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West Bengal Politics: विधायकों को पार्टी के साथ एकजुट रखना प्रदेश भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती

West Bengal Politics भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का सवाल है कि तृणमूल की इतनी बड़ी जीत के बावजूद हिंसा क्यों हो रही है? पुलिस के सामने ही हमले हो रहे हैं लेकिन वह मूकदर्शक बनी हुई है। अगर मुख्यमंत्री इसकी जिम्मेदारी नहीं लेंगी तो कौन लेगा?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 11 May 2021 12:46 PM (IST)Updated: Tue, 11 May 2021 12:46 PM (IST)
West Bengal Politics: विधायकों को पार्टी के साथ एकजुट रखना प्रदेश भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती
बंगाल विधानसभा में नवनिर्वाचित पार्टी विधायकों के साथ शुक्रवार को बैठक करते प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष। फाइल

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। West Bengal Politics भाजपा भले बंगाल की सत्ता में नहीं आ सकी, लेकिन तीन से 77 सीटों का सफर अवश्य पूरा कर लिया। सूबे के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है, जब मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भगवा ब्रिगेड को मिला है। लेकिन भाजपा के सामने 77 चुनौतियां भी हैं। विधायकों को पार्टी के साथ एकजुट रखना प्रदेश भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती होगी। बंगाल में चुनावी नतीजे आने के बाद जिस रफ्तार से हिंसा हो रही है, उससे अपने स्थानीय नेताओं, कार्यकर्ताओं को बचाए रखना भाजपा की पहली चुनौती है। इसके बाद असली परीक्षा तो जीते हुए 77 पार्टी विधायकों को टूटने से रोकने की होगी।

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अगर भाजपा के दावों को देखें तो दो मई को चुनाव परिणाम आने के बाद से लेकर अब तक उसके 18 पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की हत्या हो चुकी है। यह सही है कि तृणमूल को अप्रत्याशित 213 सीटों पर जीत मिली है। उसके बाद से जगह-जगह हमले शुरू हो गए। विपक्ष की ओर से आरोप लगाए जा रहे हैं कि पुलिस व प्रशासनिक स्तर पर भी हमलावरों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं हो रही है। भाजपा के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ी चिंता का विषय है कि इस तरह के हमलों के बीच पार्टी कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं और समर्थकों को लामबंद कर उनका मनोबल ऊंचा कैसे रखा जाए।

फिलहाल तो हमले और हत्याएं हो रही हैं। परंतु 2012 के बाद जिस तरह से साम-दाम-दंड-भेद के जरिये माकपा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं व नेताओं को तोड़ा गया, वह भाजपा के लिए बड़ा सबक है। इसी का नतीजा है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी बनने वाली कांग्रेस और 34 वर्षों तक लगातार शासन करने वाला वाममोर्चा का इस चुनाव में खाता तक नहीं खुला। ऐसे में भाजपा के लिए आगामी पांच वर्षों तक अपने 77 विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखना और पूरी ऊर्जा के साथ तृणमूल से मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

यहां बार-बार तृणमूल पर विपक्षियों को कमजोर करने का आरोप लगता रहा है। इस कार्य में पुलिस का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। अभी तो हिंसा का दौर चल रहा है, लेकिन जैसे ही हिंसा बंद होगी, वैसे ही दबाव की राजनीति शुरू हो जाएगी। पुराने मुकदमे खोले जाएंगे या फिर नए लादे जाएंगे। थाने में बुलाकर पूछताछ होगी। इस तरह से परेशान किया जाएगा कि हार कर भाजपा छोड़ना पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मानस भुइयां हैं, जिन्होंने 2016 के विधानसभा चुनाव में सबंग से जीत दर्ज की थी, लेकिन उन्हें हत्या के मामले में नामजद कर दिया गया। कुछ दिनों तक उन्होंने इसके खिलाफ लड़ाई भी लड़ी, लेकिन बाद में उन्होंने सरेंडर कर दिया और तृणमूल का झंडा थाम लिया। इसके बाद हत्या का मुकदमा गायब हो गया। ऐसे कई और उदाहरण हैं।

जब तक तृणमूल में थे तो मुकुल रॉय और अर्जुन सिंह पूरी तरह से स्वच्छ छवि वाले थे, लेकिन जैसे ही भाजपा में शामिल हुए, उनके खिलाफ दर्जनों आपराधिक मुकदमे दर्ज हो गए। ऐसे में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे नेता कितने दिनों तक पार्टी के साथ रह पाएंगे, यह तो वक्त बताएगा। माकपा व कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब यह था कि केंद्र में उनकी सरकार नहीं थी, परंतु भाजपा के लिए यह एक प्लस प्वाइंट है कि केंद्र में उनकी सरकार है, जो हिंसा और अन्य मामले में पार्टी नेताओं के पक्ष में खड़ी रहती है। अभी जैसे ही हिंसा की खबरें आई तो तत्काल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बंगाल पहुंच गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी टीम भेज दी। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने फोन पर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से बात कर हिंसा के बारे में जानकारी ली। साथ ही राज्य में जारी हिंसा पर गहरी चिंता जताई। राज्यपाल भी सक्रिय हैं।

इधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का सवाल है कि तृणमूल की इतनी बड़ी जीत के बावजूद हिंसा क्यों हो रही है? पुलिस के सामने ही हमले हो रहे हैं, लेकिन वह मूकदर्शक बनी हुई है। अगर मुख्यमंत्री इसकी जिम्मेदारी नहीं लेंगी तो कौन लेगा? दिलीप घोष का सवाल यह बताने को काफी है कि हालात क्या हैं? इन तमाम चुनौतियों के बीच प्रदेश भाजपा नेतृत्व कैसे संगठन को लामबंद रखते हुए तृणमूल सरकार के समक्ष चुनौती पेश करता है, यह भी देखने वाली बात होगी।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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