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बंगाल में बांग्ला भाषी हिंदुओं की रक्षा के लिए एनआरसी जरूरी: संघ

आरएसएस का कहना है कि बंगाल में बांग्ला भाषी हिंदुओं की रक्षा के लिए एनआरसी काफी जरूरी हो गया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 10:12 AM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:48 AM (IST)
बंगाल में बांग्ला भाषी हिंदुओं की रक्षा के लिए एनआरसी जरूरी: संघ
बंगाल में बांग्ला भाषी हिंदुओं की रक्षा के लिए एनआरसी जरूरी: संघ

कोलकाता, जेएनएन। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बंगाल में भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी) लाने की पहल शुरू कर दी है। आरएसएस का कहना है कि बंगाल में बांग्ला भाषी हिंदुओं की रक्षा के लिए एनआरसी काफी जरूरी हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस बंगाल में एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल को लेकर अभियान शुरू कर रहा है।

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आरएसएस का मानना है, बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिये पश्चिम बंगाल में शरण लेते हैं और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होते हैं। यह न केवल बंगाली हिंदुओं के लिए खतरा है, बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक बहुत बड़ा नुकसान है।

संघ की यह कोशिश उस वक्त सामने आई है जब 17 से 19 सितंबर तक दिल्ली में संघ के कार्यक्रम में बोलते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी एनआरसी और घुसपैठिए की समस्या को लेकर बयान दिया था।

अब संघ की तरफ से इस मुद्दे को और बेहतर ढंग से उठाने की तैयारी हो रही है। संघ चाहता है कि असम के बाद एनआरसी को पूरे देश में लाया जाए। खास तौर से पश्चिम बंगाल में तो तुरंत इसकी कवायद की जाए। संघ और भाजपा का मानना है कि बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों की वजह से पश्चिम बंगाल में भी डेमोग्राफी पर बुरा असर हुआ है।

सूत्रों के मुताबिक संघ के प्रचारकों ने बंगाल के सीमावर्ती जिलों में एनआरसी के समर्थन में जनसमर्थन भी जुटाना शुरू कर दिया है। नागरिकता संशोधन बिल की जरूरत को देखते हुए आरएसएस का कहना है, यह उन बंगाली हिंदुओं के लिए जरूरी है, जो बांग्लादेश में जारी अत्याचार की वजह से भारत आने को मजबूर हुए हैं। संघ का मानना है, बांग्लादेश में हिंदू जनसंख्या का अनुपात 22 फीसद से घटकर 8 फीसद तक आ गया है।

यदि हम बांग्लादेशी हिंदुओं को शरण नहीं देंगे, तो वह एक बार फिर जेहादी तत्वों द्वारा मार दिए जाएंगे। दरअसल एनआरसी के मुद्दे पर संघ परिवार और भाजपा की राय रही है कि बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठिए की पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाए, लेकिन उससे पहले उनकी पहचान कर देश के भीतर मताधिकार से वंचित किया जाए। मतलब साफ है, घुसपैठिए जो कि बांग्लादेश से आकर असम, पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों की डेमोग्रेफी को बदल रहे हैं उन्हें मत देने के अधिकार से वंचित कर उन्हें एक आम नागरिक को मिलने वाली सारी सुविधाओं से वंचित किया जाए।

पश्चिम बंगाल में संघ की तरफ से चलाए जा रहे अभियान में भी यही बात कही जा रही है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों के साथ हो रही ज्यादती और उनके पश्चिम बंगाल में संरक्षण देने की बात कर संघ ने इस अभियान की शुरुआत की है।

पश्चिम बंगाल भाजपा की तरफ से इस कदम का स्वागत किया जा रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने जोर देकर कहा है कि भारत में अवैध रूप से रह रहे लोगों को बाहर कर देना चाहिए। दिलीप घोष ने कहा, हमें पता है कि बंगाल में एक करोड़ से ज्यादा अवैध लोग रहते हैं। उन्होंने बताया कि असम में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार एनआरसी लागू किया जा रहा है और अब बंगाल में भी इसकी शुरुआत हो चुकी है।

वहीं दूसरी तरफ, तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा और संघ की मांग को गलत बता दिया है। तृणमूल का कहना है कि असम में वे जो कर रहे हैं, उसे बंगाल में भी शुरू किया जा चुका है लेकिन इसमें वह लोग सफल नहीं होंगे। यह अवैध है और भारत के संविधान के खिलाफ है। तृणमूल ने कहा है कि हम हिंदू और मुसलमान दोनों का सम्मान करते हैं। सेकुलर हिंदू ऐसे कदमों का समर्थन नहीं करेंगे 


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