Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: आजाद हिंद फौज ने दिलाई थी भारत को सबसे पहले आजादी!
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021नेताजी के परपोते चंद्र कुमार बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा अनजाना तथ्य साझा करते हुए बताया कि देश को सबसे पहले आजादी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने दिलाई थी।
कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। भारत सही मायने में 15 अगस्त, 1947 को नहीं, बल्कि 14 अप्रैल, 1944 को आजाद हुआ था और देश को सबसे पहले आजादी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने दिलाई थी। नेताजी के परपोते चंद्र कुमार बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा यह अनजाना तथ्य साझा किया है। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई से जुड़ी इस महत्वपूर्ण घटना को छिपाकर रखा गया। बोस ने एक और सनसनीखेज दावा करते हुए कहा कि आजाद हिंद फौज की स्थापना नेताजी ने नहीं बल्कि आजादी के एक और महानायक रासबिहारी बोस और कैप्टन मोहन सिंह ने की थी।
नेताजी ने आजाद हिंद फौज को मजबूत करते हुए इसे 60,000 सैनिकों वाली सशस्त्र सेना में बदला था। आजाद हिंद फौज ने कर्नल शौकत अली मलिक के नेतृत्व में 1944 में म्यांमार (तत्कालीन बर्मा) से इंफाल के मोइरांग क्षेत्र का रुख किया था और वहां स्थित ब्रिटिश सैन्य छावनी पर हमला करके अंग्रेजों को खदेड़ दिया था। भारतीय सरजमी पर ब्रिटिश सेना के खिलाफ यह पहली जीत थी। आजाद हिंद फौज ने वहां तिरंगा फहराया था और मोइरांग और नगालैंड के आधे हिस्से पर तीन महीने तक आजाद हिंद फौज की सरकार चली थी। जापान की इंपीरियल आर्मी आजाद हिंद फौज की मदद कर रही थी। हथियारों की आपूर्ति वहीं से हो रही थी। मोइरांग फतह करने के बाद नेताजी ने 'दिल्ली चलो' का नारा देते हुए कर्नल शौकत अली मलिक को दिल्ली के लाल किले की ओर मार्च करने को कहा था। बाद में हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु हमले के कारण जापानी सेना ने सरेंडर कर दिया था, जिसके कारण आजाद हिंद फौज दिल्ली का रूख नहीं कर सकी थी।
कॉलेज की वो घटना, जिसने नेताजी को क्रांतिकारी बना दिया
कॉलेज के जमाने में जब सुभाष चंद्र बोस ने देखा कि भारतीय छात्रों के साथ अंग्रेज प्रोफेसर दुर्व्यवहार कर रहे हैं तो उन्होंने इसका विरोध किया। सुभाष चंद्र बोस मेधावी छात्र थे। मैट्रिक की परीक्षा में टॉप करके उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिïला लिया था, लेकिन वहां ऐसी घटना हुई, जिसके बाद सुभाष को लगा कि अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर करना चाहिए। इसके बाद वे क्रांतिकारी बनने की राह में मुड़ गए। ये वो घटना है, जिसने सुभाष चंद्र बोस के जीवन को ही नहीं बल्कि उनकी पूरी सोच को बदलकर रख दिया था। वे उस दिन कॉलेज की लाइब्रेरी में थे, तभी पता चला कि एक अंग्रेज प्रोफेसर ने खीझकर उनके कुछ साथियों से दुर्व्यवहार किया है और उन्हें जोर से धक्का दिया है। चूंकि सुभाष ही क्लास के छात्र प्रतिनिधि थे, लिहाजा वे तुरंत प्रिंसिपल के पास पहुंचे और उन्हेंं इस बारे में बताया। अंग्रेज प्रोफेसर का रवैया बहुत खराब था इसलिए सुभाष चाहते थे कि वह माफी मांगें। प्रिंसिपल ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया। इसके विरोध में अगले दिन से छात्र हड़ताल पर चले गए। पूरे शहर में जब खबर फैली तो हड़ताल को समर्थन मिलने लगा। आखिरकार प्रोफेसर को झुकना पड़ा। दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ।