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West Bengal: 2,500 किलोमीटर पैदल चलकर लद्दाख पहुंचा सिंगुर का युवक

सिंगुर के बाजेमेलिया गांव के रहने वाले मिलन माझी ने गत 22 फरवरी को हावड़ा ब्रिज से अपनी पैदल यात्रा शुरू की थी। 83 दिन पैदल चलने के बाद लद्दाख पहुंचे। रविवार सुबह मिलन लद्दाख से ट्रेन से हावड़ा स्टेशन पहुंचा तो सिंगुर के लोगों ने उसका भव्य स्वागत किया।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 06:54 PM (IST)Updated: Sun, 22 May 2022 06:54 PM (IST)
West Bengal: 2,500 किलोमीटर पैदल चलकर लद्दाख पहुंचा सिंगुर का युवक
मिलन माझी ने कहा- बचपन का सपना पूरा हुआ। फोटो सौजन्‍य: स्‍वजन।

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल के हुगली जिले का सिंगुर इलाका टाटा के लखटकिया कार कारखाने के खिलाफ ममता बनर्जी के भूमि आंदोलन के कारण एक दशक पहले चर्चा में आया था। अब यह एक बार फिर सुर्खियों में है। वहां के गरीब परिवार के एक युवक ने लद्दाख तक की पैदल यात्रा कर इसे फिर से चर्चा में ला दिया है। सिंगुर के बाजेमेलिया गांव के रहने वाले मिलन माझी ने लगभग 2,500 किलोमीटर का फासला पैदल तय किया। रविवार सुबह मिलन लद्दाख से ट्रेन से हावड़ा स्टेशन पहुंचा तो सिंगुर के लोगों ने उसका भव्य स्वागत किया और गाजे-बाजे के साथ उसे ले गए।

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मिलन ने इस साल 22 फरवरी को हावड़ा ब्रिज से अपनी पैदल यात्रा शुरू की थी। 83 दिनों तक पैदल चलने के बाद वह 15 मई को लद्दाख के खारदुंगला पहुंचा। वहां पहुंचकर उसने अपने परिवारवालों से फोन पर बातचीत की और कहा कि उसका सपना पूरा हुआ। अब वे वापस आ रहे हैं। रविवार सुबह मिलन वापस सिंगुर पहुंचा तो उसके स्थानीय लोगों ने 'भारत माता की जय' का नारा लगाते हुए उसका स्वागत किया। मिलन ने 83 दिनों की पैदल यात्रा के अनुभव को लोगों के साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि अच्छा और बुरा, दोनों तरह का अनुभव प्राप्त हुआ, जो भविष्य में काम आएगा। मिलन बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा होते हुए लद्दाख पहुंचा था।

मिलन का कहना है कि इस यात्रा को पूरा करना उसका सपना था लेकिन घर की माली हालत खराब होने के कारण वह इसे पूरा नहीं कर पा रहा था। मिलन के पिता अनिल माझी गांव में चाय की दुकान चलाते हैं। मिलन ने पिता से मोटरसाइकिल खरीद देने की जिद की थी। वह पहले मोटरसाइकिल से लद्दाख की यात्रा करना चाहता था लेकिन पिता आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण मिलन को मोटरसाइकिल नहीं खरीदकर दे पा रहे थे। इसके बाद मिलन ने इस यात्रा को पैदल ही तय करने का निर्णय लिया। पूरी लगन के साथ उसने 83 दिनों में अपना सपना पूरा किया। मिलन का कहना है कि वे प्रतिदिन 35 से 45 किलोमीटर की पैदल यात्रा करता था। मिलन कोरोना के पहले रानीगंज स्थित एक कारखाने में मैकेनिकल इंजीनियर के तौर पर काम करते थे। लाकडाउन में उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद वे पिता के साथ चाय की दुकान चला रहे थे।  बेटे की सफलता से मिलन के पिता अनिल माझी फूले नहीं समा रहे हैं। गांववालों के साथ वे भी बेटे की कामयाबी पर नाचते गाते नजर आएं। सिंगुर के लोगों का कहना है कि मिलन ने जो काम किया है, उससे सिंगुर का नाम रोशन हुआ है।


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