नैनो पार्टिकल से ब्रेन कैंसर का होगा इलाज, ट्यूमर बनने के मार्ग को बाधित करने वाले एक सूक्ष्म अणु की हुई पहचान
मिशिगन मेडिसीन सेंटर की शोधकर्ता मारिया जी. कास्त्रो तथा न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर आर सी शिडनर ने बताया कि इस मालीक्यूल को ब्रेन में नहीं पाया जा सकता है। इसलिए रोगियों के इलाज में मुश्किलें बनी हुई हैं ।
वाशिंगटन, एएनआइ। ब्रेन कैंसर के इलाज की दिशा में एक नई उम्मीद जगी है। यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन रोगेल कैंसर सेंटर के विज्ञानियों ने एक ऐसे नैनो पार्टिकल की पहचान की है, जो ब्रेन ट्यूमर बनने के मार्ग को बाधित कर देता है। लेकिन अभी इस बारे में शोध होना है कि इस इन्हीबिटर (अवरोधक अणु) को रक्त प्रवाह के जरिये ब्रेन ट्यूमर तक पहुंचाया कैसे जाए। शोधकर्ताओं की टीम ने विभिन्न प्रयोगशालाओं के सहयोग से इन्हीबिटर को पकड़ने के लिए एक नैनो पार्टिकल बनाया है और इसका परिणाम अपेक्षा से बेहतर निकला है।
चूहों पर किए गए प्रयोग में यह नैनो पार्टिकल न सिर्फ इन्हीबिटर को ट्यूमर तक पहुंचाता है, जहां पर कैंसर को खत्म करने के लिए दवा इम्यून सिस्टम को आन कर देता है, बल्कि यह प्रक्रिया इम्यून मेमोरी को इस तरह से सक्रिय करता है ताकि वह फिर से पनपे ट्यूमर को भी खत्म करता है। इस नए तरीके से ब्रेन ट्यूमर का तो इलाज होने के साथ ही उसके दोबारा पनपने की रोकथाम भी की जा सकेगी।
मिशिगन मेडिसीन सेंटर की शोधकर्ता मारिया जी. कास्त्रो तथा न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर आर सी शिडनर ने बताया कि इस मालीक्यूल को ब्रेन में नहीं पाया जा सकता है। इसलिए रोगियों के इलाज में मुश्किलें बनी हुई हैं। कास्त्रो इस शोध की वरिष्ठ लेखिका हैं और उनका यह अध्ययन एसीएस नैनो जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
एक अन्य लेखक पेड्रो आर लोवेनस्टीन ने बताया कि विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज से रोगियों के बचने की दर में सुधार होने के बावजूद ग्लियोमा का इलाज उतना प्रभावी नहीं हो पाया है। इलाज होने के बाद भी महज पांच प्रतिशत मरीज ही पांच साल तक जीवित रह पाते हैं।
ब्लड ब्रेन बैरियर को भी पार करना होती है एक चुनौती
देखा गया है कि ग्लियोमा पर सामान्यतया पारंपरिक इलाज बेअसर साबित होता है और इसमें ट्यूमर के भीतर इम्यून सिस्टम दब जाता है। इसलिए इम्यून आधारित नई थेरेपी भी प्रभावी नहीं हो पाती है। इसके अलावा ब्लड ब्रेन बैरियर को भी पार करना एक चुनौती होती है, इसलिए ट्यूमर तक प्रभावी इलाज नहीं पहुंच पाता है।
ऐसे में कास्त्रो-लोवेनस्टीन लैब को एक अवसर दिखाई दिया। सूक्ष्म मालीक्यूल इन्हीबिटर एएमडी3100 विकसित किया गया है, जो सीएक्ससीआर12 को ब्लाक करने में सक्षम है। सीएक्ससीआर12- एक प्रकार का साइटोकाइन है, जो ग्लियोमा कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है और यह इम्यून सिस्टम के चारों ओर एक आवरण बना देता है। यह इम्यून सिस्टम को ट्यूमर से लड़ने से रोकता है।
चूहों के ग्लियोमा माडल पर किया गया प्रयोग
शोधकर्ताओं ने चूहों के ग्लियोमा (एक प्रकार का ब्रेन कैंसर) माडल पर किए प्रयोग में पाया है कि एएमडी3100 - सीएक्ससीआर12 को इम्यूनिटी को दबाने वाले मायलाइड कोशिकाओं से जुड़ने से रोकता है। इस तरह से इन कोशिकाओं के कमजोर होने से इम्यून सिस्टम अपनी क्षमता बनाए रखता है और वह ट्यूमर कोशिकाओं पर हमला बोल सकता है।
लेकिन फिलहाल परेशानी एएमडी3100 को ट्यूमर तक पहुंचाने की है। यह दवा न तो रक्त प्रवाह के जरिये पहुंच सकती है और न ही यह ब्लड ब्रेन बैरियर को भेद सकता है। इसलिए इसे ब्रेन तक पहुंचाना एक समस्या बनी हुई है।
ग्लियोमा ट्यूमर के कारण रक्त वाहिकाएं भी हो जाती हैं असामान्य
इस समस्या से निपटने के लिए शोधकर्ताओं ने यू-एम कालेज आफ इंजीनियरिंग के सहयोग से प्रोटीन आधारित नैनो पार्टिकल्स बनाया है, जो इन्हीबिटर को अपने अंदर समाहित कर लेगा। उम्मीद की जा रही है कि इसके जरिये इसे रक्त प्रवाह के माध्यम से पहुंचाए जाने में मदद मिल सकती है। इसके साथ ही ऐसी कोशिश जारी है कि यह इन्हीबिटर ब्लड ब्रेन बैरियर को पार सके। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि ग्लियोमा ट्यूमर के कारण रक्त वाहिकाएं भी असामान्य हो जाती है, जिससे रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है।
प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने एएमडी3100 से युक्त नैनो पार्टिकल्स को ग्लियोमा पीडि़त चूहे में इंजेक्ट किया। इस नैनो पार्टिकल्स की सतह पर एक प्रकार का पेप्टाइड है, जो ब्रेन ट्यूमर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन को बांध लेता है। इस तरह से जब नैनो पार्टिकल्स रक्त प्रवाह के जरिये ट्यूमर की ओर बढ़ता है तो वह एएमडी3100 स्त्रावित करता जाता है, जिससे रक्त वाहिकाएं सामान्य बनी रहती हैं। इसके बाद नैनो पार्टिकल्स अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं, जहां वे दवा को रिलीज कर देते हैं। इससे इम्यूनिटी को दबाने वाले मायोलाइड कोशिकाओं का ट्यूमर में प्रवेश बंद हो जाता है। इसके कारण इम्यून सेल्स ट्यूमर को मारने में सक्षम हो पाते हैं और ट्यूमर का बढ़ना भी धीमा हो जाता है।