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कोरोना के शिकार रोगियों में ब्लड क्लाटिंग का भी खतरा, जल्द उबार सकती है एंटीवायरल दवा

वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से पीडि़त मरीजों की शिराओं में ब्लड क्लाटिंग यानी रक्त का थक्का जमने (blood clots) का भी खतरा बढ़ सकता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 06:59 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 07:20 PM (IST)
कोरोना के शिकार रोगियों में ब्लड क्लाटिंग का भी खतरा, जल्द उबार सकती है एंटीवायरल दवा
कोरोना के शिकार रोगियों में ब्लड क्लाटिंग का भी खतरा, जल्द उबार सकती है एंटीवायरल दवा

न्‍यूयॉर्क, एजेंसियां। कोरोना वायरस (कोविड-19) से इस समय पूरी दुनिया प्रभावित है। इस खतरनाक वायरस के चलते दूसरी कई गंभीर समस्याओं का खतरा भी बढ़ गया है। इस बारे में जैसे जैसे अध्‍ययन हो रहे हैं वैसे वैसे नए नए खुलासे भी सामने आ रहे हैं। समाचार एजेंसी आइएएनएस के मुताबिक, एक नए अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से पीडि़त मरीजों की शिराओं में ब्लड क्लाटिंग यानी रक्त का थक्का जमने (blood clots) का भी खतरा बढ़ सकता है। इसके चलते मरीजे को स्ट्रोक तक का भी सामना करना पड़ सकता है। वहीं एक अन्‍य अध्‍ययन में पाया गया है कि एंटीवायरल दवा की मदद से मरीजों को उबरने में मदद मिल सकती है।

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अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के अनुसार, इन खतरों से बचने के लिए प्रारंभिक जांच जरूरी है। थ्रोम्बोलेस्टोग्राफी (टीईजी) से रक्त की पूरी जांच होती है। इससे किसी रोगी में ब्लड क्लाटिंग की क्षमता का पता लगाया जा सकता है। जांच की इस विधि से यह भी पता चल जाता है कि कितने देर में थक्का बन रहा है। थक्का कितना ठोस है और कितने समय में टूट रहा है। एक अध्ययन में यह पहले ही पता चल चुका है कि कोरोना के चलते एक्यूट किडनी इंजरी का जोखिम हो सकता है।

समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, एक नए अध्‍ययन में शोधकर्ताओं ने यह पहली बार दर्शाया है कि पहले से ज्ञात एक एंटीवायरल दवा की मदद से कोरोना वायरस (कोविड-19) से पीडि़त रोगी जल्द उबर सकते हैं। यह दवा कोरोना से उबरने की गति को बढ़ा सकती है। फ्रंटियर्स इन इम्यूनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इंटरफेरॉन (आइएफएन)-ए2बी दवा के साथ उपचार करने से रोगियों में वायरस को खत्म करने की गति में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है। इसके साथ ही इंफ्लेमेटोरी प्रोटींस के स्तर में भी कमी आ सकती है।

यह दवा वर्षों से चिकित्सकीय इस्तेमाल में लाई जा रही है। कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह पाया कि इस दवा के साथ उपचार करने से श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से में पता लगाने योग्य वायरस की अवधि में औसतन सात दिन तक की कमी लाई जा सकती है। उल्‍लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए दुनिया के तमाम मुल्‍कों ने लॉकडाउन लगा रखा है। इसके चलते लोग अपने घरों में कैद हैं। इसका सबसे घातक प्रभाव बच्‍चों पर देखा जा रहा है। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की एक रिपोर्ट कहती है कि बच्चों के मन में इससे नकारात्मक विचार आ सकते हैं। 


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