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तेजी से बढ़ रही आर्कटिक में गर्मी, 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तापमान, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

global warming वैज्ञानिकों ने अपने अध्‍ययन में पाया है कि पिछली एक सदी में पृथ्वी का कुल तापमान जितना बढ़ा उतना ताप अकेले आर्कटिक में केवल एक दशक में ही बढ़ गया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 07 Dec 2019 09:37 AM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2019 10:46 AM (IST)
तेजी से बढ़ रही आर्कटिक में गर्मी, 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तापमान, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
तेजी से बढ़ रही आर्कटिक में गर्मी, 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तापमान, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

लॉस एंजिलिस, पीटीआइ। ग्लोबल वार्मिग के खतरों के प्रति आगाह करते हुए एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछली एक सदी में पृथ्वी का कुल तापमान जितना बढ़ा, उतना ताप अकेले आर्कटिक में केवल एक दशक में ही बढ़ गया है। ध्रुवों पर ग्लोबल वार्मिग के प्रभावों का आंकलन करने वाले इस अध्ययन में कहा गया है कि पिछले एक दशक में आर्कटिक का तापमान 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। यह आंकड़ा बीते 137 सालों में तापमान में हुई कुल वृद्धि के बराबर है।

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जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में तापमान में वृद्धि का आर्कटिक और अंटार्कटिका के वन्य जीवन, टुंड्रा वनस्पति, मीथेन के रिसाव और बर्फ की चादरों पर पड़े प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया गया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसी) डेविस के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान यह भी जांच की गई कि यदि ग्लोबल वार्मिग के कारण पृथ्वी का तापमान दो डिग्री बढ़ता है तो इसका ध्रुवीय क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

यूसी डेविस में ‘जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी’ को पढ़ाने वाले और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक एरिक पोस्ट ने कहा, ‘पिछले एक दशक में हुए कई बदलाव इतने नाटकीय हैं कि वे आपको आश्चर्यचकित करते हैं। साथ ही यह सोचने को मजबूर करते हैं कि गर्मी के कारण अगले दशक में पृथ्वी का स्वरूप कैसा हो सकता है।

उन्होंने कहा कि यदि हम पुराने चित्रों को देखकर यह कल्पना करते हैं कि आज भी आर्कटिक का स्वरूप वैसा ही है तो यह बस खुद को समझाने वाली बात है। इसका स्वरूप लगातार बदल रहा है। ग्लोबल वार्मिग के कारण इसका परितंत्र भी काफी बदल गया है। यदि हम समय रहते इससे बचने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाते तो यह निश्चित है कि आज से कुछ दशकों बाद आप अपने बच्चों से कहेंगे कि आर्कटिक का यह हिस्सा कभी बर्फ से ढका रहता था।

उत्सर्जन में कटौती जरूरी

शोधकर्ताओं ने कहा, ‘यदि हम 40 साल बाद भी तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे बनाए रखना चाहते हैं कि हमारे नीति-नियंताओं को हर क्षेत्र में सामान्य दृष्टिकोण अपनाना होगा और उत्सर्जन में कटौती के लिए भी प्रयास करने होंगे।’ पोस्ट ने कहा, ‘यह बेहद चिंताजनक है कि जिस दर से आर्कटिक का तापमान बढ़ रहा है यदि इस गति पर काबू नहीं पाया गया तो अगले कुछ वर्षो में यहां का ताप दो डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच सकता है।’

सात डिग्री तक बढ़ेगा ताप

अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो इससे आर्कटिक के तापमान में सात डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है, जबकि अंटार्कटिका के तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो इसके भयावह परिणाम देखने को मिलेंगे, इसलिए समय रहते कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। 


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