Move to Jagran APP

West Bengal : लॉकडाउन के दौरान सुंदरवन में 12 लोग हुए बाघों के शिकार, मरने वालों में आधे प्रवासी मजदूर

लॉकडाउन के दौरान सुंदरवन में 12 लोग हुए बाघों के शिकार मरने वालों में आधे प्रवासी मजदूर -केकड़ा पकड़ते वक्त बाघों के हमले में गई जान

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 07 Aug 2020 01:36 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 01:36 PM (IST)
West Bengal : लॉकडाउन के दौरान सुंदरवन में 12 लोग हुए बाघों के शिकार, मरने वालों में आधे प्रवासी मजदूर
West Bengal : लॉकडाउन के दौरान सुंदरवन में 12 लोग हुए बाघों के शिकार, मरने वालों में आधे प्रवासी मजदूर

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव फॉरेस्ट सुंदरवन में लॉकडाउन के दौरान 12 लोग बाघों के शिकार हुए हैं। मरने वालों में छह प्रवासी मजदूर हैं, जो विभिन्न राज्यों से लौटे थे। लॉकडाउन के समय अन्य रोजगार नहीं मिलने की वजह से सभी केकड़ा पकड़ने सुंदरवन के वनांचलों में गए थे। वही बाघों के हमले में उनकी मौत हुई।

loksabha election banner

गौरतलब है कि मछलियां व केकड़ा पकड़ना सुंदरवन के लोगों का प्रमुख पेशा है। इस काम में जितना जोखिम है, उतना ही ज्यादा पैसा भी है। सरकार की तरफ से मछलियां व केकड़ा पकड़ने के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है लेकिन बहुत से लोग बिना लाइसेंस के ही मछलियां व केकड़ा पकड़ने जाते हैं। केकड़ा पकड़ने के लिए नदी तट पर उतरना पड़ता है। बाघ वहीं घात लगाए रहते हैं। कई बार बाघों के नदी में तैरकर नौका पर आकर हमला करने की भी घटनाएं हुई हैं। इसके बावजूद मछलियां और केकड़ा पकड़ना जारी है।

गौरतलब है कि एक दशक पहले आए चक्रवाती तूफान 'आइला' से सुंदरवन अभी तक उबर नहीं पाया है। सुंदरवन की अधिकांश जमीन एक फसली है। आइला के समय प्रचुर परिमाण में नदियों का लवण-युक्त पानी खेतों में घुस गया था, जिससे उनकी उर्वरा शक्ति पर गहरा असर पड़ा। बहुत सी कृषि भूमि बंजर हो गई, जिसके कारण मछलियां व केकड़ा पकड़ने पर स्थानीय लोगों की निर्भरता बढ़ गई है। लॉकडाउन के दौरान आए सुपर साइक्लोन 'एम्फन' से भी खेती को काफी नुकसान पहुंचा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मछलियां व केकड़ा पकड़े बिना जीविका चलाने का दूसरा कोई उपाय नहीं है इसलिए जान का जोखिम होने पर भी उन्हें यह काम करना पड़ता है।

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि सुंदरवन के लोग अस्तित्व रक्षा के लिए जितना संघर्ष करते हैं, बाघों को भी अपना वजूद कायम रखने के लिए उतना ही संघर्ष करना पड़ता है। बाघ सुंदरवन के रिहायशी इलाकों में जाकर इस समय हमले नहीं कर रहे। मनुष्य जब उनके इलाकों में अतिक्रमण करता है, तभी वे उन्हें अपना शिकार बना रहे हैं। बाघ हरिण, सूअर अथवा मनुष्य में कोई अंतर नहीं करता। उसके लिए सभी शिकार हैं।

सुंदरवन के बाघों में जन्म से नरभक्षी होने की प्रवृत्ति नहीं पाई गई है लेकिन उनके इलाकों में इसी तरह से अतिक्रमण बढ़ता रहा तो मनुष्य के प्रति उनका स्वभाव और हिंसक होता चला जाएगा। सुंदरवन के शमशेरनगर, कालीतला, योगेशगंज, हेमनगर कालिंदी और रायमंगल के लोग मछलियां और केकड़ा पकड़ने सबसे ज्यादा वनांचलों में जाते हैं। लाकडाउन शुरू होने के बाद आंध्र प्रदेश, केरल व अंडमान से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर सुंदरवन लौटे हैं। यहां उन्हें कोई दूसरा रोजगार नहीं मिल रहा, इसलिए वे समूह बनाकर मछलियां व केकड़ा पकड़ने जा रहे हैं ।

स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस जगह पर बाघों का सबसे ज्यादा खतरा है, सबसे ज्यादा केकड़ा उन्हीं इलाकों में पाया जाता है। बंगाल समेत देश के विभिन्न राज्यों में उनकी काफी अच्छी मांग है। ज्यादा आमदनी के लालच में कुछ लोग वनांचलों में जाने का जोखिम लेने से गुरेज नहीं करते, नतीजतन उनपर बाघों के हमले बढ़ रहे हैं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.