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तीन वर्ष की उम्र से ही नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है : कथक गुरु शोवना

श्री सीमेंट एवं प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा ‘‘एक मुलाकात ’’ नामक ऑनलाइन वेबिनार सत्र में कहा-साधना बोस की देखरेख में मैने कोलकाता में एक बच्चे के रूप में कथक सीखना शुरू किया।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 09:03 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 09:03 PM (IST)
तीन वर्ष की उम्र से ही नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है : कथक गुरु शोवना
तीन वर्ष की उम्र से ही नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है : कथक गुरु शोवना

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : “नृत्य मेरा प्राण, सम्मान और मेरी आत्मा है’’। मैं अपने जीवन के दोनों अलग हिस्से, एक नृत्यांगना और एक सरकारी अफसर दोनों ही मुझे काफी प्रिय था और मुझे दोनों से हीं काफी लगाव था। औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के पहले तीन वर्ष की उम्र में ही मै नृत्य की दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी। मेरे घर में मेरा एक काफी सुंदर लहंगा है, जिसे देख आज भी वह छवि नजरों के सामने आ जाती है कि मैने कितनी कम उम्र में डांस शुरू की थी। 

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‘‘एक मुलाकात ’’ नामक ऑनलाइन वेबिनार सत्र में पुरानी यादें की ताजा

श्री सीमेंट एवं प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रुप से आयोजित ‘‘एक मुलाकात ’’ नामक ऑनलाइन वेबिनार सत्र में कथक गुरु पद्मश्री शोवना नारायण ने देशभर में दर्शकों के सामने अपनी जीवन के इन पुरानी यादों को ताजा किया। वह ‘एहसास महिलाओं’ की तरफ से शिंजिनी कुलकर्णी द्वारा पूछे गये सवाल, आपने एक नृत्यांगना और सरकारी अफसर के बीच के तालमेल को कैसे सुव्यवस्थित किया?" का जवाब दे रही थी।

साधना बोस की देखरेख में कोलकाता में एक बच्चे के रूप में कथक सीखा

चर्चा सत्र के दौरान शोवना ने कहा कि साधना बोस की देखरेख में मैने कोलकाता में एक बच्चे के रूप में कथक सीखना शुरू किया, फिर मुंबई चली गईं और जयपुर घराने के गुरु कुंदनलाल जी सिसोदिया के अधीन रहीं और बाद में दिल्ली जाकर मैने पंडित बिरजू महाराज से शिक्षा ग्रहण की। शोवना कहती हैं, मैं गुरुजी बिरजू महाराज की मेरे प्रति कृतज्ञता कभी नहीं भूलूंगी जिन्होंने दिल्ली में अपने प्रदर्शन से पहले मेरे प्रदर्शन की घोषणा की। वह मेरे पहले चरण के प्रदर्शन के लिए लॉन्चिंग पैड था।

आधिकारिक दस्तावेज इकट्ठे किए और नृत्य को लेकर गहराई से खोजबीन

कथक की प्राचीनता और ‘‘कथक गांवों’’ पर अनके शोध को दर्शाते हुए शोवना ने कहा कि, लगभग 17 साल पहले वह एक प्रदर्शन के लिए बोधगया में थी। उस समय एक पत्रकार से पहली बार कथक गांव के बारे में पता चला। मुझे दो या तीन ऐसे गांव मिले और बाद में, मेरे एक आईएएस सहयोगी के साथ हमने ‘‘कथक गांवों की खोज’’ करने के लिए अपनी यात्रा शुरू की और ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों गांव तक गए। वहां के लोगों से मिले और आधिकारिक दस्तावेज इकट्ठे किए और इस नृत्य को लेकर गहराई से खोजबीन शुरू की।

आज हम जो कथक नृत्य देखते हैं, कथक समुदाय से बहुत अलग : शोवना 

आज हम जो कथक नृत्य देखते हैं, वह कथक समुदाय से बहुत अलग है। आज के खड़े मंदिरों में नृत्य रूपों को दर्शाती मूर्तियां, सबसे अच्छे रूप में लगभग 1000 से 1100 वर्षों के बीच की हैं। गुप्त और मौर्य काल के मंदिर और मूर्तियां कहां हैं जो वास्तुकला और मूर्तियों से बहुत समृद्ध थे! हम भारत के छोटे संग्रहालयों और अभिलेखागार पर ध्यान नहीं देते हैं, जो पुराने जमाने की सूचनाओं का भंडार समेटे हुए है। 

यहीं पर हमें कत्थक नृत्य के रूप और भाव में निरंतरता को देखना और इसे ढूंढना है।

मैं अपने आप में विश्वास करती थी और कथक से कभी विचलित नहीं हुई थी

सत्र के अंतिम चरण में शोवना ने कहा,  मैं अपने आप में विश्वास करती थी और कथक से कभी विचलित नहीं हुई थी। हमने कविताओं, मनोदशाओं और यहां तक कि आंदोलनों के संदर्भ में समानता पाई, लेकिन इनके दृष्टिकोण, क्षेत्र और कला में जोर काफी अलग है। 

नृत्य पुरानी कला एवं नये पैटर्न और लयबद्ध आयामों का एक सुंदर कोलाज है

मैं फ्यूजन शब्द के उपयोग के बारे में काफी सावधान हूं जिसका मतलब है कि किसी चीज में विलय करने के लिए अपनी पहचान को खो देना। इसलिए यह नृत्य पुरानी कला एवं नये पैटर्न और लयबद्ध आयामों का एक सुंदर कोलाज है, जिससे मै अपनी अलग पहचान रखती हूं। 

कलाकार, साधक, सांस्कृतिक अफिसादो, विचारक और लेखक लोगों के साथ जुड़े 

वेबिनार के जरिये एक मुलाकात श्रृंखला में पूरे भारत और अन्य महाद्वीपों के कलाकार, साधक, सांस्कृतिक अफिसादो, विचारक और लेखक लोगों के साथ जुड़े हुए हैं। प्रभा खेतान फाउंडेशन के ब्रांडिंग एंड कम्युनिकेशन की प्रमुख सुश्री मनीषा जैन ने भी विचार रखे।


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