Move to Jagran APP

बंगाल में बंपर वोटिंग के क्‍या हैं मायने, क्‍या कहते रहे हैं पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजे

आयोग ने बंगाल में मतदान की अवधि 6.30 बजे तक निर्धारित कर रखी है। जिसके चलते पिछली बार यानी 2016 में इन तीस सीटों पर पड़े 85.50 फीसद वोट के करीब यह आंकड़ा पहुंचने या फिर उससे भी अधिक होने की उम्मीद जताई जा रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 27 Mar 2021 10:23 PM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 08:43 AM (IST)
बंगाल में बंपर वोटिंग के क्‍या हैं मायने, क्‍या कहते रहे हैं पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजे
खेल शुरू करना और खेल खत्म करना दोनों ही जनता जनार्दन के हाथों में है।

जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। बंगाल में विधानसभा चुनाव में 'खेला होबे', 'खेला शेष' जैसे जुमले जमकर इस्तेमाल हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हर सभा में कह रही हैं खेला होबे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह यहां तक कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक कह रहे हैं इस बार खेला शेष। परंतु, इन सबके बीच शनिवार को बंगाल में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं ने भारी मतदान कर खेल बिगाड़ने वाला खेल कर दिया है। क्योंकि, खेल शुरू करना और खेल खत्म करना दोनों ही जनता जनार्दन के हाथों में है।

loksabha election banner

वैसे तो बंगाल में हर चुनाव में ही भारी मतदान होते रहते हैं। ऐसे में इस बार शाम पांच बजे तक 80 फीसद जो मतदान हुआ इसके मायने तलाशना आसान नहीं है। जैसे आमतौर पर सियासी पंडितों का एक ही फॉर्मूला होता है कि हाई वोटिंग मतलब सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है। परंतु, बंगाल के मतदाताओं ने कई बार यह झुठला चुका है। इसीलिए यहां के लोगों का नब्ज पहचानना आसान नहीं है।

जब बंगाल के चुनावी इतिहास पर नजर डालते हैं तो 2001 में 75.23 फीसद वोटिंग हुई थी और नतीजा सत्तारूढ़ वाममोर्चा के पक्ष में ही रहा। इसी तरह 2006 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता ने बंगाल में अपने पैर जमाने की काफी कोशिश की, मगर वाममोर्चा की जड़ें नहीं हिली। उस साल विधानसभा चुनावों में 81.95 फीसद मतदान हुआ और फायदा वामदलों को ही हुआ था। परंतु, 2011 में ममता ने वाममोर्चे के 34 सालों के शासन को जड़ से उखाड़ फेंक दिया। इस वर्ष 84.46 फीसद वोट पड़े थे। 2016 में उनके खिलाफ काफी माहौल बनाया गया, राज्य में 82.96 फीसद वोटिंग हुई मगर जीत तृणमूल को ही मिली। हालांकि, पहले उनके सामने पारंपरिक तौर पर चुनाव लड़ने वाले वामदल थे। परंतु, इस बार का चुनाव अलग है और वह इसलिए क्योंकि इस बार ममता के सामने भाजपा है। ऐसे में 2016 या फिर 2011 से पूर्व के चुनावों में वामदलों की तरह भारी मतदान और सत्ता विरोधी लहर को गलत साबित करना ममता के लिए आसान नहीं होगा।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में शाम 5 बजे तक ही करीब 80 फीसद वोटिंग हो गई थी। वैसे आयोग ने बंगाल में मतदान की अवधि 6.30 बजे तक निर्धारित कर रखी है। जिसके चलते पिछली बार यानी 2016 में इन तीस सीटों पर पड़े 85.50 फीसद वोट के करीब यह आंकड़ा पहुंचने या फिर उससे भी अधिक होने की उम्मीद जताई जा रही है। इससे साफ हो गया कि भारी मतदान का ट्रेंड आगे भी जारी रहने वाला है। हालांकि, कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रथम चरण में किस दल के नेता व कार्यकर्ता अधिक बेचैन थे उससे साफ होता है कि खेल किसका बिगड़ा और किसका बना है। शनिवार को हुए मतदान की एक बातें काफी अहम रही कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ओर से भाजपा पर एक बाद एक कई आरोप लगाए गए। मतदान के दौरान ही दस सांसदों की टीम चुनाव आयोग के पास पहुंच गई थी। वहीं इंटरनेट मीडिया पर भी भाजपा के खिलाफ तृणमूल की टीम और उनके नेता काफी सक्रिय थे और बेचैनी भी साफ झलक रही थी। हालांकि, भाजपा ने भी पलटवार जरूर किया, लेकिन 90 फीसद बूथों पर शांतिपूर्ण मतदान होने की बातें कर संतुष्टि भी जता दी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.