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परंपरागत भारतीय थाली से दूर होगा कुपोषण

कुपोषण की एक वजह यह भी है कि आज की बदलती दिनचर्या और भागदौड़ की जिन्दगी में परंपरागत भारतीय थाली की जगह रेडी टू ईट फूड्स ने ले ली है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 10:56 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 11:30 AM (IST)
परंपरागत भारतीय थाली से दूर होगा कुपोषण
परंपरागत भारतीय थाली से दूर होगा कुपोषण

कोलकाता, जागरण संवाददाता। देश में पांच से कम उम्र के सभी बच्चों में 35.7 फीसद का वजन अपनी उम्र के अनुपात में कम है। 38.4 फीसद का शारीरिक विकास उनकी आयु के अनुपात में कम है। 21 फीसद बच्चों का वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है। आयु के अनुपात में कम लंबाई वाले दुनिया के हर दस बच्चों में से तीन भारत में रहते हैं। इसकी वजह सही आहार की कमी है।

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कुपोषण की एक वजह यह भी है कि आज की बदलती दिनचर्या और भागदौड़ की जिन्दगी में परंपरागत भारतीय थाली की जगह रेडी टू ईट फूड्स ने ले ली है। लोग आज खाना बनाने तक का समय नहीं निकाल पाते हैं लेकिन इससे खाने-पीने की पौष्टिकता खत्म होती जा रही है।

पोषण व आहार विज्ञान के विशेषज्ञ डाक्टरों की माने तो फ्रोजन या रेडी टू ईट फूड हमारे समय की बचत कर, भूख मिटाने का विकल्प तो देता है लेकिन तमाम खतरों को भी दावत दे रहा है। इसलिए संतुलित आहार के लिए परंपरागत भारतीय थाली को खाने में शुमार करना बेहद आवश्यक है।

महानगर स्थित मेडिका सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की पोषण और आहार विज्ञान विभागाध्यक्ष संघमित्र चक्रवर्ती कहती हैं कि आज कल बच्चे टेलीविजन विज्ञापन देख कर रेडी टू ईट फूड की और अधिक चाहत करते हैं जिससे उनका पेट तो भरता है लेकिन संतुलित आहार नहीं मिल पा रहा। उन्होंने कहा कि आज बच्चों में मोटापा, विटामीन की कमी, मिनीरल्स की कमी इन्हीं आदतों का परिणाम है।

डाक्टर चक्रवर्ती कहती हैं कि बच्चों की थाली में मोटे अनाज जैसे दलिया, ओट्स आदि के साथ दूध शामिल किया जाना अनिवार्य है ताकि उन्हें कुपोषण से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि अगर कोई शाकाहारी भी है तो अपने भोजन को थोड़ा सा भी नियोजित कर लें तो वे भी मांसाहारियों की तरह पूरा पोषण पा सकता है।

मसलन इसके लिए पालक, सोयाबीन, पनीर व अन्य साग सब्जियों को खाने में शामिल किया जाना चाहिए। डाक्टर संघमित्र चक्रवर्ती ने बताया कि शिशु के लिए स्तनपान ही पर्याप्त है और इसके लिए किसी सप्लीमेंट्री की आवश्यकता नहीं। इतना किया जा सकता है कि छह महीने बाद शिशु को हल्का जूस व अन्य सुपाच्य चीजें दी जा सकती है। बच्चों को विटामिन-ए की मात्र भी भरपूर मात्र में मिलनी चाहिए।

एनिमिया रोकने के लिए किशोरियों को बेहतर भोजन व पोषण की खुराक देना आवश्यक है। गर्भधारण से पहले, गर्भ के दौरान तथा धात्री (दूध पिलाती) माताओं को बेहतर भोजन व पोषाहार देना चाहिए। उन्होंने बताया कि खाने के समय व मात्र को भी नियमित कर के स्वस्थ काया प्राप्त की जा सकती है।


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