अमेरिका के चुनावी अखाड़े में 100 भारतवंशी भी लगा रहे दांव
एक ओर जहां अमेरिका में प्रवासियों को लेकर तनातनी चरम पर है, वहीं मिड-टर्म चुनावों में भारतीय मूल के करीब 100 अमेरिकी दांव लगा रहे हैं।
वाशिंगटन, प्रेट्र। तमाम मुद्दों के बीच इस बार अमेरिका के मिड-टर्म चुनाव कुछ अलग वजह से भी चर्चा में हैं। यह वजह है भारतीय समुदाय की बढ़ती दावेदारी। एक ओर जहां अमेरिका में प्रवासियों को लेकर तनातनी चरम पर है, वहीं मिड-टर्म चुनावों में भारतीय मूल के करीब 100 अमेरिकी दांव लगा रहे हैं। प्रतिनिधि सभा और सीनेट से लेकर प्रांतीय विधायिकाओं तक कई सीटों पर भारतवंशियों की दावेदारी मजबूत लग रही है।
अमेरिका की आबादी में बमुश्किल एक फीसद हिस्सेदारी वाले भारतीय समुदाय की इतनी बड़ी दावेदारी को इस वर्ग की बढ़ती महत्वाकांक्षा का प्रतीक माना जा रहा है। भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा, 'अमेरिका की राजनीति में भारतीय-अमेरिकियों की संख्या बढ़ते देखना अद्भुत है।' राष्ट्रपति के कार्यकाल के बीच में होने के कारण इन चुनावों को मिड-टर्म कहा जाता है। इनके नतीजों से राष्ट्रपति की सत्ता पर सीधा असर नहीं पड़ता लेकिन प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स) और सीनेट में पार्टी की सीटें बहुमत से कम हो जाने की स्थिति में राष्ट्रपति को फैसले लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मतदान मंगलवार को होगा।
'समोसा कॉकस' पर रहेगी निगाह
अमेरिकी संसद में इस समय पांच भारतवंशी हैं। इनमें एमी बेरा, रो खन्ना, राजा कृष्णमूर्ति और प्रमिला जयपाल प्रतिनिधि सभा तथा कमला हैरिस सीनेट सदस्य हैं। इस समूह को 'समोसा कॉकस' कहा जाता है। सालभर पहले राजा कृष्णमूर्ति ने एक कार्यक्रम में इस समूह के लिए 'समोसा कॉकस' शब्द का इस्तेमाल किया था। इस कॉकस में से एमी बेरा तीन बार चुनाव जीतकर चौथी बार मैदान में हैं। वहीं रो खन्ना, कृष्णमूर्ति और प्रमिला जयपाल दूसरी बार ताल ठोक रहे हैं। जानकारों का कहना है कि चारों भारतीय इस बार भी आसानी से चुनाव जीत जाएंगे।
कुछ और बड़े दावेदार
इन चारों के अलावा सात और भारतवंशी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स में चुनकर आने के लिए मैदान में हैं। इनमें हिरल टिपिरनेनी, प्रिस्टन कुलकर्णी और आफताब पुरेवल का दावा मजबूत माना जा रहा है। इनके अलावा सफल उद्यमी शिव अय्यदुरई सीनेट के लिए लड़ रहे हैं। निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे अय्यदुरई का मुकाबला डेमोक्रेट एलिजाबेथ वॉरेन से है। इन सबके अतिरिक्त अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, प्रांतीय व स्थानीय स्तर पर चुनाव मैदान में करीब 100 भारतीय-अमेरिकी किस्मत आजमा रहे हैं।
कई नए चेहरों की उम्मीद
एरिजोना से लेकर टेक्सास, ओहायो, मिशिगन और अन्य क्षेत्रों में भारतवंशियों के लिए प्रचार कर चुके रिचर्ड वर्मा का कहना है कि इस बार प्रतिनिधि सभा और प्रांतीय विधायिकाओं में कई नए भारतीय चेहरे दिख सकते हैं। राजा कृष्णमूर्ति ने भी कांग्रेस में भारतीय मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ने की उम्मीद जताई है। छह साल पहले जब पहली बार एमी बेरा अमेरिकी कांग्रेस में चुनकर आए थे, तब उन्होंने एक दशक में भारतीयों की संख्या दहाई में पहुंचने की उम्मीद जताई थी। हालिया रुझान उनकी उम्मीदों के अनुरूप ही लग रहे हैं।