फेस शील्ड व वॉल्व वाले मास्क मिलकर भी रोक नहीं सकते कोरोना, भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दी जानकारी
भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह बताया गया है कि एक्सहेलेशन वॉल्व वाले मास्क के साथ फेस शील्ड का इस्तेमाल करने बाद भी इंसान कोरोना के चपेट में आ सकता है।
न्यूयॉर्क, आइएएनएस। कोरोना काल में इस महामारी से बचने के लिए सरकार की ओर से लगातार उचित सावधानियां बरतने की सलाह दी जा रही है। इसके बाद भी कई बार बिना मास्क लगाए लोग सड़कों पर घूमते दिखाई पड़ जाते हैं। वहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो हर वक्त मास्क लगाए रहते हैं, लेकिन ठीक तरीके से नहीं। इस पर ही हुए एक अध्ययन का नतीजा अब सामने आया है। भारतीय-अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह बताया गया है कि कि एक्सहेलेशन वॉल्व वाले मास्क के साथ फेस शील्ड का इस्तेमाल करने बाद भी कोरोना की चपेट में आसानी से आया जा सकता है।
इसकी वजह बताते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि अगर कोरोना से संक्रमित कोई व्यक्ति खांसता है, तो उसकी छींटों (ड्रॉपलेट) से निकलने वाले वायरस फेस शील्ड की दीवारों पर पहुंच कर घूमते रहते हैं और फिर दूसरे लोग भी इसकी चपेट में आस सकते हैं। इस तरह कोरोना का संक्रमण आसानी से दूसरों को शिकार बना सकता है।
ड्रॉपलेट्स काफी बड़े पैमाने पर फैलते हैं
फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी में सीटेक के निदेशक प्रो. मनहर धनक का कहना है कि समय के साथ ये ड्रॉपलेट्स सामने और पीछे की ओर दोनों ही दिशाओं में काफी बड़े पैमाने पर फैलते हैं। हालांकि, जैसे-जैसे वक्त ज्यादा होता जाता है इसके प्रसार में कमी आती जाती है और यह कम प्रभावी भी होता जाता है।
ड्रॉपलेट्स शील्ड की दीवारों में पड़ने के साथ ही इधर-उधर प्रसार करते रहते हैं
शोधपत्र के मुख्य लेखक सिद्धार्थ वर्मा और एफएयू के डिपार्टमेंट ऑफ ओशन एंड मेकैनिकल इंजीनियरिंग के तकनीकी अधिकारी जॉन फ्रैंकेनफील्ड ने बताया कि अध्ययन के दौरान हमने यह देखा कि फेस शील्ड की मदद से ड्रॉपलेट्स को सामने से चेहरे पर पड़ने से तो रोका जा सकता है, लेकिन हवाओं में विचरण करने वाले ड्रॉपलेट्स शील्ड की दीवारों में पड़ने के साथ ही इधर-उधर प्रसार करते रहते हैं।
अध्ययन में एन-95 मास्क के बारे में क्या बताया गया
फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स एकेडेमिक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में एन-95 मास्क के बारे में बताया कि इसमें मौजूद एक्सहेलेशन वॉल्व की मदद से बड़ी संख्या में ड्रॉपलेट्स इनमें से होकर आप तक पहुंच सकते हैं। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए प्रयोगशाला में एक लेजर लाइट शीट और ड्रॉपलेट्स के रूप में डिस्टिल्ड वॉटर व ग्लिसरीन का इस्तेमाल करते हुए इनके प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया और पाया कि किसी के खांसने या छींकने से निकलने वाले ये ड्रॉपलेट्स सतह पर व्यापक पैमाने पर फैलते हैं।
बिना वाल्व वाले आम मास्क का उपयोग करने की सलाह
सिद्धार्थ वर्मा ने कहा कि अब लोग सर्जिकल मास्क या फिर साधारण कपड़े की जगह एक्सहेलेशन वॉल्व वाले मास्क का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इसमें सांस लेने में आसानी होती है। हालांकि इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि जब सांस लेते हैं तो हवा फिल्टर होकर आती है, लेकिन जब हम सांस छोड़ते हैं तो यह फिल्टर होकर नहीं जाती। इससे वायरस भी आसानी से बाहर निकल आता है। फेस शील्ड लगाने से यह उसके ऊपर चिपक जाता है और फिर धीरे-धीरे संपर्क में आने वालों को निशाना बनाने लगता है। इसलिए शोधकर्ताओं ने लोगों को वायरस से बचने के लिए बिना वाल्व वाले आम मास्क का उपयोग करने की सलाह दी है।