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नई शिक्षा नीति का तृणमूल से लेकर वामपंथियों ने किया विरोध, कई शिक्षाविदों ने बताया बेहतर

बंगाल में नई शिक्षा नीति 2020 को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। नई शिक्षा नीति का तृणमूल से लेकर वामपंथियों ने किया विरोध कई शिक्षाविदों ने बताया बेहतर।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 08:43 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 12:55 PM (IST)
नई शिक्षा नीति का तृणमूल से लेकर वामपंथियों ने किया विरोध, कई शिक्षाविदों ने बताया बेहतर
नई शिक्षा नीति का तृणमूल से लेकर वामपंथियों ने किया विरोध, कई शिक्षाविदों ने बताया बेहतर

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल में नई शिक्षा नीति, 2020 को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। एक ओर जहां आइआइटी खड़गपुर के निदेशक वीके तिवारी का कहना है कि नीति में अंतर-विषय अध्ययन पर विश्वास जताया गया है जो बिल्कुल सही है, वहीं राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने इस नीति को ‘पश्चिमी शिक्षा मॉडल की नकल’ बताया है।

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दो प्रतिष्ठित राजकीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का कहना है कि शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर वे बाद में टिप्पणी करेंगे, वहीं विश्वविद्यालय में शिक्षकों के दो वामपंथी संगठनों ने नीति का विरोध किया है। उनमें से एक का दावा है कि यह देश में शिक्षा को कम से कम 100 साल पीछे धकेल देगी।

केंद्रीय कैबिनेट ने 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति को मंजूरी देकर देश की 34 साल पुरानी (1986 में बनी) शिक्षा नीति को बदल दिया। आइआइटी खड़गपुर के निदेशक ने शनिवार को एक बयान में कहा कि प्राथमिक शिक्षा क्षेत्रीय भाषा में देने, संस्कृत पढ़ाना, तीन भाषाओं का फॉर्मूला लागू करना, यह देश के लोगों के लिए, खास तौर से ग्रामीण परिवेश के लोगों के लिए बहुत हितकारी होगा।

तिवारी ने कहा कि कई यूरोपीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत को प्रतिष्ठित पाठ्यक्रम के रूप में अपनाया जा रहा है। संपर्क करने पर जाधवपुर विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरंजन दास ने कहा कि मैं इसपर बाद में बोलूंगा। यह पूछने पर कि क्या जब नीति के मसौदे पर प्रतिष्ठित शिक्षाविदों की सलाह मांगी गई थी तो उन्होंने कुछ कहा था, दास ने कहा कि मैंने अपने विचार रखे थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी से उनकी प्रतिक्रिया पूछने पर उन्होंने कहा कि मैं आपको बता दूंगी।

बंगाल में जुलाई में बेरोजगारी बढ़ी पर राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी घटी

कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन के प्रतिबंधों में छूट के बावजूद जुलाई में बंगाल की बेरोजगारी दर मामूली रूप से बढ़कर 6.8 फीसद हो गई। एक रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) की एक रिपोर्ट के अनुसार जून में राज्य की बेरोजगारी दर 6.5 फीसद थी।

सीएमआइई ने कहा है कि इस दौरान आर्थिक गतिविधियां शुरू होने से राष्ट्रीय बेरोजगारी दर जून के 10.99 फीसद से कम होकर जुलाई में 7.43 फीसद पर आ गई। औद्योगिक रूप से उन्नत राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में जुलाई में बेरोजगारी की दर क्रमश: 1.9 फीसद, 4.4 फीसद और 8.1 फीसद रही। समीक्षाधीन माह में भारत में ग्रामीण बेरोजगारी दर 9.15 फीसद रही, जो एक माह पहले 12.02 फीसद थी। जुलाई में शहरी बेरोजगारी दर जून के 10.52 फीसद से कम होकर 6.66 फीसद पर आ गई। 


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