कोरोना वायरस ने दुनिया के कई देशों की गर्मजोशी से मिलने की परंपरा पर भी लगा दिया ग्रहण
लोगों से हंस कर मिलना हाथ मिलाना खुशी से एक दूसरे को गले लगाना ज्यादातर देशों की संस्कृति का हिस्सा हुआ करता था लेकिन अब सब-कुछ बदल गया है।
नई दिल्ली। दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस की वजह से बहुत कुछ बदल रहा है। इस वायरस ने दुनियाभर में चल रही कई पुरातन चीजों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। कई देशों की परंपराएं भी कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गई है। अब वो उसका विकल्प तलाश रहे हैं। कोरोना वायरस की महामारी ने हम सभी को ऐसे दौर से गुजरने पर मजबूर कर दिया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लोगों से हंस कर मिलना, हाथ मिलाना, खुशी से एक दूसरे को गले लगाना ज्यादातर देशों की संस्कृति का हिस्सा हुआ करता था लेकिन अब सब-कुछ बदल गया है।
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए जो नियम बनाए गए थे, उससे अब कुछ लोगों को अंदेशा है कि कहीं उसका पालन करते-करते वो अपने करीबी लोगों से दूर ना हो जाएं। लेकिन इससे ज्यादा जरुरी ये समझना है कि हमारे लिए एक दूसरे की मौजूदगी कितनी जरुरी है। एक दूसरे के लिए लगाव और फिक्र और भी कई तरीकों से जाहिर की जा सकती है।
हां वो सभी तरीके एक दूसरे को गले लगाने, एक दूसरे के गाल से गाल मिलाकर अपने जज्बाद जाहिर करने जितने ताकतवर नहीं होंगे। न ही ये परिवर्तन इतने आसान होंगे लेकिन नामुमकिन भी नहीं हैं। एक दूसरे को छूकर ही नहीं बताया जा सकता है कि वो कितने करीब हैं। रिश्तों को दिल से महसूस करना फिजिकल टच से ज्यादा अहम है। कोरोना की वजह से हम एक दूसरे से सिर्फ शारीरिक तौर पर दूर हैं। दिल से हम आज भी उतने ही करीब हैं, जितने पहले थे और रहेंगे। फिलहाल जान की सलामती के लिए अपनों के बीच ये दूरी जरूरी है। बीबीसी ने भी इस बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
जिन देशों में कोरोना की रफ्तार कम हुई है वहां अब लॉकडाउन हटाया जा रहा है। जिंदगी फिर से पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है लेकिन जानकारों का कहना है कि अब पहले जैसा सामान्य जीवन जीना इतना आसान नहीं रह जाएगा। अभी तक लोग घरों में हैं। कम से कम लोगों से बात-चीत हो पाती थी, लेकिन जैसे ही हमारी पेशेवर जिंदगी दोबारा पटरी पर लौटेगी, लोगों के साथ मिलना जुलना होगा तो बातचीत करना सबसे मुश्किल होगा।
कोरोना वायरस से बचने के लिए अपनाई गई सोशल डिस्टेंसिंग ने हमें छूने के एहसास को भुला देने को मजबूर कर दिया है। एक ही घर में परिवार के लोग भी एक दूसरे से दूरी बना कर बैठते हैं, गलती से कोई किसी के नजदीक आ भी जाए तो खुद को ही अजीब लगने लगता है। हम उसे दूरी बनाने के लिए कहने लगते हैं और कई बार तमीज नहीं जैसे शब्द बोल देते हैं। ये सिलसिला सिर्फ लॉकडाउन तक ही नहीं रहने वाला है बल्कि हमें अब इन आदतों के साथ जीना सीखना होगा।
हालांकि सोशल मीडिया और मुख्यधारा के मीडिया के जरिए हमें सिखाया जा रहा है कि सोशल डिस्टेंस के साथ हमें कैसे रहना चाहिए। लॉकडाउन के दौरान जिस तरह के प्रोग्राम टीवी पर दिखाए गए उनसे हमें जहनी तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग स्वीकार करने के लिए तैयार करने की कोशिश की गई है।
जानकारों के मुताबिक हमारी अभी की जिंदगी में जिस तरह के बदलाव हुए हैं वो अपने आप में काफी अनोखे हैं। जैसे एक दूसरे का चुंबन लेना फ्रांस की संस्कृति का हिस्सा है, मार्च महीने में कोविड-19 के चलते वहां के स्वास्थ्य मंत्री ने इस पर पाबंदी लगा दी लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 15 वीं शताब्दी में ब्यूबोनिक प्लेग की वजह से राजा हेनरी चतुर्थ ने भी चुंबन पर रोक लगा दी थी।
एक बात और भी सामने आ रही है कि संक्रमित लोगों से दूरी बनाने के नकारात्मक पहलू भी हैं। जिन दिनों एड्स या एचआईवी फैला था तो लोगों ने पीड़ितों से दूरी बनानी शुरु कर दी थी। उन्हें बुरी नजर से देखा जाने लगा था। कुछ लोग एड्स संक्रमित लोगों से हाथ मिलाने से भी डरते थे। उन्हें लगता था कि हाथ मिलाने से कहीं वो भी एड्स का शिकार ना हो जाएं जबकि रिसर्च साबित कर चुकीं थी कि ये एक सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फ़ेक्शन है लेकिन, इसे लेकर एक बेवजह का डर और भ्रांति लोगों के मन में बैठ गई थी। इसी तरह टीबी और कोढ़ के मरीजों से दूरी बनाई जाती थी। टीबी के मरीज से परिवार के लोग ही दूरी बनाने लगते थे। उसके कपड़े, बर्तन, उसके इस्तेमाल की सभी चीजें अलग कर दी जाती थीं।
जब कोविड-19 के लिए दवा खोज ली जाएगी तो ये भी पता चल जाएगा कि इससे बचने के लिए एक दूसरे से दूर रहना कितना और कब तक जरुरी है। इसके बाद लोगों का बर्ताव भी बदलने लगेगा लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता हमें दूरी तो रखनी ही होगी। जानकारों का ये भी कहना है कि एक दूसरे से हाथ मिलाना हम सभी की बचपन से आदत में शुमार है, चाहे महिला हो या पुरूष दोनों आगे बढ़कर हाथ मिलाते थे, मगर अब हाथ मिलाने के लिए उसे क़ाबू में रखना इतना आसान नहीं होगा। हालांकि लोगों ने इसके विकल्प तलाशे हैं, जैसे पैर छूना, कोहनी टच करके अभिवादन करना लेकिन ये अभी तक बहुत अधिक कारगर विकल्प साबित नहीं हुए।