बंगाल में नो-नेटवर्क जोन में शांतिपूर्वक मतदान सुनिश्चित कराएंगे रेडियो ऑपरेटर्स
राज्य में अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां इंटरनेट की कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है। इस समस्या के समाधान के लिए चुनाव आयोग ने इस बार विशेष उपाय किया है।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। राज्य में अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां इंटरनेट की कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है। इन क्षेत्रों में मतदान के दौरान किसी भी तरह की समस्या होने पर सूचनाएं पहुंचाने के लिए पीठासीन अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों के लिए काफी मुश्किल होती है। इस समस्या के समाधान के लिए चुनाव आयोग ने इस बार विशेष उपाय किया है।
ऐसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ रेडियो ऑपरेटर्स की मदद से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा। इसके लिए कोलकाता के ''हैम'' रेडियो ऑपरेटर की मदद मांगी गई है। वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के महासचिव अंबरीश नाग विश्वास के मुताबिक केंद्रीय चुनाव आयोग ने उन्हें फोन कर इसके लिए बुलाया था। उनसे नो-इंटरनेट जोन में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए मदद करने के लिए कहा गया है।
अंबरीश ने वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के हैम्स, इंडियन एकेडमी, कम्युनिकेशन और डिजास्टर मैनेजमेंट के साथ मिलकर इस लोकतंत्र के महापर्व को सफल बनाने के लिए अपनी व्यवस्थाओं को राज्य के उन हिस्सों में स्थांतरित करना शुरू कर दिया है, जहां से चुनाव आयोग की मदद करनी है। इसके लिए लाइसेंस होल्डर्स हैम्स की टीम के साथ मोबाइल शैडो जोन्स में कंट्रोल रूम बनाए जाएंगे। यहां वोटिंग वाले दिन हैम्स तैनात रहेंगे। सूचनाएं भेजने में चुनाव आयोग के अधिकारियों की मदद करेंगे।
अंबरीश ने बताया कि विशेष तौर पर पांचवें और सातवें (6 व 19 मई) चरण के मतदान के दिन उन्हें मदद करनी है। दुर्गम इलाकों में संचार के लिए अपने बेस स्टेशन और कंट्रोल रूम बनाने की अनुमति भी वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब को चुनाव आयोग से मिल चुकी है। दूर संचार मंत्रालय ने इसके लिए उन्हें एक अस्थाई स्टेशन कॉलसाइन दिया है।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व 2016 में हुए राज्य के विधानसभा चुनावों और 2013 के पंचायत चुनावों में भी इस तरह के इलाकों में संचार सेवाएं पहुंचाने में वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब ने चुनाव आयोग की मदद की थी। राज्य में कहीं भी किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इस संगठन से जुड़े हैम्स हमेशा तैयार रहते हैं।
अंबरीश के मुताबिक गंगा सागर के दौरान पिछले कई साल से वह हैम रेडियो ऑपरेटर्स की मदद से प्रशासन की मदद करते रहे हैं। इससे ऐतिहासिक मेले में अपनों से बिछड़ जाने वाले हजारों लोगों को मिला चुके हैं।