सखी- बहिनपा मैथिलानी समूह ने कोलकाता में मिथिला का लोक पर्व सामा- चकेबा का किया आयोजन
इस त्योहार में महिलाएं लोक गीत गाती हैं और परंपरानुसार लोकमानस में प्रचलित सामा-चकेबा की कहानियां कहती हैं। त्योहार के अंतिम दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा को प्रतीकात्मक रूप से ससुराल विदा किया जाता है। पास के किसी खाली खेत में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
जासं, कोलकाता। सखी- बहिनपा मैथिलानी समूह कोलकाता ईकाई द्वारा महानगर के बड़ाबजार लाइब्रेरी में मिथिला का लोक पर्व सामा- चकेबा का आयोजन किया गया गया। इस अवसर पर नृत्य, गीत, कविता, नाटक का रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत कवि कोकिल विद्यापति की कविता जय -जय भैरवि से की गई। सखी बहिनपा मैथिलानी समूह की कोलकाता इकाई की प्रमुख श्रीमती हिमाद्री मिश्रा ने बताया कि यह समूह विलुप्त हो रही मैथिली, लिपि, संस्कृति, पर्व त्योहारों पारपरिक लोक गीतों आदि के रक्षण एवं पोषण के लिए कृत संकल्पित हैं।
उन्होंने बताया कि यह समूह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि देश- विदेश तक में भी फैली है। लगभग 36,000 महिलाएं इसकी सदस्या हैं। इस समूह के माध्यम से मिथिला की महिलाएं हर तरह से स्वावलम्बन हेतु ठोस कदम भी बढ़ा रही हैं।इधर, लोक पर्व सामा- चकेबा के आयोजन को सफल बनाने में हिमादि मिश्रा समेत इंदिरा झा, मेनका ठाकुर, सुनीता झा, नीलम मित्रा, कुमकुम झा, रश्मि झा, पूनम दास व अन्य का उल्लेखनीय योगदान रहा।
मिथिला का बहुत ही अनोखा त्योहार है सामा-चकेबा
बता दें कि बिहार के मिथिलांचल इलाके की अपनी खास लोक संस्कृति है। यहां के रीति-रिवाज, खान-पान और पर्व-त्योहार क्षेत्र को विशिष्ट पहचान दिलाते हैं।इसी लोक उत्सवों में से एक सामा-चकेबा भाई- बहन के बीच के स्नेह और समर्पण को दर्शाने वाला मिथिला का एक बहुत ही अनोखा त्योहार है। सामा-चकेबा त्योहार में महिलाएं व लड़कियां सात दिनों तक मिट्टी व अन्य चीजों से सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं। यह त्योहार महापर्व छठ के पारण के दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से प्रारंभ होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो छठ पूजा के अंतिम दिन जब व्रती उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, उसी शाम से मिथिला क्षेत्र में सामा-चकेबा का त्योहार शुरू होता है। समयाभाव के चलते कई स्थानों पर अब यह त्योहार देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर गंगा स्नान यानि कार्तिक पूर्णिमा तक होता है।
इस त्योहार में महिलाएं लोक गीत गाती हैं और परंपरानुसार लोकमानस में प्रचलित सामा-चकेबा की कहानियां कहती हैं। त्योहार के अंतिम दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा को प्रतीकात्मक रूप से ससुराल विदा किया जाता है। पास के किसी खाली खेत में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय उसके साथ नया जीवन शुरू करने हेतु आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं, उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिछावन और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं। महिलाएं विदाई के गीत गाती हैं, जिसे समदाओन कहते हैं।