Coronavirus News: कोरोना संक्रमण के कारण लोगों को आ रहे बुरे सपने, ये परिणाम आए सामने
लॉकडाउन के दौरान लोगों की नींद की आदत और और तनाव के स्तर के बारे में काफी कुछ पता चला है। उदाहरण के लिए आधे से अधिक लोगों ने क्वारंटाइन अवधि से पहले अधिक सोने की सूचना दी।
वाशिंगटन, एएनआइ। जैसे-जैसे कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एक नए शोध में विज्ञानियों ने बताया है कि इसकी वजह से लोगों के सपने भी प्रभावित होने लगे हैं। हालात ये हैं कि डर की वजह से ज्यादातर लोगों को बुरे सपने आते हैं। फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी में प्रकाशित इस शोध में विज्ञानियों ने बताया कि लोगों से इस बारे में जानकारी हासिल की गई और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) का इस्तेमाल कर इनका अध्ययन किया गया। उसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है।
शोधकर्ताओं ने फिनलैंड में कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के छठे सप्ताह के दौरान चार हजार से अधिक लोगों की नींद और तनाव के आंकड़ों को जमा किया। इनमें से करीब 800 लोगों ने उस समय के दौरान आने वाले अपने सपनों के बारे में भी जानकारी दी। शोध के प्रमुख लेखक और हेलसिंकी विश्वविद्यालय में स्लीप एंड माइंड रिसर्च ग्रुप के प्रमुख डॉ. अनु-कैटरीना पेसोनेन ने कहा, ‘लोगों के सपनों का इस तरह प्रभावित होना कोरोना की भयावहता को बताता है।’ उन्होंने कहा कि शोध परिणामों से हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि चरम परिस्थितियों का सपने पर क्या असर होता है। वैसे भी यह कहा जाता है कि जिन परिस्थितियों में हम रहते हैं उनका प्रभाव सपनों पर पड़ता है। हालांकि, यह विषय काफी पेचीदा है।
ऐसे किया अध्ययन : अध्ययन के दौरान पेसोनन और उनकी टीम ने सपनों की सामग्री को फिनलैंड की भाषा फिनिश से अंग्रेजी शब्द सूचियों में तब्दील किया और इनका एआइ के जरिये विश्लेषण किया। इस दौरान अक्सर इस्तेमाल किए गए शब्दों को खोजा गया। इस तरह शोधकर्ताओं ने पूरे सपनों को छोटे सपनों के कणों के रूप में (जिन्हें ड्रीम क्लस्टर का नाम दिया गया) परिवर्तित कर लिया। इस तरह शोधकर्ताओं ने 33 ड्रीम क्लस्टर की पहचान की। इनमें से 20 ड्रीम क्लस्टर को बुरे सपनों के रूप में वर्गीकृत किया गया और पाया गया कि इनमें से 55 फीसद में महामारी से संबंधित शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। शोधकर्ताओं ने शारीरिक दूरी, कोरोना वायरस संक्रमण, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई), आतंक और कयामत जैसे शब्दों को महामारी से संबंधित शब्दों के रूप में बांटा था। पेसोनेन के मुताबिक, इस शोध के दौरान हमने एआइ और भाषा विज्ञान का इस्तेमाल किया जो अब तक का बेहद अनोखा तरीका है। हम भविष्य में भी इसे जारी रखने की कोशिश करेंगे, ताकि सपनों को लेकर और अधिक व्यापक दृष्टिकोण का पता चल सके।
ये परिणाम आए सामने : पेसोनेन के मुताबिक, अध्ययन से लॉकडाउन के दौरान लोगों की नींद की आदत और और तनाव के स्तर के बारे में काफी कुछ पता चला है। उदाहरण के लिए, आधे से अधिक लोगों ने क्वारंटाइन अवधि से पहले अधिक सोने की सूचना दी। हालांकि, 10 फीसद लोगों ने नींद में कठिनाई और एक चौथाई लोगों ने कई बार बुरे सपने आने की सूचना दी। अध्ययन में शामिल आधे से अधिक प्रतिभागियों ने तनाव के स्तर में वृद्धि के बारे में भी बताया। इन सभी लोगों ने कम नींद और बुरे सपने आने की भी बात कही।