सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बोले-'हर उद्योग में मौजूद है भाई-भतीजावाद'
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के खुदकुशी करने के बाद बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद ज्वलंत मुद्दा बन गया है। बॉलीवुड में इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के खुदकुशी करने के बाद बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद ज्वलंत मुद्दा बन गया है। बॉलीवुड में इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी 'नेपोटिज्म' पर अपनी राय रख रहे हैं। फोर्टिस हॉस्पिटल आनंदपुर में मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग के सलाहकार डॉ. संजय गर्ग ने कहा-'भाई-भतीजावाद सिर्फ बॉलीवुड नहीं बल्कि हर उद्योग में मौजूद है, हालांकि इसका प्रभाव फिल्म उद्योग पर बहुत ज्यादा है और बॉलीवुड के संदर्भ में ही इसपर ज्यादा बात की जाती है। भाई-भतीजावाद की समस्या मुख्य रूप से तब पैदा होती है, जब अधिक योग्य और कुशल व्यक्तियों को परिचितों की खातिर अनदेखा कर दिया जाता है। यह अन्यायपूर्ण है। काम में सफलता एक आदर्श दुनिया में प्रतिभा, कौशल और प्रयास पर निर्भर करनी चाहिए। यही कारण है कि भाई-भतीजावाद आज बहुत से लोगों के लिए दुखद बिंदु है और इसे भ्रष्टाचार का ही एक रूप माना जाता है। पात्रता और पक्षपात की भावना पीड़ित वर्ग में नाराजगी पैदा कर सकती है, जो अस्वास्थ्यकर कार्य वातावरण का कारण बनती है।'
डॉ. गर्ग ने आगे कहा-'बॉलीवुड के संदर्भ में भाई-भतीजावाद के बारे में ज्यादा बात की जाती है, शायद यह पूरी तरह से इस उद्योग की सार्वजनिक प्रकृति के कारण है। बॉलीवुड ज्यादातर लोगों के लिए एक आकर्षण है। कई लोग सिनेमा की दुनिया से रोमांचित हैं और इसके बारे में अधिक से अधिक जानने के इच्छुक हैं। इस प्रकार बॉलीवुड में होने वाली हर चीज लोगों के लिए अधिक सुलभ और आकर्षक है। दूसरे उद्योग में वही चीजें हो सकती हैं, लेकिन वे उतनी सुलभ और आकर्षक नहीं हैं।
बॉलीवुड को एक उद्योग के रूप में देखा जाता है तो यहां एकाधिकार की भावना भी खूब पनपती है। इसके अलावा फिल्म उद्योग में दांव बहुत अधिक लगते हैं। वहां पहला ब्रेक मिलना बहुत बड़ा निवेश हो सकता है और एक फिल्म किसी का करियर बना या बिगाड़ सकती है।' डॉ. गर्ग ने कहा-'फिल्म उद्योग से भाई-भतीजावाद के रातोंरात गायब होने की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि गहरी जड़ वाली इस प्रथा को तेजी से खत्म करना मुश्किल है। एक बहुत सकारात्मक बात यह है कि इसे लेकर संवाद शुरू हुआ है। जितना अधिक हम इसके बारे में बात करेंगे, उतना अधिक यह स्पष्ट होगा । जागरूकता निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। व्यक्तिगत स्तर पर
अत्यधिक दृढ़ होने की आवश्यकता है।