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सोना-चांदी उगलती है गंगासागर की पावन भूमि, लोग रेतीली जमीन कुरेदकर खोज लेते है दबा खजाना

गंगासागर की पावन भूमि सोना-चांदी उगलती है! चौंकिए मत, यह कोई कोरी अफवाह नहीं, बल्कि सोलह आने सच्ची बात है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 09:16 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 09:16 AM (IST)
सोना-चांदी उगलती है गंगासागर की पावन भूमि, लोग रेतीली जमीन कुरेदकर खोज लेते है दबा खजाना
सोना-चांदी उगलती है गंगासागर की पावन भूमि, लोग रेतीली जमीन कुरेदकर खोज लेते है दबा खजाना

विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। गंगासागर की पावन भूमि सोना-चांदी उगलती है! चौंकिए मत, यह कोई कोरी अफवाह नहीं, बल्कि सोलह आने सच्ची बात है। यकीन न हो तो निर्मल पाइक समेत उन 150-200 लोगों से पूछ लीजिए, जिनके हाथ सोना-चांदी लगे हैं।

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55 साल के निर्मल को सालभर सागर तट पर देखा जा सकता है। उनके हाथ में एक अनोखा औजार होता है, जिसे वह आचोर कहते हैं। इस औजार से वह सागर तट की रेतीली जमीन खोदते हैं। दिन, हफ्ते या फिर महीने में सोना-चांदी का कोई न कोई सामान उनके हाथ लग ही जाता है। इनमें मुख्य रूप से जेवर शामिल होते हैं।

दरअसल मकर संक्राति, माघी पूर्णिमा समेत विभिन्न धार्मिक उत्सवों के समय जो पुरुष व महिला तीर्थयात्री गंगासागर के इस पवित्र मिलन स्थल पर आकर पुण्य स्‍नान करती हैं, उनमें से कुछ की अंगूठी, कानों की बाली, नाक की नथनी इत्यादि पानी में गिर जाती हैं।

कुछ देर तलाशने के बाद वे लौट जाते हैं। कहते हैं, सागर अपने पास दूसरों का कुछ नहीं रखता। सोने-चांदी के ये सारे जेवर सागर की लहरें किनारे पर फेंक देती हैं, जो रेत में दब जाते हैं। निर्मल जैसे कुछ लोग इसी रेत को अपने औजार से कुरेद- कुरेदकर उन गहनों को तलाश लेते हैं। सागर द्वीप के चौबलाघाट इलाके के प्रसादपुर के निवासी निर्मल ने बताया-मैं पिछले 20 साल से यही काम करता आ रहा हूं।

इन सालों में मुझे सोने-चांदी के कई जेवर मिले हैं, जिनमें अंगूठी, चेन, कान के झुमके इत्यादि शामिल हैं। ये पूछे जाने पर कि वे इन जेवरों को थाने में क्यों नहीं जमा करवाते, इस पर निर्मल ने बेबाकी से कहा-जिनके जेवर खोते हैं, वे अमूमन स्थानीय निवासी नहीं होते, बल्कि विभिन्न स्थानों से तीर्थ करने यहाँ आते हैं। सागर में गिरने के कारण उन्हें नहीं लगता कि वापस मिल पाएगा। उन्हें तीर्थ करके घर लौटना भी होता है इसलिए वे स्थानीय थाने में रपट दर्ज नहीं कराते।

अगर हम इन जेवरों को तलाशकर थाने में जमा करवा देंगे तो भी वह उनके मालिक को कभी नहीं मिल पाएगा बल्कि किसी और का हो जाएगा इसलिए हम उन जेवरों को समुद्र देव की भेंट समझकर अपने पास रख लेते हैं। वैसे भी यह एक तरह से हमारी मेहनत का फल है। अब यह हमारा पेशा है और हमारे जीविकोपार्जन का जरिया भी। निर्मल ने आगे कहा कि जेवर रोजाना नहीं मिलते लेकिन रोज कुछ पैसे जरूर मिल जाते हैं जिन्हें लोग सागर को चढ़ाते हैं। कभी 100, कभी 200 तो कभी 500 रुपये के चिल्लर तक हाथ लग जाते हैं। निर्मल आचोर नामक यह औजार साइकिल के पहिये पर लगे स्पोक से तैयार करते हैं। इससे रेत कुरेदने में काफी आसानी होती है।


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