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कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद ज्यादा समय तक नहीं टिकती एंटीबॉडीज : अध्ययन

यह शोध रिपोर्ट अमेरिकी पत्रिका एमबीओ में प्रकाशित हुई है। अब तक किए गए अध्ययन में यह सामने आया था कि कोरोना वायरस के धावा बोलने के बाद मरीज के शरीर में दो से तीन हफ्ते बाद एंटीबॉडीज अपने चरम पर पहुंच जाती है।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 07:58 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 07:58 AM (IST)
कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद ज्यादा समय तक नहीं टिकती एंटीबॉडीज : अध्ययन
अध्ययन में खुलासा रिकवर होने के बाद अधिक समय तक नहीं टिकती कोरोना की एंटीबॉडीज

वाशिंगटन, एजेंसियां। कोरोना संक्रमण को लेकर दुनियाभर में अलग-अलग शोध हो रहे हैं। इसके कारणों और बचाव के उपाय तलाशे जा रहे हैं। अब एक नए शोध में पता चला है कि इस वायरस से संक्रमित मरीज के ठीक होने के बाद उसके रक्त में मौजूद एंटीबॉडीज का स्तर बहुत तेजी से कम होता है।

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यह शोध रिपोर्ट अमेरिकी पत्रिका एमबीओ में प्रकाशित हुई है। अब तक किए गए अध्ययन में यह सामने आया था कि कोरोना वायरस के धावा बोलने के बाद मरीज के शरीर में दो से तीन हफ्ते बाद एंटीबॉडीज अपने चरम पर पहुंच जाती है। एंटीबॉडीज एक प्रोटीन है, जो वायरस से लड़ने का काम करती है। मरीज के ठीक होने के बाद उसके रक्त में कम से कम तीन महीने तक एंटीबॉडीज मौजूद रहती है।

लेकिन नए अध्ययन के मुताबिक मरीज जब पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है और उसमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं रह जाता तो छह से 10 हफ्ते यानी डेढ़ से ढाई महीने के भीतर एंटीबॉडीज का स्तर तेजी से कम होता है। इससे उस मरीज के दोबारा संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है।

तेज पराबैंगनी प्रकाश कोरोना वायरस का दुश्मन

अमेरिका की ही एक अन्य पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पराबैंगनी प्रकाश के उच्च स्तर से कोरोना वायरस का विकास बाधित होता है। विज्ञानियों ने कहा है कि यही कारण है कि गर्मी के मौसम में कोरोना वायरस का प्रकोप कम रहा और सर्दी के मौसम में यह बहुत खतरनाक हो गया।

वायु प्रदूषण कोरोना वायरस का सहायक

नई दिल्ली में विशेषज्ञों ने कहा है कि वायु प्रदूषण से कोरोना वायरस का प्रसार तेज हो सकता है। जो लोग पहले संक्रमित हो चुके हैं, उनके दोबारा महामारी की चपेट में आने का खतरा भी है। एम्स के डॉक्टर नीरज निश्चल का कहना है कि जांच केंद्रों के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के साथ ही उससे मिलते जुलते वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या भी बढ़ेगी। इससे अस्पतालों पर भी बोझ बढ़ेगा, क्योंकि ज्यादा संख्या में मरीजों को भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी।


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