Kolkata Durga Puja 2020: कोरोना के कारण संकट से जूझ रहे बंगाल के ढाकिये, दुर्गा पूजा में पारंपरिक वाद्य यंत्र ढाक बजाने का है विशेष महत्व
Kolkata Durga Puja 2020 संकट से जूझ रहे बंगाल के ढाकिये कला पर छा रहे मुश्किलों के बादल ढाकियों पर कोरोना महामारी की मार दुर्गा पूजा में पारंपरिक वाद्य यंत्र ढाक के बिना दुर्गा पूजा कल्पना नहीं की जा सकती। पूजा और आरती के समय ढाक बजाना शुभ माना जाता।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। दुर्गा पूजा में पारंपरिक वाद्य यंत्र ढाक बजाने का विशेष महत्व है। इसके बिना दुर्गा पूजा की कल्पना नहीं की जा सकती है। पूजा और आरती के समय ढाक बजाना शुभ माना जाता है। धीरे धीरे इस कला पर मुश्किलों के बादल छा रहे थे, अब ढाकियों पर कोरोना महामारी की जबरदस्त मार पड़ती नजर आ रही है। आमतौर पर पूजा से तीन-चार महीने पहले ही इन ढाकियों को ढाक बजाने के लिए अग्रिम राशि दे दी जाती थी, इस बार अधिकांश को पूजा आयोजकों के आदेश का इंतजार करना पड़ रहा है। अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो देश विदेश में अपने हुनर का जलवा दिखाने वाले कई ढाकियों को खाने के लाले पड़ सकते हैं।
पश्चिम बंगाल के बर्दवान, मुॢशदाबाद, हुगली, मालदह, बांकुडा और पुरुलिया जिलों के ढाकी पूरे देश में दुर्गा पूजा के दौरान ढाक बजाने जाते हैं। पूर्व बर्दवान जिले के करीब 200 परिवार ऐसे हैं जिनकी जिंदगी ढाक बजाने पर निर्भर है। जिले के कालना, सांकतोडिय़ा, मोयलागाड़ा और गंगुटिया इलाके के लगभग 250 परिवारों की यह मुख्य आजीविका है। इस बीच हिंदू उत्सव समिति एवं धर्म सेना (धर्मजागरण समन्वय) ने दुर्गा पूजा में सरकार से ढाक बजाने, पुष्पांजलि और सिंदूर दान करने की अनुमति मांगी।
दुर्गापूजा सबसे बड़ा अवसर
दुर्गापूजा उनके लिए सबसे बड़ा अवसर होता है। उत्सव में 1000 से लेकर 5000 तक प्रतिदिन आय होती है। पुराने व नामचीन ढाकियों को अधिक पैसे मिलते हैं। दुर्गा पूजा के समय विज्ञापन से कुछ आय होती है। कई बड़ी कंपनियां अपने उत्पाद के लिए प्रचार करती है। इसके अलावा पूजा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों से भी कुछ आय होती है।
बदला था भविष्य
अभावों से जूझती करीब 60 महिलाओं का भविष्य पिछले साल ढाक ने बदल दिया था। उत्तर 24 परगना के मच्छलंदपुर की इन महिला ढाकियों में कुछ लंदन और कुछ अफ्रीका के देश तंजानिया गई थीं। पहले महिलाएं ढाक से दूर थीं। एक महिला ढाकी ने बताया कि पारंपरिक ढाक 20 किलो का होता है, उसे कंधे पर रखकर बजाना आसान नहीं है। अब सिंथेटिंग ढाक बजाते हैं जो 5-7 किलो का होता है।
कलाकार का मिले दर्जा
ढाकियों का कहना है कि जैसे सितारवादक, बांसुरीवादक या अन्य कलाकारों को जैसा सम्मान दिया जाता है वैसा ही सम्मान उन्हें भी मिलना चाहिए। ढाक प्रशिक्षण स्कूल खोलना चाहिए। जहां नई पीढ़ी को इस परंपरागत वाद्ययंत्र की बारीकियां सीखने का मौका मिले।
अब ढाक पर गुजारा मुश्किल
एक ढाकी ने बताया कि उनके पुर्वजों ने ढाक बजाना शुरू किया था। यह उनकी आजीविका बन गई। वे दुर्गापूजा के दौरान झारखंड समेत अन्य राज्यों में जाते हैं। उनमें से कुछ प्रवासी बंगाली घरों तो कुछ गैर-बंगालियों की पूजा में जाते हैं पर वर्तमान स्थिति में ढाकियों के लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल लग रहा है। दुर्गापूजा में इतनी कमाई होती थी कि वे साल पर थोड़े बहुत काम करके अपना गुजारा कर लेते हैं। अब स्थिति खराब है।