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पुण्य डुबकी लगाने गंगासागर नहीं आए साइबेरियाई पक्षी, क्‍या उन्‍हें भी सता रहा है कोरोना का डर

Ganga sagar Mela 2022 हर साल गंगासागर मेले के समय प्रवासी पक्षियों से गुलजार रहने वाले सागर द्वीप में इस बार उनका कलरव सुनने को नहीं मिल रहा। तो क्या प्रवासी पक्षियों को भी कोरोना का डर सता रहा है? सच मानिए तो उनके नहीं आने की वजह कोरोना है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Thu, 13 Jan 2022 08:57 AM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 08:57 AM (IST)
पुण्य डुबकी लगाने गंगासागर नहीं आए साइबेरियाई पक्षी, क्‍या उन्‍हें भी सता रहा है कोरोना का डर
इस बार गंगासागर नहीं आए साइबेरियाई पक्षी

गंगासागर, विशाल श्रेष्ठ। कोरोना महामारी का तीर्थयात्रियों पर ही नहीं, प्रवासी पक्षियों पर भी असर पड़ता दिख रहा है। देश-दुनिया में बढ़ते कोरोना के प्रकोप के कारण इस साल मकर संक्रांति पर कितने लोग पुण्य डुबकी लगाने गंगासागर आएंगे, इसका तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा लेकिन यह बात साफ हो गई है कि इस साल प्रवासी पक्षी यहां नहीं आ रहे। हर साल गंगासागर मेले के समय साइबेरियाई पक्षी 'सी गल' से गुलजार रहने वाले सागर द्वीप में इस बार उनका कलरव सुनने को नहीं मिल रहा। सी गल हजारों किलोमीटर का फासला तय कर सर्दियों के समय गंगासागर आते हैं और पूरी ठंड यहां बिताकर लौटते हैं।

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मूड़ी गंगा में वे दिनभर डुबकी लगाते रहते थे, जिसे देखकर स्थानीय लोग कहते थे कि वे भी तीर्थयात्रियों की तरह गंगासागर में पावन डुबकी लगाने आते हैं। इस बार वह नजारा गायब है। तो क्या प्रवासी पक्षियों को भी कोरोना का डर सता रहा है? सच मानिए तो उनके नहीं आने की वजह कोरोना ही है। मूड़ी गंगा में वर्षों से स्टीमर चला रहे सुरजीत दोलुई ने बताया- 'कोरोना से पहले तक सागर द्वीप प्रवासी पक्षियों से गुलजार रहता था। वे दिसंबर में आते थे और फरवरी तक यहां प्रवास करते थे। कोरोना आने के बाद पिछले साल उनकी संख्या में भारी गिरावट देखी गई और इस साल उनकी संख्या न के बराबर है। कुछ दिन पहले जो थोड़े-बहुत सी गल दिखे थे, अब वे भी नजर नहीं आ रहे। लगता है कि वे यहां से कहीं और चले गए हैं।'

दोलुई ने आगे कहा- 'दरअसल इन विदेशी मेहमानों की सागर द्वीप में पहले जैसी खातिर नहीं हो रही। उनकी बेरुखी की यही वजह है। मकर संक्रांति के समय गंगासागर आने वाले तीर्थयात्री उन्हें पेट भरकर दाना खिलाते थे। पिछले दो साल से तीर्थयात्री बहुत कम हो गए हैं। उनका दाना बेचने वाले भी नजर नहीं आते इसलिए प्रवासी पक्षियों का आना कम हो गया है।' 


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