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बंगाल की आदिवासी युवती रोजलीन एक्का कैलिफोर्निया में करेंगी शोध

यह कहानी है एक आदिवासी युवती रोजलीन एक्का की जिन्होंने अपने आत्मबल और लगन के दम पर यह साबित कर दिखाया कि अगर प्रयास ईमानदार हों तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 01:07 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 01:07 PM (IST)
बंगाल की आदिवासी युवती रोजलीन एक्का कैलिफोर्निया में करेंगी शोध

संवाद सूत्र, मालबाजार। हालात चाहे जैसे हों, अगर दृढ़ निश्चय कर लिया जाए तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं होता। इस बात को साबित कर दिखाया है बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार की रहने वाली आदिवासी युवती रोजलीन एक्का। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद पढ़ाई की लगन के दम पर वह शोध के लिए कैलिफोर्निया जा रही हैं।

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रोजलीन के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह उन्हें बेहतर शिक्षा दे पाते, लेकिन बेटी में पढ़ाई के प्रति लगन और जज्बा भरपूर था। यही वजह रही कि उन्हें स्कॉलरशिप मिलती गई और वह आगे बढ़ती चली गईं। हालांकि, पिता को कर्ज भी लेना पड़ा, लेकिन एक पल के लिए भी वह डिगे नहीं। अब यह बेटी क्लैमिडिया जीवाणु के संक्रमण पर शोध करने के लिए अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया जा रही है। उन्हें बतौर जूनियर वैज्ञानिक शोध करने का मौका मिला है। वैसे उन्हें मार्च माह में ही नियुक्ति पत्र मिल गया था, लेकिन कोरोना के कारण तब नहीं जा सकीं। अब वह तीन अक्टूबर को रवाना होंगी।

रोजलीन को उनके परिवार से भले ही ज्यादा आर्थिक सहायता नहीं मिली, लेकिन आत्मविश्वास भरपूर मिला। रोजलीन कहती हैं, ‘मुझे शोध कार्य के लिए मातापिता ने ही प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से ही आज मैं कैलिफोर्निया जा रही हूं।’ रोजलीन के पिता इमानुयेल एक्का डामडिम योगेंद्र प्राथमिक स्कूल से सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। मां मेरी ग्रेगरी गृहिणी हैं। भाई कोलकाता के आशुतोष कॉलेज में और बहन प्रेसिडेंसी में पढ़ाई करती हैं। रोजलीन के दादा ग्लेम्को टी गार्डेन में काम करते थे। रोजलीन कहती हैं कि चाय बागान में काम करने वाले व आदिवासी होने की वजह से सामाजिक उपेक्षा को भी सहना पड़ा। यही वजह थी कि बचपन से ही ठान लिया था कि कुछ बेहतर करना है ताकि परिवार का जीवन बदल सकूं। इसके लिए शिक्षा ही सबसे बेहतर साधन था। माता-पिता ने हमेशा प्रोत्साहित किया। उन्हीं की प्रेरणा से शोध में रुचि जागी। रोजलीन कहती हैं, ‘मेरे माता-पिता ने हमेशा यह प्रयास किया कि मेरी पढ़ाई बाधित न हो। इसके लिए उन्होंने बहुत कुछ सहा भी, लेकिन हार नहीं मानी।’

स्कॉलरशिप से आसान हुई राह : रोजलीन ने प्रारंभिक से 12वीं तक की शिक्षा मालबाजार स्थित सीजर स्कूल से प्राप्त की। उसके बाद एमएससी की। स्नातक व परास्नातक की पढ़ाई के दौरान उन्हें स्कॉलरशिप मिलने लगी, जिसकी वजह से उनकी राह कुछ आसान हो गई। परास्नातक तक की शिक्षा पूरी करने के बाद रोजलीन आगे की पढ़ाई के लिए भुवनेश्वर चली गईं। उनका सफर आगे बढ़ा और दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में शोध किया। उनका यहां तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। उनकी शिक्षा के लिए पिता को बहुत कर्ज लेना पड़ा, लेकिन उन्होंने बेटी की शिक्षा में रुकावट नहीं आने दी।

मार्च 2019 में की पीएचडी : रोजलीन बताती हैं कि उनका शोध पत्र ‘रोल ऑफ की प्रोटीन किनोसेस एंड सिगनलिंग इन डेवलपमेंट ऑफ मलेरिया पैरासाइट’ है। मार्च 2019 में उन्होंने पीएचडी की। उन्होंने अपना शोध कार्य जारी रखा। इसी बीच उनके मन में कैलिफोर्निया जाकर मानव जाति व चिकित्सा विज्ञान पर शोध करने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने बताया कि क्लैमिडिया जीवाणु संक्रमण यौन संपर्क से फैलता है। उनकी इच्छा हुई कि इस पर शोध किया जाए।


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