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35 सालों से वित्त मंत्री देने वाली सीट पर भाजपा भारी, तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के बागी होने का मिलता दिख रहा फायदा

कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले की अहम विधानसभा सीटों में खड़दह भी एक है जहां 22 अप्रैल को मतदान होना है। इस सीट ने बंगाल को लगातार 35 वर्षों तक वित्त मंत्री दिए हैं। इस कारण इसे वित्त मंत्रियों की सीट भी कहा जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 08:30 PM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 09:51 PM (IST)
35 सालों से वित्त मंत्री देने वाली सीट पर भाजपा भारी, तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के बागी होने का मिलता दिख रहा फायदा
खड़दह सीट ने बंगाल को लगातार 35 वर्षो तक दिए हैं वित्त मंत्री

इंद्रजीत सिंह, कोलकाता : कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले की अहम विधानसभा सीटों में खड़दह भी एक है, जहां 22 अप्रैल को मतदान होना है। यह सीट कई मायनों में अहम है। इस सीट ने बंगाल को लगातार 35 वर्षों तक वित्त मंत्री दिए हैं। इस कारण इसे वित्त मंत्रियों की सीट भी कहा जाता है। इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सीट राज्य को फिर एक वित्त मंत्री देती है या फिर यह परंपरा टूट जाती है। इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है, मगर भाजपा कड़ी टक्कर दे रही है।

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दरअसल, तृणमूल में फैले असंतोष और लोकसभा चुनाव में जनता के दुलार के सहारे भाजपा बेड़ा पार लगाने की उम्मीद लगाए बैठी है। इस सीट पर माकपा के पूर्व वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने लगातार पांच बार जीत दर्ज की है, वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के मौजूदा वित्त मंत्री अमित मित्रा लगातार दो बार असीम दासगुप्ता को हराकर यहां से जीत का ताज पहना है। कभी माकपा का गढ़ रही यह सीट अभी टीएमसी के कब्जे में है, जिसे इस बार दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, इस विधानसभा क्षेत्र के कई तृणमूल कांग्रेस ने नेता बागी हो गए हैं। कई असंतुष्ट पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए हैं।

लिहाजा पार्टी में असंतोष तृणमूल का खेल बिगाड़ सकता है। दूसरी तरफ, यहां भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद काफी मजबूत हुई है और वह तृणमूल को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में है। तृणमूल ने खड़दह से लगातार दो बार जीत दर्ज करने वाले दिग्गज नेता व वित्त मंत्री अमित मित्रा को उनकी सेहत का हवाला देते हुए टिकट नहीं दिया। इससे अमित मित्रा के समर्थक बेहद नाराज हैं। कई इलाकों में समर्थकों ने घोषित उम्मीदवार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया है।

...तो बरकरार रह सकती है परंपरा

यहां से इस बार तृणमूल ने काजल सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा की ओर से मैदान में बैरकपुर के विधायक शीलभद्र दत्त हैं, जो हाल ही में तृणमूल छोडक़र भाजपा में शामिल हुए हैं। इसके अलावा संयुक्त मोर्चा के प्रत्याशी देबज्योति दास हैं। स्थानीय नगरपालिका के प्रशासक काजल सिन्हा का दावा है कि तृणमूल इस बार बड़े अंतर से जीतेगी। दूसरी ओर भाजपा उम्मीदवार शीलभद्र दत्त का कहना है कि खड़दह में भाजपा की स्थिति लगातार मजबूत हुई है तथा पार्टी की जीत तय है।

दूसरी ओर, संयुक्त मोर्चा के प्रत्याशी देबज्योति दास का कहना है कि जनता तृणमूल तथा भाजपा दोनों की हकीकत समझ गई है तथा इस बार उनका भरोसा संयुक्त मोर्चे पर ही है। काजल प्रशासक जरूर रहे हैैं, मगर उनका कोई इस तरह का बैकग्राउंड नहीं है, जिसके बूते कहा जा सके कि वह विजयी रहे और उनकी पार्टी की सरकार बनी तो उनको वित्त मंत्री बनाया जा सकता है। इसी तरह की स्थिति शीलभद्र के साथ भी है। अलबत्ता, मंत्री पद हासिल करने के लिए कोई पैमाना नहीं होता है। यदि हालात इसी पैमाने पर खरे उतरे तो परंपरा बरकरार रह सकती है।

आंकड़े दे रहे भाजपा के मजबूत होने की गवाही

खड़दह सीट दमदम संसदीय क्षेत्र के अधीन है। वर्ष 2016 में तृणमूल के उम्मीदवार को यहां 49.65 फीसद वोट मिले थे। माकपा और कांग्रेस के गठबंधन को 37.07 फीसद मत प्राप्त हुए थे। भाजपा महज 9.68 फीसद ही वोट हासिल कर पाई थी। इसके बाद वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव हुए दमदम संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल को 41.93 फीसद वोट मिले तो भाजपा ने 41.21 फीसद वोट हासिल किए। माकपा और कांग्रेस को क्रमश: 11.41 और 2.11 फीसद ही वोट मिले थे।

जीत-हार का ट्रैक रिकार्ड

-खड़दह विधानसभा सीट पर वर्ष 1957 में पहले चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने जीत हासिल की थी। उसके बाद से लेकर लगातार 12 बार यानी वर्ष 1962 से वर्ष 2011 तक वाम मोर्चा और उसके घटक दलों ने ही जीत का परचम लहराया। दो बार भाकपा ने जीत हासिल की तो 10 बार माकपा इस सीट से जीती। इस लिहाज से देखें तो यह क्षेत्र शुरू से ही वाममोर्चा का गढ़ रहा। वर्ष 2011 में सत्ता परिवर्तन की लहर आई और तृणमूल ने इस सीट को वाम मोर्चा से छीन लिया। वर्ष 2011 और उसके बाद वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर अमित मित्रा यहां से जीते।


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