अब बंगाल में नवगठित विधानसभा समितियों के आवंटन को लेकर तृणमूल-भाजपा में खींचतान
बंगाल में अब नवगठित विधानसभा समितियों के आवंटन को लेकर सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा में खींचतान शुरू हो गई है। विधानसभा सूत्रों के मुताबिक सरकार लोक लेखा समिति (पीएसी) समेत 10 समितियों की अध्यक्षता विपक्षी भाजपा को देने पर राजी हो गई है।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल में अब नवगठित विधानसभा समितियों के आवंटन को लेकर सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा में खींचतान शुरू हो गई है। विधानसभा सूत्रों के मुताबिक सरकार लोक लेखा समिति (पीएसी) समेत 10 समितियों की अध्यक्षता विपक्षी भाजपा को देने पर राजी हो गई है। लेकिन पिछले उदाहरणों का हवाला देते हुए भगवा खेमा कम से कम 14 समितियां चाहता है। माना जा रहा है कि अंततः स्पीकर बिमान बनर्जी सरकार और विपक्ष के साथ चर्चा के आधार पर अंतिम फैसला लेंगे।
भाजपा का तर्क है कि पिछली बार विधानसभा की कुल 41 समितियों में वाम और कांग्रेस के पास 16 समितियां थीं। फिर भाजपा के सदन में 75 विधायक होने के बावजूद समितियों की संख्या क्यों कम की जाएंगी? हालांकि सरकार का तर्क है कि वाममोर्चा के शासन काल के दौरान विपक्षी तृणमूल और कांग्रेस के बीच समितियों का बंटवारा कर दिया जाता था। इसी प्रकार तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में मुख्य विपक्षी कांग्रेस व वाममोर्चा के बीच समितियों का बंटवारा किया गया था। कुल मिलाकर विपक्षी दलों को कुछ अधिक समितियां मिली थीं। लेकिन अब जबकि केवल एक विपक्षी दल है, तो उसे और कितनी समितियां दी जाएंगी? संसदीय कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक अंतिम फैसला चर्चा के बाद लिया जाएगा।
पीएसी के अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा में दुविधा
दूसरी ओर समितियों का नेतृत्व करने के अलावा पीएसी के अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा खेमे में दुविधा बनी हुई है। इसके लिए फिलहाल मुकुल राय तथा अशोक लाहिड़ी का नाम उभर कर सामने आया है। विधानसभा के नियमों का पालन करते हुए पीएसी के अध्यक्ष का एक अलग दर्जा और कार्यालय होता है। पिछली दो विधानसभाओं में विपक्षी नेताओं ने पीएसी से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा नेतृत्व चाहता है कि सुवेंदु अधिकारी के विपक्ष के नेता बनने के बाद किसी और को पीएसी का प्रभार दिया जाए। लेकिन एक समस्या भी है। अशोक लाहिड़ी को भाजपा ने इस विचार के साथ विधानसभा चुनाव में मनोनीत किया था कि अगर पार्टी जीतती है और सरकार बनाती है तो उन्हें वित्त मंत्री बनाया जाएगा। हालांकि वह एक विधायक हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक विधानसभा की इस समिति का कार्यभार संभालने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में मुकुल रॉय का नाम एक बार फिर चर्चा में आ रहा है। हालांकि, उन्होंने कोई नया पद संभालने के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया। अंत में यदि मुकुल रॉय पीएसी के अध्यक्ष चुने जाते हैं, तो संसदीय राजनीति में भाजपा के दोनों चेहरों को दूसरी पार्टी से लाया जाएगा।
भाजपा को करनी पड़ सकती है मुकुल रॉय के नाम की सिफारिश
-इसके अलावा भाजपा खेमे में एक और चर्चा चल रही है। पांच साल पहले विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्य विपक्षी कांग्रेस की सिफारिशों की अनदेखी करते हुए मानस भुइयां को पीएसी के अध्यक्ष के रूप में नामित किया था। इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व का मानस भुइयां के साथ मतभेद उत्पन्न हो गया और अंततः भुइयां ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। मुकुल रॉय के प्रति तृणमूल का रवैया अब नरम है। तो सवाल यह है कि क्या भाजपा उन्हें पीएसी का प्रभारी बनाएगी? ऐसे में भाजपा को किसी तरह के विवाद से बचने के लिए मुकुल रॉय के नाम की सिफारिश करनी पड़ सकती है। हालांकि, विपक्ष के मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा ने कि हम लोग बैठकर चर्चा करेंगे और समिति पर फैसला करेंगे।