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श्रीरामपुर में तीन साल से बंद पड़े जूट मिल के मजदूर टोटो चलाने व सब्ज़ी बेचने को मजबूर

बंद पड़े जूट मिलों को तत्काल कैसे चालू किया जाए इसके लिए सरकार गंभीरता से प्रयास कर रही है। 29 मई 2018 को आर्थिक तंगी का हवाला देकर मिल प्रबंधन ने इस मिल गेट पर कार्य स्थगन का नोटिस लगा दिया था। तबसे ढाई हजार मजदूर ठोकरें खा रहे हैं।

By Priti JhaEdited By: Published: Wed, 02 Jun 2021 12:31 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jun 2021 12:31 PM (IST)
श्रीरामपुर में तीन साल से बंद पड़े जूट मिल के मजदूर टोटो चलाने व सब्ज़ी बेचने को मजबूर
श्रीरामपुर में तीन साल से बंद पड़े जूट मिल के मजदूर टोटो चलाने व सब्ज़ी बेचने को मजबूर

राज्य ब्यूरो कोलकता। बंगाल में लोकसभा चुनाव के पहले से बंद पड़े हुगली जिले के श्रीरामपुर स्थित इंडिया जूट मिल की हालत विधानसभा चुनाव बीतने के बाद भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।पिछले तीन साल से बंदी की मार झेल रहे इस जूट मिल के श्रमिक अब लाचार होकर अपना तथा परिवारवालों का पेट पालने के लिए टोटो (ई-रिक्शा) चलाने तथा सब्जी बेचने पर मजबूर हैं। श्रमिकों को आशा थी कि विधानसभा चुनाव के पहले सरकार मिल को जरूर चालू करायेगी, लेकिन ऐसा नही हुआ। अब जबकि पूरे बहुमत के साथ तीसरी बार ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बार फिर से इन गरीब मजदूरों के मन में मिल खोले जाने की आश जगी है।

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श्रीरामपुर के विधायक डॉक्टर सुदीप्त राय का कहना है कि इंडिया जूट मिल के मजदूरों की बदहाली को देखते हुए मैंने मिल के मालिक एवं श्रम दफ्तर के उच्च अधिकारी से बात की है। मिल को तत्काल खोला जाए इसके लिए मैने फोन पर श्रम मंत्री बेचाराम मन्ना से भी वार्तालाप किया है। जरूरत पड़ी तो इस विषय पर मुख्यमंत्री से भी मुलाकात करूंगा। देखा जा रहा है जो श्रमिक तीन साल पहले बड़े शान के साथ इस मिल में तांत मशीन चलाया करता था। आज वही मजदूर अपना तथा अपने बच्चों का पेट पालने के लिए सब्जी बेचने तथा टोटो चलाने पर मजबूर है। इस मिल के श्रमिक मोहम्मद शकील जो मां, पत्नी तथा तीन बच्चों के साथ यहां रहते है, मिल बंद होने के कारण इनकी माली हालत काफी खराब हो चुकी है। लाचार वश मोहम्मद शकील इन दिनों अपना तथा अपने परिवारवालों का पालन-पोषण करने के लिए भाड़े पर टोटो लेकर इलाके में चला रहे हैं।

उनका कहना है कि बच्चों की पढ़ाई तथा अपनों का पेट पालने के लिए मजबूरी में यह काम करना पड़ रहा है। मोहम्मद शकील की तरह ही इस मिल के मजदूर राजू साव भी मां, पत्नी, एक चार वर्ष की बेटी एवं एक बहन के साथ जूट मिल लाइन में रहते हैं। मिल में तालाबंदी होने के बाद से वे परिवारवालों का पेट पालन के लिए इलाके में सब्जी बेचने के साथ राजमिस्त्री का काम भी करते हैं। शकील एवं राजू की तरह ही इस मिल मिल के सैकडों श्रमिक इस प्रकार का काम करने पर मजबूर हैं।

मालूम हो कि विधानसभा चुनाव के पहले 22 जनवरी 2021 को कोलकता में श्रम दफ्तर में एक त्रिपक्षीय बैठक हुुुई थी। उस बैठक में यह फैसला हुआ था कि एक अप्रैल से मिल में उत्पादन जोर गति से शुरू होगा, लेकिन दो महीने बीत गए उत्पादन तो दुर अभी तक मिल में श्रमिकों की प्रवेश के लिए गेट खोले जाने की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है। उल्लेखनीय है कि हुगली जिले में कुल दस जूट मिलें है। इनमें से फिलहाल श्रीरामपुर की इंडिया जूट मिल, रिसड़ा की वालिग्टन जूट मिल तथा चांपदानी की नार्थ बुक्र जूट मिल बंद है। देखा जाए तो पूरे बंगाल के 13 चटकलों में तालाबंदी है। हुगली जिला सीटू के अध्यक्ष शिव मंगल सिंह का आरोप है कि सरकार की सकारात्मक मंशा में कमी होने के कारण आज इंडिया जूट मिल के मजदूरों को दर- दर की ठोकरे खानी पड़ रही है। जबकि मिल में उत्पादन शुरू करने के प्रति मिल मालिक का भी रवैया ढीला- ढाला है।

प्रबंधन का कहना है कि आर्थिक तंगी होने के कारण मिल चलाने में दिक्कतें आ रही है। इधर, श्रम मंत्री बेचाराम मन्ना का कहना है कि बंगाल सरकार जूट उद्योग को और बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार के साथ तालमेल करके इस उद्योग तथा इससेे जुुडे़ लाखों श्रमिकों के उज्जवल भविष्य के लिए हमलोग काम कर रहे है। उन्होंने कहा कि बंद पड़े जूट मिलों को तत्काल कैसे चालू किया जाए इसके लिए सरकार गंभीरता से प्रयास कर रही है। मालूम हो कि 29 मई 2018 को आर्थिक तंगी का हवाला देकर मिल प्रबंधन ने इस मिल गेट पर कार्य स्थगन का नोटिस लगा दिया था। तबसे इस मिल के लगभग ढाई हजार मजदूर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। 


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