राष्ट्रपति बाइडन के इस बाण से ड्रैगन हुआ घायल, कूटनीति के मोर्चे पर अमेरिका ने चीन को दी पटखनी, जानें-एक्सपर्ट व्यू
बाइडन की डेमोक्रेसी कार्ड के क्या कूटनीतिक मायने हैं। इस कार्ड के जरिए अमेरिका ने चीन को क्या बड़ा संदेश दिया। भारत के लिए यह क्यों खास है। आइए जानते हैं कि अमेरिका के इस कदम को प्रो हर्ष वी पंत किस नजरिए से देखते हैं।
नई दिल्ली, रमेश मिश्र। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की वर्चुअल बैठक के ठीक बाद बाइडन प्रशासन के इस कदम से चीन को मिर्ची जरूर लगी होगी। दोनों नेताओं की बैठक के बाद राष्ट्रपति बाइडन ने डेमोक्रेसी पर वर्चुअल समिट बुलाई है। बाइडन के इस आमंत्रण पर करीब 110 देश हिस्सा लेंगे। खास बात यह है कि इसमें चीन को आमंत्रित नहीं किया गया है, जबकि ताइवान को बुलाया गया है। बाइडन की डेमोक्रेसी कार्ड के क्या कूटनीतिक मायने हैं। इस कार्ड के जरिए अमेरिका ने चीन को क्या बड़ा संदेश दिया। भारत के लिए यह क्यों खास है। आइए जानते हैं कि अमेरिका के इस कदम को प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) किस नजरिए से देखते हैं। उनकी नजर में इसके क्या मायने हैं।
लोकतंत्र के सम्मेलन को आप किस रूप में देखते हैं, बाइडन की क्या रणनीति है ?
1- देखिए, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन का लोकतंत्र पर महासम्मेलन के बड़े मायने हैं। दरअसल, चिनफिंग और बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक बेनतीजा रहने के बाद बाइडन प्रशासन ने शायद यह तय कर लिया है कि चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्त करना है। उसे दुनिया के अन्य मुल्कों से अलग-थलग करना है। लोकतंत्र पर चीन के बहिष्कार को इसी कड़ी के रूप में देखना चाहिए। आने वाले समय में बाइडन प्रशासन की नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राष्ट्रपति बाइडन चीन से सामरिक या रणनीतिक संघर्ष के बजाए कूटनीतिक दांव से चित करने की रणनीति बना सकते हैं।
2- शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच सामरिक और वैचारिक संघर्ष एक साथ चलते थे। नाटो संगठन का उदय भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए। नाटो एक व्यवस्था, एक विचार, एक हित वाले देशों का एक शक्तिशाली संगठन है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ था। इसका मकसद पूर्व सोवियत संघ को हर मोर्चे पर घेरना था। पूर्व सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो की भूमिका में बदलाव आया है। चीन की महाशक्ति बनने की होड़ में बाइडन प्रशासन एक बार फिर इस नीति पर लौट आया है।
क्या ताइवान को लेकर बाइडन चीन को अपना संदेश देने में सफल रहे ?
इस सम्मेलन में ताइवान के आमंत्रण का बड़ा संदेश है। भले ही अमेरिका ने ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी हो, लेकिन बाइडन ने उसे लोकतंत्र सम्मेलन में निमंत्रित किया। इसके बड़े कूटनीतिक मायने हैं। बाइडन प्रशासन ने अपने इस कदम से चीन को यह साफ संदेश दिया है कि भले ही उसने उसे मान्यता नहीं दिया हो, लेकिन वह लोकतात्रिंक मूल्यों की सुरक्षा और उसकी हिफाजत के लिए तत्पर हैं। जाहिर है कि बाइडन के इस कदम से चीन को जरूर मिर्ची लगी होगी। खासकर तब जब चीन ने अफगानिस्तान और म्यांमार के मुद्दे पर लोकतंत्र का उपहास किया था। इसके अलावा बाइडन ने ताइवान को लेकर अपने स्टैंड को साफ कर दिया। वह इसमें एक हद तक सफल भी रहें।
एक विचार और एक व्यवस्था वाले देशों को एक साथ लाने का मकसद क्या है ?
दरअसल, बाइडन प्रशासन ने चीन पर अपने स्टैंड को साफ कर दिया है। बाइडन के इस कदम से चीन और अमेरिका के बीच कूटनीतिक जंग तेज हो सकती है। बाइडन प्रशासन चीन के साथ सीधे संघर्ष करने के बजाए कूटनीतिक जंग को तेज करना चाहता है। यही कारण है कि बाइडन अब लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देशों को एकजुट कर रहे हैं। बाइडन का यह अभियान सीधे तौर पर चीन के खिलाफ है। इसके अलावा बाइडन ने अपने इस कदम से अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया और म्यांमार को भी एक संदेश दिया है। उन्होंने दुनिया को केवल दो हिस्सों में बांटा है। एक में लोकतांत्रिक मूल्यों का संसार है तो दूसरे में गैर लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देश शामिल हैं। उनकी यह योजना चीन को दुनिया से अलग-थलग करने की है।
लोकतंत्र के सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाने के क्या है मायने ?
लोकतंत्र के सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाने के पीछ बाइडन की एक बड़ी योजना हो सकती है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती जगजाहिर है। ऐसे में इस मंच पर पाकिस्तान को शामिल करने का मकसद यह संदेश देना है कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती बेमेल है। फिलहाल, यह तो वक्त बताएगा कि वह अपने इस मिशन में कितना सफल हुए, लेकिन बाइडन ने इस सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाकर चीन के गाल पर बड़ा थप्पड़ मारा है।
एस-400 मिसाइल के बाद भारत को बुलाने के क्या है निहितार्थ हैं ?
भारत को इस सम्मेलन में बुलाने के बड़े मायने हैं। खासकर तब जब रूसी एस-400 मिसाइल को लेकर अमेरिका में राजनीति गरम है। एस-400 मिसाइल को लेकर भारत पर प्रतिबंधों की बात चल रही है। ऐसे में इस सम्मेलन में भारत का शामिल होना इस बात का संकेत देता है कि नई दिल्ली और व्हाइट हाउस के रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। भारत के लिए यह एक शुभ संदेश है। भारत को बुलाकर बाइडन प्रशासन ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत और अमेरिका की दोस्ती गाढ़ी हो चुकी है। इस पर किसी का प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। 110 देशों की इस लिस्ट से नाटो के एक सदस्य तुर्की का नाम गायब है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी की गई देशों की सूची में रूस का नाम भी नहीं है, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र के देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका को भी इस लिस्ट से बाहर रखा गया है।