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बंगाल में एआइएमआइएम या आइएसएफ नहीं था विकल्प, मुसलमानों ने तृणमूल पर भरोसा जताया : नेता, विश्लेषक

तृणमूल कांग्रेस के सिद्दीकुल्लाह चौधरी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय जानता था कि बनर्जी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं जो बंगाल में भाजपा के रथ को रोक सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक ने कहा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों ने सामूहिक रूप से तृणमूल के पक्ष में मतदान किया।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 12:21 PM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 12:30 PM (IST)
बंगाल में एआइएमआइएम या आइएसएफ नहीं था विकल्प, मुसलमानों ने तृणमूल पर भरोसा जताया : नेता, विश्लेषक
बंगाल में मुसलमानों ने तृणमूल पर भरोसा जताया

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल में मुसलमानों ने अपने वोटिंग पैटर्न के बारे में अटकलों पर विराम लगाते हुए बड़े पैमाने पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और चुनाव परिणाम बताते हैं कि नवगठित आइएसएफ और एआइएमआइएम इस समुदाय के सदस्यों के बीच अपनी पैठ नहीं बना पाई।तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री सिद्दीकुल्लाह चौधरी ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय जानता था कि बनर्जी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं, जो बंगाल में भाजपा के रथ को रोक सकती हैं।

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उन्होंने कहा कि इस समुदाय के सदस्य वाममोर्चा, कांग्रेस और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेकुलर फ्रंट (आइएसएफ) के गठबंधन संयुक्त मोर्चे को लेकर आश्वस्त नहीं थे क्योंकि तीनों की विचाराधाराएं नहीं मिलती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ मुसलमानों में कम से कम 95 फीसद लोगों ने ममता बनर्जी के पक्ष में वोट डाला। समुदाय के मेरे भाई-बहन कभी भी सांप्रदायिक ताकत को वोट नहीं देंगे। उन्होंने स्पष्ट रूप से अहसास कर लिया था कि ममता दीदी ही एकमात्र ऐसी नेता हैं, जो बंगाल में सांप्रदायिकता से लड़ सकती हैं। ’’

चौधरी ने कहा कि मुसलमान धार्मिक आधार पर विभाजन पैदा करने की भाजपा की साजिश देख चुके थे। उन्होंने कहा, ‘‘ अपने प्रचार के दौरान मैंने कहा था कि मुसलमान निश्चित ही अन्य की तुलना में भरोसेमंद साबित होंगे। वे ममता बनर्जी के प्रति निष्ठावान रहेंगे।’’ चौधरी मंतेश्वर सीट से विजयी हुए हैं। दूसरी ओर, वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने कहा, ‘‘लोग हम पर इसलिए भरोसा नहीं कर पाए क्योंकि गठबंधन उम्मीद के अनुसार आकार नहीं ले पाया, और उसकी वजह थी कि हमारे कुछ नेता आइएसएफ को स्वीकार नहीं कर पाए। इस तरह, हमारा (गठबंधन का) पतन हो गया। ’’

वहीं, एआइएमआइएम के असदुल्लाह शेख ने कहा कि भाजपा से धमकाए और डरे हुए मुसलमानों को तृणमूल कांग्रेस से बेहतर विकल्प देखने को नहीं मिला, इसलिए उन्होंने नए दलों पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे मुस्लिम भाई-बहन भाजपा के लोगों से त्रस्त थे। वे डरा हुआ महसूस करे थे क्योंकि भाजपा नेता संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का मुद्दा उठाते रहते थे। अनिश्चित भविष्य से आशंकित उन्होंने संयुक्त मोर्चा या हमपर भरोसा नहीं किया।’’

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘यह शत प्रतिशत सही है कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों ने सामूहिक रूप से तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी पर चुनावी विमर्श से वे डर गये थे।’’ हालांकि विधानसभा में 2016 की तुलना में इस बार विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घट गया है। पिछली बार 59 मुस्लिम विधायक थे जबकि इस बार 44 ऐसे विधायक हैं। 


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