गायिका आशा भोसले ने बंगालियों की संगीत समझ को सराहा
आशा ने बंगाली महिलाओं को बेहद सुंदर बताते हुए कहा कि शर्मिला टैगोर इसकी बेहतरीन उदाहरण हैं जो सुंदरता और सौम्यता की प्रतीक हैं।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले ने बंगालियों की संगीत समझ की सराहना करते हुए कहा कि बंगालियों ने किसी भी संगीत समारोह में उन पर लोकप्रिय हिंदी फिल्मी गीत गाने का दबाव नहीं डाला और इसे उनकी पसंद पर छोड़ दिया।
कोलकाता में एक समारोह में हिस्सा लेने आई आशा ने पिता दीनानाथ मंगेशकर द्वारा संगीतबद्ध किया गया एक मराठी गीत सुनाया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि दूसरे स्थानों की तरह यहां उनसे उनके गाये लोकप्रिय हिंदी पार्श्वगीतों को सुनाने का अनुरोध नहीं किया गया। आशा ने जोर देकर कहा कि मैं बंगालियों की इस संगीत समझ की सराहना करती हूं।
उन्होंने जो गीत यहां सुनाया उसके बारे में कहा कि यह गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित है। उनके पिता ने अलहदा तरह से इस गीत को संगीत में पिरोया था। हिन्दी के अलावा 20 भारतीय और विदेशी भाषाओं में गीत गाने वाली 84 वर्षीय गायिका ने इस दौरान अपने 75 साल के पाश्र्र्वगायन के अनुभव को याद किया।
सावन आया गीत से 1948 में अपने सफर की शुरूआत करने वाली आशा ने कहा, मैंने अब तक हजारों फिल्मों में गीत गाये हैं, लेकिन मैं महसूस करती हूं कि जो मेरे पिता ने सिखाया और फिल्मों में जैसे गीत गा रही हूं, वह एकदम अलग है।
उस्ताद अली अकबर खान के साथ ग्रैमी पुरस्कार के नामांकित होने वाली पहली भारतीय गायिका ने कहा, मैंने कई बांग्ला गीत गाये और रवींद्र संगीत को भी स्वर दिया। पर अफसोस है कि मैं बांग्ला भूल गयी हूं।
पहला बांग्ला गीत 1958 में गाने वाली आशा ने कहा, मेरा कोलकाता से पहला परिचय बचपन में शरत बाबू का उपन्यास का पढ़ते वक्त हुआ। मैं व्यक्तिगत रूप से बंगाल की संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक थी। इसका अवसर मुझे 1952 में पहले कोलकाता दौरे पर मिला।
आशा ने बंगाली महिलाओं को बेहद सुंदर बताते हुए कहा कि शर्मिला टैगोर इसकी बेहतरीन उदाहरण हैं जो सुंदरता और सौम्यता की प्रतीक हैं।