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Bengal Assembly Elections: बंगाल विधानसभा चुनाव में हिंदीभाषी वोटरों पर भी है तृणमूल की नजर

यहां की कुल आबादी में से 1.5 करोड़ हिंदीभाषी हैं कुल विधानसभा सीटों में 70-80 सीट हैं जहां ये हिंदीभाषी निर्णायक भूमिका में हैं तृणमूल तीसरे विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगी है और इस दौरान हिंदीभाषियों को अपनी ओर करने का हिंदी सेल पूरी तरह सक्रिय हो चुका है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:00 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:00 AM (IST)
Bengal Assembly Elections: बंगाल विधानसभा चुनाव में हिंदीभाषी वोटरों पर भी है तृणमूल की नजर
हिंदी भाषियों के लिए की अहम घोषणाएं

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। अब बंगाल में भी जातिगत समीकरण को चुनावी दंगल का हिस्सा बनाया जा रहा है। बंगाल में 34 सालों के वाममोर्चा के शासनकाल में बांग्ला भाषा के अलावा किसी और भाषा को वह दर्जा नहीं मिला जो मिलना चाहिए। 2011 में पहली बार सत्ता में आयी तृणमूल सरकार ने हिंदी भाषियों के लिए कुछ ठोस कदम उठाए। अब इसका दायरा और बढ़ाने के लिए पार्टी स्तर पर हिंदी प्रकोष्ठ का पुनर्गठन किया गया तो सरकारी स्तर पर हिंदी अकादमी को भी नया रूप दिया गया। तृणमूल तीसरे विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगी है और इस दौरान हिंदीभाषियों को अपनी ओर करने के लिए पार्टी का हिंदी सेल पूरी तरह सक्रिय हो चुका है।

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हिंदी भाषियों को विश्वास दिलाने की कोशिश में तृणमूल

हिंदी प्रकोष्ठ हो या हिंदी अकादमी दोनों की सक्रियता बढ़ा कर तृणमूल ने हिंदीभाषियों को विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि उनकी सत्ता में समस्त हिंदीभाषी सुरक्षित हैं। तृणमूल ने हिंदी भाषियों को ध्यान में रखकर जिन योजनाओं का क्रियान्वयन किया है उनमें पहली बार ​किसी गैर हिंदीभाषी राज्य में हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना, आस्था का महापर्व छठ के लिए सरकारी छुट्टी, 10 प्रतिशत से अधिक हिंदीभाषी क्षेत्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा, बनारहाट जलपाईगुड़ी में, राज्य में पहला हिंदी माध्यम जनरल डिग्री कॉलेज, उत्तर बंगाल के हाथीघीसा में दूसरा हिंदी माध्यम कॉलेज बिरसा मुंडा हिंदी कॉलेज की स्थापना आदि प्रमुख है।

हिंदी भाषियों के लिए की अहम घोषणाएं

बंगाल ऐसा राज्य है जहां बड़ी संख्या में यूपी, बिहार, राजस्थान, गुजरात, पंजाब के लोग यहां दशकों से रह रहे हैं। बंगाल इनकी कर्मभूमि बन चुकी है। माना जाता है कि वोटरों का रूझान तभी पार्टी की तरफ होता है जब उनकी तरफ से संस्कृति व भाषा को सम्मान मिले। बंगाल में तृणमूल सरकार ने इसी नब्ज को पकड़ते हुए हिंदीभाषियों के हर पर्व को प्राथमिकता दी है। छठ पूजा की सरकारी छुट्टी उसी का हिस्सा है। वह क्षेत्र जहां 10 प्रतिशत से अधिक हिंदी बोलने वाले हैं वहां हिंदी भाषा का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल इसकी दूसरी कड़ी है और सबसे महत्वपूर्ण हिंदी प्रकोष्ठ का गठन जहां हिंदीभाषियों की हर समस्या को सुनने का माध्यम तैयार किया गया है। 


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