Move to Jagran APP

चाइनीज लाइट की रोशनी से अंधेरे में जा रही है कुम्हारों की दुनिया

चाइनीज लाइट की रोशनी से अंधेरे में जा रही है कुम्हारों की दुनिया

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 23 Oct 2019 03:00 PM (IST)Updated: Wed, 23 Oct 2019 03:00 PM (IST)
चाइनीज लाइट की रोशनी से अंधेरे में जा रही है कुम्हारों की दुनिया
चाइनीज लाइट की रोशनी से अंधेरे में जा रही है कुम्हारों की दुनिया

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। मालबाजार पिछले कई पीढ़ियों से दीवाली के मौके पर भारतीय घर दीये की रोशनी से जगमगाते रहे हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों से बाजारों में सस्ती चाइनीज लाइट के आने से कुम्हारों के रोजगार पर खासा असर पड़ा है। कुम्हारों की शिकायत है कि उपभोक्ता सस्ती चाइनीज लाइट मॉल्स के मंहगे इलेक्ट्रिक लाइट पसंद करने लगे हैं।

loksabha election banner

इससे दीयों की बिक्री में काफी गिरावट आई है। चाइनीज उत्पादों की मांग के कारण दीवाली का पारंपरिक आकर्षण समाप्त हो गया है। अब लोग दीये की जगह चाइनीज लाइट लगाना ही पसंद करते हैं। इस कारण चाइनीज लाइट की रोशनी में कुम्हारों की दुनिया अंधेरे में डूबती नजर आ रही है।

वर्तमान समय में देश के हर राज्य व शहर में कुम्हारों की यही स्थिति है। दीपावली में चार दिन शेष होने के बाद भी कुम्हार परिवारों में कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है।

क्या कहते हैं कुम्हार:

इस क्रम में डुवार्स के कुम्हारों की स्थित और अधिक खराब है। न्यू माल शहर के कुम्हारों की माने तो चाइनीज लाइट के कारण दीयों की बिक्री में काफी गिरावट आई है। पहले दीवाली से पहले आराम करने का भी मौका नहीं मिलता था, लेकिन अब तो बनाए गए आधे उत्पाद भी बिक्री नहीं कर पाते हैं। वर्तमान समय में इतने कम ग्राहक मिलते है कि परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है। एक समय था जब लोग केवल मिट्टी के दीये खरीदना पसंद करते थे, परंतु अब चाइनीज लाइट से ही दीवाली मना ले रहे हैं। स्थिति यह हो गई है कि कुम्हार अपना पेशा छोड़कर दूसरे रोजगार की तलाश करने लगे हैं। कुछ कुम्हारों की माने तो अब दिया बनाने के लिए मिट्टी भी सही नहीं मिल रहा है।

काम से जुड़े हैं पुराने कुम्हार:

मालबाजार के बयेर बस्ती, सत्यनारायण मोड़, न्यू माल समेत कई इलाकों में वर्षों से कुम्हार परिवार जीवनयापन कर रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इनलोगों को अपना परिवार चलाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें सबसे अधिक परेशानी पुराने लोगों को हो रही है। पुराने कुम्हार किसी तरह मिट्टी का काम करके ही अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। लक्ष्मण पंडित, नरेश पंडित, उपेंद्र पंडित जैसे अन्य कुम्हार आज भी कुम्हार के काम से जुड़े हैं। कई वर्षों से कुम्हार का काम करते आ रहे 63 वर्षीय लक्ष्मण पंडित न्यू माल के पास ही रहते हैं। घर में दीपक, कलशी समेत मिट्टी की अन्य सामग्री बनाना ही उनका पेशा है। इसकी कीमत भी अधिक नहीं है, फिर भी लेने वाले ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। लक्ष्मण पंडित ने कहा कि वे लोग दीवाली के लिए ही एक वर्ष तक इंतजार करते हैं, परंतु पहले की तुलना में दीयों की बिक्री नहीं हो रही है। वहीं सत्यनारायण मोड़ राजकुमार पंडित, भीमराज पंडित ने कहा कि  मिट्टी की सामग्री की दुकान के साथ स्टेशनरी दुकान भी खोल कर रखना पड़ रहा है। वर्तमान समय में केवल कुम्हार के काम से परिवार चलाना संभव नहीं है। 

हाट में भी नहीं बिक रहे दीये :

मालबाजार, चालसा, मेटली समेत अन्य जगहों में साप्ताहिक हाट लगाए जाते हैं। दीपावली में शेष चार दिन बचे हैं। लेकिन दीया बाजार में सन्नाटा पसरा हुआ है। दुकानों में ग्राहक नजर नहीं आ रहे हैं। एक दर्जन दीये की कीमत 10 से 12 रुपये है, परंतु लेने वालों में कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। 

सरकारी सहयोग की मांग:

उक्त समस्याओं को लेकर कुम्हारों ने सरकारी सहयोग देने की मांग की है। यहां सरकारी सहायता केंद्र खुलने से काफी लाभ होगा। अगर सरकार का सहयोग नहीं मिला तो कुम्हार अपना काम बंद करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। नये पीढ़ी के युवा कुम्हार के काम से जुड़ना ही नहीं चाहते हैं। इसे लेकर विधायक बुलुचिक बराइक ने मदद का आश्वासन दिया है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.