'हाथ' से फिसला जंगीपुर
-कांग्रेस के वादों से ज्यादा ममता के विकास को वोटरों ने दी तरजीह -भाजपा के अल्पसंख्यक क
-कांग्रेस के वादों से ज्यादा ममता के विकास को वोटरों ने दी तरजीह
-भाजपा के अल्पसंख्यक कार्ड पर माफूजा खातून भी अंत तक तृणमूल के खलीलुर्रहमान को देती रही टक्कर
दीपक भट्टाचार्य, जंगीपुर : आखिरकार जिसका डर था वही हुआ। कांग्रेस से नाराज आवाम ने ममता बनर्जी के विकास कार्यो को तरजीह देते हुए करीब बारह साल बाद जंगीपुर में 'हाथ' का साथ छोड़ कर संसद में तृणमूल का प्रवेश करवा दिया। हालांकि भाजपा का मुस्लिम कार्ड भी जंगीपुर में काफी हद तक कामयाब हुआ। भले ही पराजय का मुंह देखना पड़ा मगर भाजपा की माफूजा खातून अंत तक तृणमूल के खलीलुर्रहमान को टक्कर देती रही। करीब चार वर्ष से बदल रहे सियासी समीकरण ने ऐस रुख लिया कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी को तीसरे पायदान पर दखेल दिया। बता दें कि 2004 से 2014 तक कांग्रेस के राज में जंगीपुर की तस्वीर जस की तस रहने से लोगों का कांग्रेस से मोह भंग हुआ था। कांग्रेस द्वारा ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर भी अपना रुख स्पष्ट नहीं किए जाने से मुस्लिम महिलाएं भी नाखुश चल रही थीं। इसके अलावा लगातार चार बार कांग्रेस के सांसद होने के बावजूद न तो इलाके का पिछड़ापन दूर हुआ था और न ही बीड़ी मजूदरों की समस्याओं का समाधान। बांध नहीं बनने से बारिश के मौसम में लोगों को बाढ़ जैसे हालात से भी जूझना पड़ता था। गत 11 वर्षो में न तो जंगीपुर की सड़कें दुरुस्त हो सकीं और न ही रोजगार को बढ़ावा मिला। इस दफा कांग्रेस ने गरीब परिवारों को प्रति माह 72 हजार रुपये देने, रोजगार देने आदि का वादा किया था लेकिन जनता ने कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया। उधर, राज्य की सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने के लिए विकास का पिटारा खोल दिया था। लोकसभा चुनाव से पहले ही सड़क, पार्क, स्कूल-कालेज बनवाने के साथ ही कांग्रेस की खामियां भी गिनानी शुरू कर दी थी। बेरोजगारों को रोजगार और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के आश्वासन ने भी जंगीपुर की अवाम का झुकाव तृणमूल कांग्रेस की ओर कर दिया था। यही वजह रही कि इस दफा वोटरों ने भी अपनी समस्याओं को ही चुनावी मुद्दा बना लिया था। 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद हर बार जहा काग्रेस और माकपा के वोटों में लगातार गिरावट हो रही थी, वहीं तृणमूल और भाजपा के वोट बैंक में इजाफा हो रहा था।
जंगीपुर लोकसभा सीट पर तृणमूल के साथ ही भाजपा ने भी अपनी नजरें गढ़ा ली थी। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने की वजह से ट्रिपल तलाक जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए की गई पहल का आधार बनाकर भाजपा ने वामफ्रंट की सहयोगी पार्टी सीपीआई से 2 बार विधायक रहीं माफूजा खातून को मैदान में उतार दिया था, वहीं तृणमूल ने भी मुस्लिम कार्ड खेलकर खलीलुर्रहमान को चुनावी जंग में उतार दिया था। त्रिकोणीय मुकाबले के बीच हुए चुनाव का परिणाम गुरुवार सुबह से आना शुरू हुआ तो तृणमूल और कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबला नजर आने लगा था। लेकिन दोपहर होते होते कांग्रेस के अभिजीत मुखर्जी तीसरे पायदान पर जा पहुंचे थे। इसके बाद शाम तक तृणमूल और भाजपा के बीच उतार चढ़ाव का दौर चलता रहा। रात तक तृणमूल के खलीलुर्रहमान भाजपा की माफूजा खातून से 246371 मतों से आगे चल रहे थे। जबकि कांग्रेस के अभिजीत मुखर्जी तीसरे पायदान पर थे। वर्ष 2014 में अभिजीत ने कांग्रेस के टिकट पर कुल 8161 के अंतर से जीत दर्ज की थी।
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'उपेक्षा' ने बनाई अभिजीत की राह पथरीली
वर्ष 2009 में 1.28 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीतने वाले प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने के बाद वर्ष 2012 में इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत काग्रेस के टिकट पर जीत तो गए थे लेकिन उनकी जीत का अंतर महज ढाई हजार वोटों का था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में काग्रेस को मिलने वाले वोटों में 20 फीसद से ज्यादा की गिरावट आई और अभिजीत लगभग आठ हजार वोटों से चुनाव जीते। वर्ष 2009 और 2012 में यहा कोई उम्मीदवार नहीं देने वाली तृणमूल काग्रेस 2014 में तीसरे स्थान पर रही थी। सांसद रहने के दौरान जंगीपुर और अवाम की उपेक्षा ने चुनाव से पूर्व ही अभिजीत की राह पथरीली होने का एहसास करा दिया था।
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