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माकपा और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू: ममता

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माकपा और भाजपा को एक ही सिक्के को दो पहलू बताया और कहा कि दोनों में कोई अंतर नहीं है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 01 Mar 2018 12:16 PM (IST)Updated: Thu, 01 Mar 2018 12:16 PM (IST)
माकपा और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू: ममता
माकपा और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू: ममता

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माकपा और भाजपा को एक ही सिक्के को दो पहलू बताया और कहा कि दोनों में कोई अंतर नहीं है। मुख्यमंत्री ने बुधवार को विधानसभा में राववंशी, कामतापुरी और कुरमाली भाषा को सरकारी मान्यता देने के लिए पेश किए गए द पश्चिम बंगाल आधिकारिक भाषा (दूसरा संशोधन बिल) 2018 पर हुई बहस पर जवाबी भाषण में यह बातें कही। बहस में भाग लेते हुए माकपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री अशोक भट्टाचार्य ने कामतापुरी भाषा को सरकारी मान्यता देने पर सवाल उठाते हुए इसके पीछे मुख्यमंत्री का खास राजनीतिक उद्देश्य बताया।

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मुख्यमंत्री इस पर क्षुब्ध हो गईं। उन्होंने कहा कि किसी भाषा को सम्मान देने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भाषा को सरकारी स्वीकृति देने के लिए उन्हें माकपा से पूछने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री ने माकपा विधायकों पर तंज कसते हुए कहा कि उनके अहंकार ही उनको ले डूबा। त्रिपुरा में माकपा जीतती तो उन्हें खुशी होती। लेकिन वे अपनी चाल से हार रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा विरोधी लड़ाई को धार देने के लिए उन्होंने विपक्षी एकजुटता का प्रयास किया। लेकिन माकपा शरीक नहीं हुई।

पटना में लालू प्रसाद यादव ने भी विपक्षी दलों की बैठक बुलाई तो उसमें माकपा शामिल नहीं हुई। माकपा भी दंगा लगाने और विभेद पैदा करने का काम करती है। भाजपा और माकपा में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। माकपा के लोग उत्तर बंगाल और दार्जिलिंग जाने की जरूरत भी नहीं समझते थे। राजीव गांधी के तैयार होने पर तत्कालीन माकपा मुख्यमंत्री गए थे। आज दार्जिलिंग की जो समस्या है वहा माकपा शासन की देन है। उनकी सरकार आज शांति लाने और विकास का प्रयास कर रही है तो माकपा को यह अच्छा नहीं लग रहा है।

राजवंशी, कामतापुरी और कुरमाली को मिला सरकारी भाषा का दर्जा

मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके पहले उन्होंने ¨हदी, उर्दू, नेपाली, गुरमुखी और ओडि़या आदि कई भाषाओं को सरकारी भाषा का दर्जा दिया है। कुछ और भाषाओं को सरकारी भाषा का दर्जा देने की मांग उठने पर उन्होंने एन भादुड़ी की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ कमेटी गठित की। विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिश पर उन्होंने राजवंशी, कामतापुरी और कुरमाली को सरकारी भाषा का दर्जा देने के लिए विधेयक लाया।

माकपा का विरोध की अनदेखी कर व कांग्रेस के संशोधन प्रस्ताव को खारिज करते हुए सरकार ने दि वेस्ट बंगाल ऑफिसिल लांग्वेज (सेकेंड एमेंडमेंट) बिल, 2018 पारित कराया। विधेय पारित होने के बाद राजवंशी, कामतापुरी और कुरमाली को भी सरकारी भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया। 


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