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Hindi journalism Day: 'उदंत मार्त्तंड' ने बंगभूमि कोलकाता को दिया था आधुनिक हिंदी की जन्मभूमि का दर्जा

Hindi journalism Day हिंदी के आधुनिक काल की शुरुआत 1850 से मानी जाती है लेकिन सही मायने में इसका शुभारंभ उससे करीब ढाई दशक पहले उस दिन हुआ था जब उदंत मार्त्तंड का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 30 May 2021 12:55 PM (IST)Updated: Sun, 30 May 2021 12:55 PM (IST)
Hindi journalism Day: 'उदंत मार्त्तंड' ने बंगभूमि कोलकाता को दिया था आधुनिक हिंदी की जन्मभूमि का दर्जा
पूर्व अध्यक्ष डॉ. शंभुनाथ, पूर्व प्राचार्य विनय बिहारी सिंह।

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। हर साल 30 मई को 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' के तौर पर मनाया जाता है। कारण, इसी दिन सन् 1826 में हिंदी के सर्वप्रथम समाचार पत्र 'उदंत मार्त्तंड' का कोलकाता से प्रकाशन शुरू हुआ था लेकिन इस दिन का महत्व इतने तक ही सीमित नहीं है। हिंदी के आधुनिक काल की शुरुआत 1850 से मानी जाती है लेकिन सही मायने में इसका शुभारंभ उससे करीब ढाई दशक पहले उस दिन हुआ था, जब उदंत मार्त्तंड का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था।

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हिंदी पत्र-पत्रिकाओं व हिंदी पत्रकारिता की नींव रखने वाले इस कालजयी अखबार पर वर्षों से गहन अध्ययन करते आ रहे विद्वजन इसे स्वीकृति देते हुए एकमत से कहते हैं कि उदंत मार्त्तंड ने बंगभूमि कोलकाता को आधुनिक हिंदी की जन्मभूमि का भी दर्जा दिया है। वरिष्ठ पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कोलकाता स्थित अध्ययन केंद्र के पूर्व प्राचार्य विनय बिहारी सिंह ने कहा-'उदंत मार्त्तंड का शाब्दिक अर्थ है-'उगता हुआ सूर्य।' इसका प्रकाशन ऐसे वक्त शुरू हुआ था, जब बांग्ला अंग्रेजी, उर्दू और यहां तक कि फारसी भाषा के अखबार हिंदुस्तान में प्रकाशित होते थे, जबकि अनेक प्रदेशों की मुख्य भाषा होने के बावजूद देश में हिंदी का एक भी समाचार पत्र नहीं था।

उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी पंडित जुगल किशोर सुकुल (शुक्ल) के मन में इसे लेकर काफी बेचैनी थी। उन्होंने अथक प्रयास कर देश की तत्कालीन राजधानी कोलकाता से हिंदी में साप्ताहिक तौर पर समाचार पत्र निकालना शुरू किया। उदंत मार्तंड के पहले ही संस्करण से लोगों को इस बात का आभास हो गया था कि यह कितना जबरदस्त है। अखबार की लेखनी धारदार और व्यवस्था व दमन विरोधी थी इसलिए इसपर अंग्रेजों की कुदृष्टि पड़नी लाजिमी थी। उन्होंने समस्याएं पैदा करनी शुरू कर दीं। अन्य भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं को जहां ब्रिटिश सरकार से ढेरों विज्ञापन मिलते थे, वही उदंत मार्त्तंड को सुदूर क्षेत्रों में भेजने के लिए डाक शुल्क तक में रियायत नहीं दी गई। अर्थ के अभाव में उदंत मार्त्तंड 19 माह ही निकल पाया लेकिन इसने जाते-जाते हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के लिए अपार संभावनाएं पैदा कर दीं।

सिंह ने आगे कहा-'उदंत मार्त्तंड को कोलकाता से प्रकाशित करने के पीछे वृहद उद्देश्य व दूरदर्शिता थी। कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) उस समय क्रांतिकारियों की भूमि थी और देश की तत्कालीन राजधानी भी थी। पंडित जुगल किशोर शुक्ल भले कानपुर जैसे हिंदीपट्टी से थे लेकिन वे इस अखबार को ऐसी जगह से निकालना चाहते थे, जिससे यह आसानी से सबकी नजर में आए और इसकी आवाज देशभर में गूंजे। इसके लिए कलकत्ता से अच्छी जगह शायद ही कोई और हो सकती थी।'

कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं वागर्थ के संपादक डॉ. शंभुनाथ ने कहा-'उदंत मार्त्तंड के प्रकाशन के दिन से हिंदी के आधुनिक काल की शुरुआत हो गई थी, क्योंकि पत्रकारिता भी साहित्य का ही हिस्सा है। उदंत मार्त्तंड ने कोलकाता को आधुनिक हिंदी की जन्मभूमि में परिणत कर दिया था। बांग्ला के पहले समाचार पत्र के प्रकाशित होने के आठ साल बाद उदंत मार्तंड का प्रकाशन शुरू हुआ था। इस अखबार ने काफी संघर्ष करके मुकाम हासिल किया है।'

उदंत मार्त्तंड पर एक नजर

1826 में आज के ही दिन यानी 30 मई को अधिवक्ता पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता के बड़ाबाज़ार क्षेत्र के 37, अमरतल्ला लेन से उदंत मार्त्तंड का प्रकाशन शुरू किया, जो हर सप्ताह मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था। यह अखबार के पहले अंक की 500 प्रतियां प्रकाशित हुई थीं। विभिन्न समस्याओं से दो-चार होता हुआ यह अपनी सिर्फ एक ही वर्षगांठ मना पाया।

अंग्रेज सरकार ने 16 फरवरी, 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल और उनके सहयोगी मुन्नू ठाकुर को अखबार छापने का लाइसेंस तो दे दिया लेकिन बार-बार अनुरोध करने के बावजूद डाक दरों में इतनी भी रियायत देने को तैयार नहीं हुई कि इसे थोड़े कम पैसे में सुदूर पाठकों तक पहुंचाया जा सकें। सरकार के किसी विभाग को उसकी एक प्रति खरीदना भी मंजूर नहीं था। फलस्वरूप अखबार चलाने के लिए उसकी एक प्रति आठ आने में बेचनी पड़ती थी, जो उस जमाने में काफी महंगी थी। अखबार की भाषा में खड़ी बोली और ब्रजभाषा का घालमेल था। चार दिसंबर, 1827 को प्रकाशित अंतिम अंक में बंद होने की बड़ी ही मार्मिक घोषणा की गई। उदंत मार्त्तंड को महज 19 महीनों की उम्र नसीब हुई। अखबार ने अपने पत्रकारीय सिद्धांतों व सरोकारों से कभी समझौता नहीं किया। इसके 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए। 


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