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इस्पात निर्माताओं ने किया मूल्य वृद्धि का बचाव, पीएमओ को पत्र लिखकर की लौह अयस्क निर्यात पर रोक लगाने की मांग

इंडियन स्टील एसोसिएशन (आइएसए) ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर स्टील की बढ़ती कीमतों के प्रभाव के बारे में पत्र लिखने के बाद पीएमओ को इस्पात की मूल्य वृद्धि के बारे में सूचित किया।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 30 Dec 2020 12:48 PM (IST)Updated: Wed, 30 Dec 2020 02:09 PM (IST)
इस्पात निर्माताओं ने किया मूल्य वृद्धि का बचाव, पीएमओ को पत्र लिखकर की लौह अयस्क निर्यात पर रोक लगाने की मांग
लौह अयस्क निर्यात पर रोक लगाने की मांग

कोलकाता, राज्य ब्यूरो।  इस्पात कंपनियों के एक संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह बताया है कि कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के चलते इस्पात के दाम बढ़ाने पड़े हैं। संगठन ने इसके साथ ही लौह अयस्क के निर्यात पर छह महीने की रोक लगाने की भी मांग की।

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एक अधिकारी ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। इंडियन स्टील एसोसिएशन (आइएसए) ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर स्टील की बढ़ती कीमतों के प्रभाव के बारे में पत्र लिखने के बाद पीएमओ को इस्पात की मूल्य वृद्धि के बारे में सूचित किया।

आइएसए ने पीएमओ को लिखे अपने पत्र में कहा कि हम कुछ बहुत ही गंभीर और बाध्यकारी कारण बताना चाहते हैं, जिसके कारण इस्पात उद्योग को कीमतें बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है। उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया था। हॉट रोल्ड कॉइल की कीमतें नवंबर में 46 फीसद बढ़कर 52,000 रुपये प्रति टन हो गई हैं, जबकि इस साल जुलाई में यह 37,400 रुपये प्रति टन थी।

उद्योग सूत्रों ने बताया कि आवास एवं निर्माण क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले रीबर टीएमटी ने 50,000 रुपये प्रति टन का आंकड़ा छू लिया है। आईएसए ने लौह अयस्क से संबंधित मुद्दों, कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि, वैश्विक इस्पात आपूर्ति में कमी और कोविड संबंधी व्यवधानों के कारण क्षमता का कम उपयोग हो पाने के बारे में बताया। संगठन ने प्रमुख कच्चे माल के लिये आपूर्ति पक्ष के स्थिर होने तक लौह अयस्क निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने की मांग की।

संगठन के महासचिव भास्कर चटर्जी ने कहा कि कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों के मद्देनजर स्टील की एक अस्थायी कमी उत्पन्न हुई है। इसके कारण इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय कीमतें 397 डॉलर प्रति टन के निचले स्तर से बढ़कर 750 डॉलर पर पहुंच गयी हैं। भारत एक खुली अर्थव्यवस्था है, इस कारण यहां इस्पात की कीमतें वैश्विक कीमतों के साथ आगे-पीछे होती है। 


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