमेरिकी उनके विरोध में हैं। प्रवासियों को लेकर ट्रंप का रवैया और कारोबारी मोर्चे पर उनकी नीतियों से भी बड़ा वर्ग खफा बताया जा रहा है। वहीं विशेषज्ञों का एक वर्ग मानता है कि ट्रंप की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। बल्कि नीतियों को राष्ट्रवाद से जोड़ने के चलते अमेरिकियों का बहुत बड़ा वर्ग उनके पक्ष में है। अर्थव्यवस्था और रोजगार के मोर्चे पर हालिया आंकड़ों से भी उनके पक्ष में समर्थन बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
ओबामा ने भी कसी कमर
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इन चुनावों में डेमोक्रेट्स के पक्ष में कमर कस ली है। चुनाव के आखिरी दौर में ओबामा जमकर प्रचार कर रहे हैं। ओबामा की इस सक्रियता से कुछ सीटों पर रिपब्लिकन को नुकसान हो सकता है। हाल में पिट्सबर्ग में हुई गोलीबारी की घटना से भी ट्रंप को नुकसान होने की बात कही जा रही है। पिट्सबर्ग में कथित तौर पर प्रवासियों और यहूदियों से नफरत करने वाले एक व्यक्ति ने गोलीबारी करते हुए 11 लोगों की हत्या कर दी थी। लोगों में इस तरह की उग्रता के लिए ट्रंप की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
महिलाओं का समर्थन बढ़ा
महिलाओं को आमतौर पर ट्रंप का विरोधी माना जाता है लेकिन इस चुनाव में तस्वीर बदली नजर आ रही है। रैलियों में उमड़ रही महिलाओं की भीड़ अलग कहानी बयां कर रही है। इस बदलाव पर कोलंबिया की जोन फिलपॉट ने कहा, ‘वह हमारे देश की रक्षा करना चाहते हैं। हमें सुरक्षित रखना चाहते हैं। हमें सभी बाहरी खतरों, घुसपैठियों से बचाना चाहते हैं। उन्हें पता है कि हम क्यों नाराज हैं और वह उस नाराजगी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।’ फिलपॉट की तरह ही बहुत सी महिलाएं हैं, जो दो साल पहले राष्ट्रपति चुनाव के समय ट्रंप के समर्थन में नहीं थीं लेकिन आज ट्रंप में उन्हें ऐसा हीरो नजर आ रहा है जो सुरक्षा को लेकर किया अपना वादा निभा रहा है।
ट्रंप की बातों का जादू
जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अच्छी तरह से समझते हैं कि लोग क्या सुनना चाहते हैं। उनकी यही समझ उनकी बातों में ऐसा जादू भर देती है कि आलोचकों के तमाम दावों के बाद भी उनकी लोकप्रियता कम होती नहीं लग रही। उन्होंने स्थिति को ऐसा बना दिया है, जहां डेमोक्रेट खुलकर उनके खिलाफ बोलने से बच रहे हैं।
ट्रंप का अंदाज
डोनाल्ड ट्रंप ने पूरे चुनाव को अपने हिसाब से ढाल दिया है। हाल में आए रोजगार के आंकड़ों से भी उनका उत्साह बढ़ा है। एक रैली में ट्रंप ने कहा, ‘रिपब्लिकन कांग्रेस का अर्थ है ज्यादा रोजगार, कम अपराध। डेमोक्रेट कांग्रेस का मतलब है कम रोजगार, ज्यादा अपराध। बहुत सीधी सी बात है और सीधी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।’ लोगों को उनका बात करने का अंदाज अच्छा लगता है।
लगी दुनिया की नजर
अमेरिका में हर चार साल में राष्ट्रपति के लिए चुनाव होते हैं, जिस पर दुनिया की नजरें टिकी होती हैं, लेकिन अमेरिका में एक चुनाव हर दो साल बाद होता है जिसमें प्रतिनिधि सभा, सीनेट और गर्वनरों को चुना जाता है। चूंकि यह चुनाव वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल के मध्य में होता है इसलिए इसे मिड-टर्म चुनाव कहते हैं। इसमें प्रतिनिधि सभा के सभी 435 सदस्यों का चुनाव होता है, क्योंकि इसके सदस्यों का कार्यकाल दो साल के लिए होता है। साथ ही सौ सदस्यों वाली सीनेट के 35 सदस्य (कार्यकाल छह साल) भी चुने जाएंगे। 36 राज्यों के गवर्नर भी इस बार चुने जाने हैं। छह नवंबर को अमेरिकी मतदाता इनका चुनाव करेंगे।
ट्रंप की अग्नि परीक्षा
मिड-टर्म चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की हार अच्छी नहीं मानी जाती है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि इन चुनावों में सत्ताधारी दल को दोनों सदनों में हमेशा (एक-दो बार के अपवादों को छोड़ दें तो) हार का सामना करना पड़ा है। अब तक मिड-टर्म चुनावों में 2010 में राष्ट्रपति बराक ओबामा की 45 फीसद सीटों के नुकसान के साथ सबसे बड़ी हार हुई थी।
ट्रंप की पार्टी हारी तो क्या होगा?
वर्तमान में कांग्रेस के दोनों सदनों में राष्ट्रपति ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन का बहुमत है। इसी बहुमत के दम पर ट्रंप व्हाइट हाउस में बैठकर प्रभावी तरीके से शासन चला रहे हैं। अगर इन चुनावों में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की कम सीटें आती हैं तो स्वाभाविक रूप से ट्रंप कमजोर पड़ जाएंगे। राष्ट्रपति चुनाव में जोरदार जीत से अर्जित हुई साख मिट्टी में मिल जाएगी। विपक्ष उनके चरित्र और उनकी नीतियों पर भी सवाल खड़ा कर सकता है।
प्रशासनिक ताकत में कमी
डेमोक्रेट पार्टी की ज्यादा सीटों के आने से ट्रंप प्रशासनिक तौर पर कमजोर हो सकते हैं जिसके चलते टैक्स कटौती के वादों को पूरा करने में कठिनाई हो सकती है।
मुसीबतें बढ़ सकती हैं
डेमोक्रेट पार्टी अगर इन चुनावों में बढ़त बनाती है तो कांग्रेस कमेटी पर उसका नियंत्रण हो जाएगा। इसके बाद वह ट्रंप के खिलाफ भ्रष्टाचार, व्यावसायिक घोटालों की जांच और उन पर लगे यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच को मंजूरी दे सकती है।