बंगाल में एससी व एसटी के लिए बनेंगे दो अलग आयोग
कैचवर्ड कवायद -पिछड़ी जातियों का वोटबैंक साधने की कवायद में जुटी सरकार -बीते चुनावों
कैचवर्ड : कवायद
-पिछड़ी जातियों का वोटबैंक साधने की कवायद में जुटी सरकार
-बीते चुनावों में आदिवासी बहुल जिलों में भाजपा का रहा है बेहतर प्रदर्शन
-राज्य का स्वायत्त निकाय होगा पाच सदस्यीय नया आयोग
जागरण संवाददाता, कोलकाता : बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कल्याण के लिए दो नए आयोग गठित करने का निर्णय लिया है। इस संदर्भ में 25 नवंबर को फैसला लिया गया था। जानकार इसे वोटबैंक की राजनीति के तहत पिछड़ी जातियों को लुभाने की कवायद मान रहे हैं। सरकार के इस कदम को राज्य के आदिवासी बहुल जंगलमहल के जिलों पुरुलिया, मेदिनीपुर, बीरभूम, झाड़ग्राम और बांकुड़ा के तहत पड़ने वाले विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के बढ़े वोटबैंक की काट के रूप में भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
बता दें कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति आयोग के बाद राज्य का यह आयोग स्वायत्त निकाय होगा जिसमें पाच सदस्य होंगे। आयोग का अध्यक्ष आईएएस रैंक का अधिकारी होगा और डीआइजी रैंक का एक आइपीएस अधिकारी भी इस आयोग का हिस्सा होगा। बताया जाता है कि आयोग एससी व एसटी समुदाय के लोगों की शिकायतों के निवारण के लिए कदम उठाएगा और समुदाय के लोगों को बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए उनके सुझावों पर अमल करेगा।
गौरतलब है कि पिछले पंचायत चुनाव और लोकसभा चुनाव में जंगलमहल के जिलों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इसके बाद से ही तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी आदिवासी बेल्ट पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं। हाल ही में उन्होंने विशेष जनसंपर्क अभियान दीदी के बोलो चलाया था जिसके कई सकारात्मक परिणाम पार्टी हित में नजर आ रहे हैं। दरअसल कभी माओवाद का गढ़ रहा जंगलमहल इलाका वाममोर्चा का मजबूत किला रहा था जिसमें तृणमूल ने सेंधमारी की थी लेकिन हालिया कुछ वर्षो में भाजपा ने तृणमूल के वोट बैंक में जबरदस्त सेंधमारी की है।
लोकसभा चुनाव में उक्त जिलों से तृणमूल के हक में जब जनादेश नहीं आया तो कई तरह की बातें सामने आई। पार्टी की मंथन में निकल कर आया कि आदिवासी बहुल जिलों में लोगों को अपने अधिकारों का लाभ नहीं मिल रहा है।
इसके बाद इसी साल 2 जुलाई को इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने सभी 84 एससी / एसटी विधायकों (सभी राजनीतिक दलों से) के साथ राज्य विधानसभा में एक बैठक की और अधिकारियों को निर्देश दिया कि हर हाल में एससी/एससी प्रमाणपत्रों के संवितरण की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी। इसी दौरान दो अलग-अलग आयोगों का मुद्दा भी उठा था।