अफगानिस्तान में खुफिया एजेंसी CIA को फैलाने पर व्हाइट हाउस में हो रही माथापच्ची
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और वहां पर सीआईए की तैनाती के सवाल पर अमेरिका में माथापच्ची चल रही है। इसको लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है।
वॉशिंगटन [न्यूयॉर्क टाइम्स]। अफगानिस्तान अमेरिका के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। इसको लेकर वह अंदरूनी कलह से भी जूझ रहा है। दरअसल, अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप काफी संजीदा हैं। हालांकि, वह इस इलाके को यूं ही नहीं खाली कर देना चाहते हैं। दूसरी तरफ तालिबान से हो रही अफगानिस्तान शांति वार्ता आगे तो बढ़ रही है, लेकिन कई चरणों के बाद भी यह अभी तक अपने मुकाम तक नहीं पहुंची है। इसके अलावा ट्रंप के लिए अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव भी चिंता का सबब बने हुए हैं। जानकार मानते हैं कि ट्रंप इन चुनावों से पहले अफगानिस्तान का मुद्दा हल करना चाहते हैं, जिससे इसे चुनाव में भुनाया जा सके।
माथापच्ची का दौर जारी
अफगानिस्तान को लेकर व्हाइट हाउस में भी माथापच्ची का दौर जारी है। इसकी वजह अफगानिस्तान से सेना की वापसी की सूरत में वहां पर खुफिया एजेंसी सीआईए की मौजूदगी बढ़ाना है, लेकिन सीआईए और सेना के अधिकारी ही इसको लेकर नाखुशी जता चुके हैं। इनका मानना है कि यह फैसला तालिबान के साथ चल रही वार्ता और वर्षों से जारी युद्ध को खत्म करने में परेशानी खड़ी कर सकता है। इसके अलावा अमेरिकी-तालिबान वार्ता में समझौते की शर्तों में भी दिक्कत आएगी।
अधिकारियों का ये है मानना
कुछ अधिकारियों का मानना है कि सीआईए को अफगानिस्तान में आतंकवाद निरोधक बल के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उनके मुताबिक, इसका फायदा आईएसआईएस और अलकायदा पर लगाम में हो सकेगा। वहीं, दूसरी तरफ अमेरिकी फौज की वापसी की राह भी आसान हो सकेगी। सीआईए के डायरेक्टर गिना हसपेल ने व्हाइट हाउस के समझ अपनी चिंताओं को भी उठाया है।
पश्चिम को फिलहाल नहीं कोई खतरा
आपको बता दें कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी इस बात को मानने से इनकार करती रही हैं कि अफगानिस्तान में आईएस की मौजूदगी नहीं है। हालांकि, इन अधिकारियों का यह भी मानना है कि आईएस से फिलहाल पश्चिम को तुरंत कोई खतरा नहीं है। इसकी वजह अधिकारी आईएस का अफगानिस्तान में नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना और तालिबान के साथ उनकी लड़ाई को मान रहे हैं।
एक डर ये भी
सीआईए की तैनाती को लेकर एक बड़ा सवाल ये भी है कि जानकार मान रहे हैं कि अफगानिस्तान से सेना की वापसी और सीआईए की तैनाती से यह मान लिया जाएगा कि अमेरिका आतंकियों से डर गया है। तालिबान का कहना है कि उसे यूएस आर्मी और सीआईए में मतभेद दिखाई दे रहे हैं। अफगान वार्ता में मध्यस्थता कर रहे जालमे खलीजाद मान कर चल रहे हैं कि इसमें कोई समाधान निकल आएगा। आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस वार्ता में फिलहाल सरकार का कोई नुमाइंदा शामिल नहीं है। तालिबान भी सरकार से सीधी बातचीत को लेकर तैयार नहीं है। तालिबान साफ कर चुका है वह अफगान वार्ता के सफल होने के बाद ही सरकार से कोई बातचीत करेंगे।
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