साहस: लगातार साइकिल चला तमिलनाडु से पहुंचा बंगाल, 12 दिन में तय किया 2000 किलोमीटर का सफर
कोलकाता से सटे दक्षिण चौबीस परगना जिले के डायमंड हार्बर का रहने वाला एसी मैकेनिक अतीउल साह लॉकडाउन की वजह से तमिलनाडु में फंस गया था।
राज्य ब्यूरो, कोलकाताः जीवन चलने का नाम चलते रहे सुबह-ओ-शाम...की रस्ता कट जाएगा मितरा...की बादल छंट जाएगा मितरा...की दुख से झुकना ना मितरा...1972 की फिल्म शोर का यह गाना बंगाल के एक गरीब श्रमिक के लिए प्रेरणा जैसा रहा। इस युवक ने लगातार 12 दिनों तक साइकिल चलाकर तमिलनाडु के सेलम से बंगाल के डायमंड हार्बर पहुंचा है। कोलकाता से सटे दक्षिण चौबीस परगना जिले के डायमंड हार्बर का रहने वाला एसी मैकेनिक अतीउल साह लॉकडाउन की वजह से तमिलनाडु में फंस गया था। रुपये व भोजन खत्म होने के बावजूद उसने अपनी मानसिक ताकत को कमजोर नहीं होने दिया और तमिलनाडु से करीब 2,000 किलोमीटर की दूरी 12 दिनों में साइकिल से तय कर बुधवार को घर पहुंचा। देशभर में प्रवासी श्रमिकों की जो दुर्दशा है एेसे में घर पहुंचर अतीउल खुद को भाग्यशाली मान रहा है। क्योंकि इसी तरह मुंबई से एक राजमिस्त्री इंसाफ अली ने उत्तर प्रदेश स्थित अपने घर के लिए 1,500 किलोमीटर की दूरी तय की थी। गांव पहुंचा और क्वारंटाइन सेंटर में जाने के कुछ घंटे बाद ही दम तोड़ दिया। हालांकि, अतीउल स्वस्थ हैं।
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लॉकडाउन की घोषणा से महज पांच दिन पहले गया था तमिलनाडु
लॉकडाउन की घोषणा से पांच दिन पहले वह सेंट्रल एसी स्थापित करने के लिए अपने घर डायमंड हार्बर से तमिलनाडु के सेलम गया था। वहां एसी लगाने का कार्य शुरू होने से पहले ही देश भर में लॉकडाउन की घोषणा हो गई और डायमंड हार्बर में रामनगर थाने के सिमला गांव का बाशिंदा अतीउल वहां फंस गया। वह काम नहीं कर सका और कोई पैसा भी नहीं मिला। उस पर भी कई दिनों तक भोजन पर सैकड़ों रुपये खर्च करने पड़े। हालात एेसे हो गए कि घर से फोन कर रुपये मांगना पड़ा। भाई ने किसी तरह से बंदोबस्त कर 3 हजार रुपये भेज दिए। लेकिन वह रुपये भी खत्म हो गए। अतीउल ने घर से दोबारा फोन कर पैसे मांगे। लेकिन अब पैसे भेजना संभव नहीं था।
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सुरक्षा गार्ड को फोन देकर ली पुरानी साइकिल और कुछ रुपये
ठेकेदार की ओर से कोई अग्रिम धनराशि न मिलने से वह काफी परेशान था। अतुल ने यह सोचकर घर लौटने का फैसला किया कि अगर वह ऐसे ही पड़ा रहा तो भूख से मरना पड़ेगा। इसी के बाद उसने घर लौटने का मन बनाया। जिस निर्माणाधीन मकान में वह फंसा था वहां का सुरक्षा गार्ड ने एक पुरानी साइकिल देकर अतीउल की मदद की। बदले में अतीउल ने अपना स्मार्ट मोबाइल दिया और गार्ड से कुछ रुपये भी मांगे, ताकि घर लौटते समय कुछ खा-पी सके।
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...और ऐसे शुरू हुआ सफर
17 अप्रैल की रात को वह साइकिल लेकर तमिलनाडु से निकल पड़ा। अतीउल दिन में अधिकांश समय साइकिल चलाता और थक जाने पर सड़क किनारे बंद दुकान या मंदिरों की छांव कुछ आराम करता। जब कहीं दुकान खुली मिलती तो बिस्कुट खरीद कर खा लेता था। जब कहीं सड़क किनारे किसी स्वेच्छासेवी संगठन की ओर से खाना बांटे जाते तो लेकर खा लेते। कई दिन तो एेसा रहा कि बिना खाए ही रहना पड़ा। रात में बारिश से बचने के लिए सड़क के नीचे बनी पुलिया या अंडरपास में शरण लेनी पड़ी। कहीं गश्त लगाती पुलिस वाले पकड़ लेते तो पांव पकड़कर रोने व गिराने के बाद मुक्ति मिल जाती थी और इसी तरह घर पहुंचा।
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चिकित्सकीय जांच के बाद अतीउल होम क्वारंटाइन में
कुछ घंटों की जांच के बाद डॉक्टरों ने अतीउल को होम क्वारंटाइन में भेज दिया। वह अगामी 14 दिनों तक घर में बंद रहेगा। डायमंड हार्बर ब्लॉक 2 के युवा तृणमूल के अध्यक्ष महाबूब रहमान गाइन ने इस गरीब प्रवासी श्रमिक की मदद को आगे आए हैं। अतीउल के घर खाद्य सामग्री पहुंचाने के साथ-साथ आर्थिक मदद का भी आश्वासन दिया। अतीउल चार भाइयों में सबसे छोटा है। बाबा अब्दुल सत्तार शाह स्थानीय बाजार में मछली बेचते हैं। दादा मजदूर थे। पिछले पांच वर्षों से अतीउल चेन्नई, बेंगलुरु और तमिलनाडु में विभिन्न ठेकेदारों के साथ काम कर रहा है। वह फरवरी के अंत में घर लौटा था और मार्च के अंत में फिर से तमिलनाडु चला गया था।
कोट
अगर मैं नहीं निकलता तो बिना भोजन के मर जाता। पांव सूज गए थे तो पुलिसवालों ने मुझे दवाइयों के साथ-साथ एक मास्क भी खरीद कर दिए।
-अतीउल साह
तमिलनाडु से लौटा श्रमिक