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वयस्कों की तुलना में बच्चे होते हैं ज्यादा जिज्ञासु, दुनिया को समझने की करते रहते हैं कोशिश

ओहियो यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर स्काउटस्की का कहना था कि अधिकांश बच्चे छिपे हुए विकल्प की अनिश्चितता से आर्किषत थे। इस कारण वे उस विकल्प का पता लगाना चाहते थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 09:46 AM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 09:56 AM (IST)
वयस्कों की तुलना में बच्चे होते हैं ज्यादा जिज्ञासु, दुनिया को समझने की करते रहते हैं कोशिश
वयस्कों की तुलना में बच्चे होते हैं ज्यादा जिज्ञासु, दुनिया को समझने की करते रहते हैं कोशिश

ओहियो, एएनआइ। बड़ों की तुलना में चार- पांच वर्ष की आयु के बच्चे तत्काल इनाम पाने के लिए विकल्पों का पता लगाना ज्यादा पसंद करते हैं। सरल शब्दों में कहें तो उनमें वयस्कों की तुलना में ज्यादा जिज्ञासा होती है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर और अध्ययन के सह- लेखक व्लादिमीर स्लाउत्स्की का कहना है कि बचपन में किसी चीज के बारे में जानकारी प्राप्त करने की तीव्र इच्छा होती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बच्चे खुद यह समझना चाहते हैं कि दुनिया कैसे काम करती है।

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शोधकर्ताओं ने पाया कि जब वयस्कों और चार से पांच साल के बच्चों को एक ऐसा खेल खेलने को कहा गया, जिसमें कुछ खास विकल्पों में उन्हें पुरस्कार मिलना था, तो वयस्कों और बच्चों दोनों ने जल्दी ही जान लिया कि कौन से विकल्प उन्हें ज्यादा फायदा देंगे। जहां वयस्कों ने अपने ज्ञान का उपयोग ज्यादा से ज्यादा पुरस्कारों को पाने के लिए किया, वहीं बच्चों ने अन्य विकल्पों की खोज जारी रखी, ताकि वे अपनी जरूरत की चीजों को प्राप्त कर सकें। शोधकर्ताओं का कहना है कि वयस्क यह मानते हैं कि बच्चे अचानक ही किसी चीज को खोज लेते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। दरअसल, बच्चे व्यवस्थित रूप से खोजबीन करते हैं, ताकि उनसे इस क्रम में कोई भी जानकारी छूटे नहीं। अध्ययन के परिणाम हाल ही में जर्नल डेवपलमेंटल साइंस में ऑनलाइन प्रकाशित किए गए हैं।

कैसे किया गया अध्ययन: शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए दो अध्ययन किए। पहले अध्ययन में 34 वयस्कों और चार वर्ष की उम्र के 32 बच्चों को शामिल किया गया। इसके तहत एक कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रतिभागियों को दूसरे ग्रहों के चार जीवों को दिखाया गया। प्रतिभागियों को प्रत्येक जीव पर क्लिक करने पर वर्चुअल टॉफी का एक सेट मिलना था। सबसे अच्छे जीव के बदले 10 टॉफी मिलनी थी, जबकि अन्य के लिए क्रमश: एक, दो और तीन टॉफी। इन सभी को 100 से अधिक परीक्षणों में अधिक से अधिक टॉफियां प्राप्त करने का लक्ष्य दिया गया था।

उम्मीद के मुताबिक, वयस्कों ने जल्दी से जान लिया कि किस जीव के बदले सबसे अधिक टॉफियां मिलनी हैं और उन्होंने उस जीव को 86 फीसद समय चुना, लेकिन बच्चों ने केवल 43 फीसद समय के लिए इस प्राणी का चयन किया। इसके पीछे कारण यह नहीं था कि बच्चे ये नहीं पता लगा सके थे कि कौन सा विकल्प उन्हें ज्यादा टॉफियां दिलाएगा। इसका पता अध्ययन के बाद किए गए एक स्मृति परीक्षण (मेमोरी टेस्ट) में चला जब यह पाया गया कि 22 में से 20 बच्चों ने सही ढंग से पहचान लिया कि किस जीव के बदले उन्हें सबसे अधिक टॉफियां मिलनी थीं।

स्लाउत्स्की के साथ अध्ययन में शामिल रहे यूनिवर्सिटी के शोधार्थी नैथेनियल ब्लैंको ने कहा, ‘वयस्कों की तरह बच्चे ज्यादा से ज्यादा इनाम प्राप्त करने के लिए प्रेरित नहीं हुए। वे खोज के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने में ज्यादा रुचि लेते देखे गए। स्लाउत्स्की ने बताया कि सबसे दिलचस्प यह था कि बच्चे जीवों पर बेतरतीब ढंग से क्लिक नहीं करते दिखे। इससे साफ था कि उनकी इच्छा अन्य विकल्पों के माध्यम से यह जानने की थी कि अगले जीव में क्या छिपा है। 

दूसरे अध्ययन में, खेल पहले जैसा ही था, लेकिन चार विकल्पों में से तीन के बदले मिलने वाले इनाम दिखाई दे रहे थे। केवल एक छिपा हुआ था। जो विकल्प छिपा हुआ था, वह हर बार बदला गया था, लेकिन सभी चार विकल्पों के मूल्य कभी नहीं बदले, भले ही वह छिपा हो। पहले प्रयोग की तरह ही वयस्कों ने लगभग 94 फीसद समय सबसे अच्छा विकल्प चुना, जबकि बच्चों ने केवल 40 फीसद समय ही ऐसा किया। इस बारे में स्काउटस्की का कहना था कि अधिकांश बच्चे छिपे हुए विकल्प की अनिश्चितता से आर्किषत थे। इस कारण वे उस विकल्प का पता लगाना चाहते थे।


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