वेबिनार में बोले गृह मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार नवीन कुमार प्रजापति-शब्द और भाषा के प्रयोग के प्रति रहें सतर्क
कोलकाता के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एकल वक्ता आनलाइन वेबीनार गत दिनों संपन्न हुआ। किस तरह कहीं भी शब्द के गलत चयन या प्रयोग से न केवल सम्पूर्ण परिदृश्य बिगड़ जाता है बल्कि अनुवाद में तो यह एक विराट अनर्थ की सृष्टि करता है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बेथुन कॉलेज, कोलकाता के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एकल वक्ता आनलाइन वेबीनार "जीविकोपार्जन में हिंदी का भविष्य और दैनंदिन जीवन में अनुवाद का महत्व" गत दिनों संपन्न हुआ। वक्ता के रूप में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के वरिष्ठ सलाहकार एवं केंद्र प्रभारी, कोलकाता के नवीन कुमार प्रजापति उपस्थित थे। उन्होंने इस विषय पर बोलते हुए वर्तमान समय में जीविकोपार्जन की दिशा में हिंदी पढ़ने वालों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए हिंदी की भूमिका पर विस्तृत चर्चा की।
इसी संदर्भ को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने शब्द और भाषा किस प्रकार किसी भी भाषिक समुदाय के भीतर अपना स्वरूप कैसे निर्धारित करती है यह भी बताया।उन्होंने कहा, शब्द में शक्ति की विराट योजना छिपी होती है। शब्दों का अनर्थकारी प्रयोग साहित्य एवं जीवन दोनों ही स्थितियों में घातक हो सकता है।इसलिए आवश्यकता है कि हम शब्द और भाषा प्रयोग के प्रति सतर्क रहें।
शब्द चयन काफी अहम
उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह कहीं भी शब्द के गलत चयन या प्रयोग से न केवल सम्पूर्ण परिदृश्य बिगड़ जाता है बल्कि अनुवाद में तो यह एक विराट अनर्थ की सृष्टि करता है। शब्द चयन और समान। अर्थक शब्दरूपों की अनुवाद में कितनी गंभीर और गहरी भूमिका होती है यह स्पष्ट करते हुए उन्होंने बंगाल, हिंदी, उड़िया भाषाओं में प्रयुक्त एक ही शब्द कैसे अपनी अर्थवत्ता के कारण अलग अलग पर्याय निर्मित करते हैं इस बात की भी विस्तृत जानकारी देते हुए अनेक प्रसंगों को प्रस्तुत किया। उन्होंने जिन बिंदुओं पर मुख्य रूप से प्रकाश डाला वह मूलतः सांस्कृतिक, भाषिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थितियों के अलावा इस बात पर निर्भर रहा कि कोई भी अनुवादक की भूमिका में आने के पूर्व क्या वह अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित है या नहीं? यह तय कर लेना बहुत जरूरी होता है।उसकी निष्ठा और लक्ष्य का सही निर्धारण ही किसी मनुष्य को उसके मंजिल तक पहुंचा देती है।
हिंदी को दोयम दर्जा मानने की मानसिकता बिल्कुल मिथ्या
-अपने पूरे वक्तव्य के दौरान बार-बार इस बात पर बल दिया कि हिंदी को दोयम दर्जा मानने की मानसिकता बिल्कुल मिथ्या है क्योंकि जो भाषा विश्व की प्रमुख 10 भाषाओं के भीतर आती है उसके बोलने,जानने और पढ़ने लिखने तथा समझने वालों में इस मानसिकता का होना सिर्फ भाषा के प्रति ही नहीं बल्कि राष्ट्र के लिए भी अहितकर और असम्मानजनक है। अपने वक्तव्य में उन्होंने विद्यार्थियों को लक्ष्य निर्धारित करने की दिशा की ओर प्रेरित करते हुए कहा कि हम क्या हैं यह हमारे काम के द्वारा ही नहीं बल्कि हमारी सोच भी हमारा निर्धारण करती है। अनुवाद को उन्होंने इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बताते हुए इस सदी को "अनुवाद की सदी" बताया।बगैर अनुवाद के हम यहां तक कि अपने आपको भी नहीं समझ सकते हैं और ना ही अभिव्यक्त कर सकते हैं। क्योंकि हर व्यक्ति जो कुछ कहता है वह पहले उसके मन में उठते भाव को वाणी तक लाने के बीच स्वतः अनुवाद की त्वरित प्रक्रिया चलती है। वह भी एक प्रकार का अनुवाद का ही अंग है।वर्तमान समय में अनुवाद ने हमारे जीवन के इतने बड़े क्षेत्र को घेर रखा है कि आज चाहे कोई भी विधा हो या कोई भी कार्यालय, बगैर अनुवाद के न तो कंपनियां चल सकती है और नहीं कोई कार्यालय।
लॉकडाउन को लेकर विद्यार्थियों में व्याप्त है चिंता
-लॉकडाउन का यह समय लोगों के भीतर, खासकर विद्यार्थियों में एक खास तरह के भय से भर दिया है।आशंका और अनिश्चयात्मक भविष्य के प्रति वे लगातार चिंतित है।परंतु ऐसे समय में भी सकारात्मक सोच की दुनिया का निर्माण किया जाना और छात्रों के समक्ष उसे प्रस्तुत करते हुए उनमें लगातार सक्रिय सामाजिक जिम्मेदारी और अपने प्रति ईमानदारी और लक्ष्य के प्रति निष्ठा जैसी भाव से भरने की बात कहा जाना कुछ कम नहीं। इस समय जब पूरी दुनिया महामारी के मार से त्रस्त है वहां ऑनलाइन वेबिनार के द्वारा ही सही अगर विद्यार्थियों के बीच सकारात्मक ऊर्जा और सोच के भाव को बढ़ाया जाए और उन्हें अपने जीवन, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार होने की दिशा में अग्रसर किया जाए तो न केवल इस निराशा और गृह बंदी के अवस्था में उनका मनोबल ऊंचा उठेगा वरन आने वाले समय में कुछ करने की भाव से भी वे भरे रहेंगे।
उन्होंने हिंदी पठन-पाठन के भविष्य पर बात करते हुए ऐसी अनेक सरकारी, गैरसरकारी संस्थाओं की बातें कहीं जहां हिंदी के विद्यार्थी अपने भविष्य को न केवल आजमा सकते हैं वरन उसे उज्जवल भी बना सकते हैं। पत्रकारिता, न्यूज रीडर, एंकरिंग, संवाद लेखन, पटकथा लेखन, अभिनय जैसे क्षेत्रों में हिंदी पठन पाठन से असंख्य लोग जुड़े हुए हैं। इस आनलाइन वेबिनार में दूसरे विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों का जुड़ना इस बात सूचक रहा कि वेबिनार का विषय आज के संदर्भ में कितना उपयोगी है। वेबिनार के आरंभ में स्वागत वक्तव्य विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ अभिजीत भट्टाचार्य ने दिया। मंच संचालन सेमेस्टर चार की छात्रा स्नेहा झा ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ रंजना शर्मा द्वारा दिया गया।