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पेट्रोलियम आधारित जेट ईंधन के एक नए विकल्प की खोज, सरसों जैसे पौधे के बीज से निकाला तेल

भारतीय मूल के विज्ञानी के नेतृत्व में अमेरिका में हुआ अध्ययन। सरसों जैसे पौधे के बीज से निकाला तेल। पादप आधारित जेट फ्यूल से 68 प्रतिशत तक कम हो सकता है कार्बन उत्सर्जन। यह शोध अध्ययन जीसीबी बायोएनर्जी जर्नल में प्रकाशित हुआ है

By Nitin AroraEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 09:32 AM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 09:32 AM (IST)
पेट्रोलियम आधारित जेट ईंधन के एक नए विकल्प की खोज, सरसों जैसे पौधे के बीज से निकाला तेल
पेट्रोलियम आधारित जेट ईंधन के एक नए विकल्प की खोज, सरसों जैसे पौधे के बीज से निकाला तेल

वाशिंगटन, प्रेट्र। अमेरिका में भारतीय मूल के एक विज्ञानी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पेट्रोलियम आधारित जेट ईंधन का एक नया विकल्प खोजा है। सरसों जैसे पौधे के बीज से निकाले गए इस अखाद्य तेल का इस्तेमाल जेट ईंधन के रूप में किए जाने से कार्बन उत्सर्जन 68 प्रतिशत तक कम होगा।

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यह शोध अध्ययन जीसीबी बायोएनर्जी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस ईंधन के इस्तेमाल से सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (एसएएफ) कम कीमत में उपलब्ध होगा। यह अखाद्य तेल ब्रासिका कैरिनाटा से निकाला गया है।

अमेरिका की जार्जिया यूनिवर्सिटी में वार्नेल स्कूल आफ फारेस्ट्री एंड नेचुरल रिसोर्सेज में एसोसिएट प्रोफेसर पुनीत द्विवेदी ने बताया कि यदि हमें फीडस्टाक की आपूर्ति के साथ आर्थिक मदद मिले तो हम कैरिनाटा आधारित एसएएफ का उत्पादन कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अमेरिका में एविएशन इंडस्ट्री का कुल कार्बन उत्सर्जन में हिस्सा 2.5 प्रतिशत है और यह उसके ग्लोबल वार्मिग के मामले में 3.5 प्रतिशत जिम्मेदार है।

प्रोफेसर द्विवेदी ने बताया कि कैरिनाटा आधारित एसएएफ एविएशन सेक्टर में कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र में सुधार लाकर आर्थिक अवसर भी पैदा होंगे।

कैरिनाटा से एसएएफ उत्पादन की लागत प्रति लीटर 0.12 डालर से 1.28 डालर तक हो सकती है। इसकी यह लागत बाजार की स्थिति पर निर्भर करेगी। कैरिनाटा आधारित एसएएफ की तुलना में पेट्रोलियम आधारित एविएशन फ्यूल की लागत 0.50 डालर प्रति लीटर है।

प्रोफेसर द्विवेदी साउथ-ईस्ट पार्टनरशिप फार एडवांस्ड रिन्यूएबल्स फ्राम कैरिनाटा (एसपीएआरसी) प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। यह प्रोजेक्ट यूएस डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर्स नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फूड एंड एग्रीकल्चर के तहत चल रहा है।

एसपीएआरसी के तहत शोधकर्ताओं ने चार साल के शोध के दौरान दक्षिण-पूर्व में कैरिनाटा को उगाने की संभावना भी तलाशी। इसके ज्यादा और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज के उत्पादन के लिए उपयुक्त जीनेटिक्स का भी अध्ययन किया गया है।

इन बिंदुओं पर अध्ययन के बाद प्रोफेसर द्विवेदी इस बात से आश्वस्त है कि यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के साथ ही पर्यावरण के लिए भी लाभकारी साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि दक्षिण में हम कैरिनाटा को विंटर क्राप की तरह उगा सकते हैं। कैरिनाटा की खेती से पानी की गुणवत्ता, मिट्टी का स्वास्थ्य तथा जैव विविधता में भी सुधार आएगा। प्रोफेसर द्विवेदी के इस शोध का मुख्य फोकस अब कैरिनाटा आधारित एसएएफ का उत्पादन और उसके खपत का माडल तैयार करने को लेकर है।


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