भाजपा के हाथ से एक और ग्राम पंचायत निकला
कैप्शन जश्न -भाजपा पंचायत प्रधान के खिलाफ 12 वोट पड़े लगाया गया भ्रष्टाचार का आरोप -पंचा
कैप्शन : जश्न
-भाजपा पंचायत प्रधान के खिलाफ 12 वोट पड़े, लगाया गया भ्रष्टाचार का आरोप
-पंचायत चुनाव में मिले थे सर्वाधिक 13 सीटें
-तीन भाजपा पंचायत सदस्य को अगवा करके अविश्वास प्रस्ताव लाया गया
संवाद सूत्र,मालदा: भाजपा के हाथ से धीरे-धीरे एक-एक ग्राम पंचायत निकल रहा है। पंचायत सदस्य तृणमूल में शामिल हो रहे है। आंकड़े की बढ़त बनाकर तृणमूल एक के बाद एक पंचायत को फतह कर रही है। वह भी बगैर चुनाव के। यह अप्रत्यक्ष रूप से विधानसभा चुनाव का परिणाम है। इस बार भाजपा के हाथ से मालदा का साहापुर ग्राम पंचायत हाथ से निकल गया। कुछ दिन पहले ही तृणमूल ने मुचिया ग्राम पंचायत पर कब्जा किया था। शनिवार को अविश्वास प्रस्ताव को लेकर वोटिंग थी। इसमें भाजपा पंचायत प्रधान को पराजय का मुख देखना पड़ा। भाजपा पंचायत प्रधान वकील मंडल को हटना पड़ा। अब नया प्रधान बनाया जाएगा। गौरतलब है कि 2017 के पंचायत चुनाव में पुरातन मालदा के साहपुर ग्राम पंचायत के कुल 23 सीटों में से सर्वाधिक 13 सीट भाजपा को, चार तृणमूल कांग्रेस, चार कांग्रेस को, एक सीपीएम और एक निर्दलीय उम्मीवार को मिली। जादुई आंकड़ा को छूते ही भाजपा की बोर्ड बनी और वकील मंडल पंचायत प्रधान बने। बीच में भाजपा के तीन, कांग्रेस के तीन, एक सीपीएम और एक निर्दलीय उम्मीदवार तृणमूल में शामिल हो गए। शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बैठक बुलायी गयी थी। पंचायत प्रधान के खिलाफ 12 वोट पड़े थे। भ्रष्टाचार का आरोप प्रधान व उनके भाई पर लगाया गया।
अपने ऊपर लगाए सभी आरोप को पंचायत प्रधान ने खारिज किया। वोटिंग में हारने पर पंचायत प्रधान को हटना पड़ा। इसे लेकर फिर तृणमूल-भाजपा के बीच राजनीति गर्म होने लगी है। दोनों ओर से आरोप की बौछार हो रही है।
इस संबंध में भाजपा के जिला अध्यक्ष गोविंद चंद्र मंडल ने बताया कि जबरन भाजपा के तीन पंचायत सदस्य को ले जाकर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। राज्य में लोकतंत्र नहीं है। वहीं तृणमूल के राज्य महासचिव कृष्णेंदु नारायण चौधरी ने कहा कि भय व प्रलोभन की राजनीति तृणमूल नहीं करती। भाजपा शासित राज्यों में भाजपा क्या कर रही है, पहले उन्हें खुद देखना चाहिए। वहां लोकतंत्र है या नहीं? इसके बाद तृणमूल पर टिप्पणी करें। प्रधान व प्रधान के भैया से तंग हो गया था पंचायत बोर्ड। यह दादागीरी का अंत ऐसे ही होना था।
कैप्शन : जीतने के बाद तृणमूल कार्यकर्ता खुशी मनाते हुए